दाने दाने को मोहताज सोने की लंका!
श्रीलंका की बिगड़ी आर्थिक सेहत दे रही परिवार और दुनिया को सबक दर सबक
श्रीलंका की बेहाल मानवता वैश्विक आर्थिक संस्थाओं से लोकतांत्रिक व्यवहार की आस में
✍️ गणेश दत्त पाठक, स्वतंत्र टिप्पणीकार
श्रीनारद मीडिया ः
कभी सोने की लंका रहा श्रीलंका बहुत बुरे आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है। जरूरी चीजों के भाव आसमान छूने से आम आदमी की ज़िंदगी बेहाल हो गई है। जिम्मेदार कारण तो कई हैं लेकिन श्रीलंका का आर्थिक संकट सबक की एक श्रृंखला दे रहा है, जिसके मायने परिवार से लेकर देश और अंतराष्ट्रीय स्तर तक महत्वपूर्ण हैं। श्रीलंका के केवल संकट को नहीं देखिए, वहां के लोगों की व्यथा को महसूस कीजिए और सचेत रहिए। क्योंकि संकट तो कहीं भी कभी भी आ सकता है।
आम आदमी की बुनियादी जरूरतें भी नहीं हो पा रही पूरी
श्रीलंका का हर शख्स आज बेहद बेचारगी का जीवन जी रहा है। चावल, दाल, आटा, गैस सिलेंडर के दाम इतने ज्यादा बढ़ गए है कि आम आदमी की बुनियादी जरूरतें नहीं पूरी हो रही है। स्थिति इतनी बदतर हो गई है कि आर्थिक आपातकाल तक लगाने की जरूरत महसूस हो रही है तो व्यवस्था इतनी नासाज हो चुकी है कि जरूरत के वस्तुओं के वितरण के लिए सेना को भी उतारना पड़ रहा है।
आमदनी से ज्यादा खर्च ने बढ़ाया संकट
पहला सवाल तो यहीं उठता है कि आखिर श्रीलंका में इतनी खराब स्थिति आई क्यों? इसके कई कारण है। भारत में बचत की एक शाश्वत पारिवारिक परंपरा रही है। परंतु श्रीलंका में आमदनी से ज्यादा खर्च की एक सामाजिक जीवन शैली रही है। अभी स्थिति यह है कि श्रीलंका के पास विदेशी रिजर्व मुद्रा खत्म हो चुकी है तथा श्रीलंका की मुद्रा का वैल्यू दिन प्रतिदिन गिरता जा रहा है।
कुछ फैसलों पर अकस्मात क्रियान्वयन बढ़ा देता है संकट
कभी कभी कुछ फैसलों को अकस्मात क्रियान्वित कर देना बेहद खतरनाक भी साबित होता है। श्रीलंका की सरकार ने कुछ दिनों पूर्व ही रासायनिक उर्वरकों पर रोक लगाते हुए 100 फीसदी ऑर्गेनिक फार्मिंग के लक्ष्य को अपनाया। बुनियादी ढांचे के असमर्थता के कारण श्री लंका के एग्री सेक्टर को तगड़ा झटका लगा। जिससे श्रीलंका का कृषि क्षेत्र बेहद नकारात्मक तरीके से प्रभावित हुआ।
महत्वाकांक्षा के लिए कर्ज कभी कभी पड़ जाता है भारी
कुछ दिनों पूर्व चीन के कर्ज के छलावे में आकर माटाला और हबांटोटा जैसे महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को शुरू किया। लेकिन कर्ज का दुष्चक्र ही ऐसा होता है कि आप एक बार जहां फंस गए फिर निकलने की गुंजाइश बेहद कम ही रह जाती है। कर्ज अगर चीन का होता है तो मामला और भी पेचीदा हो जाता है।
महामारी ने कर दिया तबाह
कोलंबो में बम विस्फोट और फिर कोरोना महामारी के दौर में पिछले दो तीन वर्षों से श्रीलंका के टूरिज्म सेक्टर भी बेहाल रहा है जो श्रीलंका का मजबूत आर्थिक आधार रहा है। श्रीलंका की प्रवासी औरते विदेशों में कार्यरत रही है जिससे श्रीलंका को सहायता मिलती है वहां भी हालात कोरोना काल में ठीक नहीं रहे।
भ्रष्टाचार भी रहा एक प्रमुख कारण
श्री लंका में अनाज वैगरह का उत्पादन बेहद कम मात्रा में होता है। श्रीलंका अपनी जरूरत का अधिकतर सामान आयात ही करता है। ऐसे में कर्ज और पर्यटन और प्रवासी कर्मकारों से कम आय के कारण श्रीलंका में विदेशी मुद्रा की जबरदस्त किल्लत हो गई है। साथ ही जमाखोरी पर नियंत्रण नहीं होने और भ्रष्टाचार के बढ़ने से भी हालात बदतर हो रहे हैं। जिसके कारण श्रीलंका के आर्थिक हालात बेहद नाजुक बन चुके हैं।
वैश्विक आर्थिक संस्थाओं के लोकतांत्रिक व्यवहार के परीक्षण का समय भी
भारत में भी ऐसे ही आर्थिक हालात 1990 में उत्पन्न हुए थे लेकिन सरकार ने समस्या के बदतर होने के पूर्व ही आर्थिक सुधारों को अमल में लाकर अपनी स्थिति को सुधारने के गंभीर प्रयास किए थे। अपने आर्थिक हालात को सुधारने के लिए श्रीलंका ने भी अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष(आईएमएफ)की दहलीज पर दस्तक दिया है। आईएमएफ अल्पकालीन मदद मुहैया तो कराता है लेकिन उसकी अपनी शर्तें होती है जिसका पालन संबंधित देश की सरकार को करना होता है। भारत के पास एक बड़ी सुविधा उसके अपने बड़े बाजार की उपलब्धता भी रही। जिसने भरपूर विदेशी आर्थिक निवेश को आकर्षित किया। जबकि श्रीलंका के पास यह सुविधा मौजूद नहीं है। देखना होगा कि श्रीलंका आईएमएफ के शर्तों को कैसे पूरा कर पाता है? श्रीलंका के संदर्भ में वैश्विक आर्थिक संस्थाओं के लोकतांत्रिक कलेवर का परीक्षण भी हो जायेगा। जबकि चीन का एक भारी कर्ज भी उसके सिर पर मौजूद है।
बढ़ सकता है शरणार्थी संकट भी
श्रीलंका के आर्थिक संकट से कई आशंकाएं भी उत्पन्न हो रही है। पहली बात तो यह कि श्रीलंका में कानून और व्यवस्था की स्थिति दिन प्रतिदिन बेहद बिगड़ती जा रही है। आर्थिक संकट और व्यवस्था बिगड़ने पर भारी संख्या में लोग सुरक्षा के लिए दूसरे देश जाएंगे। चूंकि भारत नजदीक में हैं तो सबसे ज्यादा शरणार्थी भारत ही पहुंचेंगे। इसलिए भारत के लिए एक विकट समस्या उत्पन्न हो जाएगी। साथ ही श्रीलंका की मजबूत सामरिक स्थिति के चलते चीन की निगाह श्रीलंका पर है। वह श्रीलंका की मदद के बहाने अपने वर्चस्व को बढ़ाने की हिमाकत भी कर सकता है।
श्रीलंका की मदद के लिए विश्व समुदाय को आगे आना चाहिए
आवश्यकता इस बात की है कि बेहाल श्रीलंका को आईएमएफ से तत्काल आर्थिक सहायता मिले। साथ ही भारत, अमेरिका और क्वाड देशों को श्रीलंका के मदद के लिए सामने आना चाहिए। श्रीलंका सरकार को भी अपने व्यवस्था में मौजूद खामियों को समझकर व्यवस्था सुधारने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास करने चाहिए। साथ ही श्रीलंका की जनता को भविष्य में बचत की संकल्पना पर ध्यान देकर अपनी जीवन शैली के नकारात्मक पहलुओं से दूरी बनाना चाहिए।
श्रीलंका संकट दे रहा सबक दर सबक
श्रीलंका के लोग परेशान हैं बेहाल हैं। लेकिन सबक परिवार, दुनिया के लिए अनेक दे रहे हैं। परिवार और देश के लिए बचत विशेष मायने रखता है। कभी भी किसी भी परिवर्तन को अचानक लाना नुकसानदायक भी रहता है। सदैव आय के विविध स्रोतों को बनाने पर ध्यान देना चाहिए। आय के एक स्रोत पर निर्भर रहना कभी भी आर्थिक संकट में फंसा सकता है। सबसे बड़ा सबक कर्ज के संदर्भ में हैं महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए कर्ज का सहारा लेना कभी महंगा भी पड़ जाता है। साथ ही अपने आंतरिक व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त रखना परिवार और देश के लिए बेहद अनिवार्य तथ्य है। श्रीलंका के भयावह हालात आत्मनिर्भरता के महत्व को भी रेखांकित कर रहा है। श्रीलंका का आर्थिक संकट यह भी संदेश दे रहा है कि आपके बेहतर आर्थिक हालात ही आपके अस्तित्व की गारंटी होते हैं। श्रीलंका के हालात यह भी संकेत दे रहे हैं कि देश के संदर्भ में किसी भी आर्थिक निर्णय के संदर्भ में राजनीतिक सत्ता को बेहद संजीदगी और गंभीरता से फैसले लेने चाहिए।
वर्तमान में तो दुनिया के देशों और वैश्विक आर्थिक संस्थानों को श्रीलंका के लोगों की मदद के लिए आगे आना चाहिए। संकट की नियति यहीं है की संकट आता है और चला जाता है। लेकिन श्रीलंका के लोगों को मदद मिलनी चाहिए ताकि उनकी समस्याएं दूर हो पाए तथा उनकी बुनियादी जरूरतें पूरी हो सके।
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