1971 विजय के 50 वर्ष:यदि छह दिन और युद्ध खिंच जाता तो पाक के हो जाते कई टुकड़े,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
1971 के युद्ध में पाकिस्तानी सेना को धूल चटाने वाली भारतीय सेना के वीर योद्धा पाकिस्तान पर दिखाई गई उदारता को आज भी गलत मानते हैं। उनका मानना है भारत से टकराने का पाकिस्तान में न उस समय दम था और न आज वह टकरा सकता है। आर्थिक, सामरिक दृष्टि से कमजोर पाकिस्तान इसीलिए आतंकियों के जरिए पीठ पर वार करता है।
16 दिसंबर को 1971 में पाकिस्तान पर मिली जीत के 50 वर्ष पूरे हो गए। देश में गौरव और उल्लास का भाव है, लेकिन इस युद्ध में वीरता की पताका लहराने वाले वायुसेना के एक अधिकारी का कहना है कि यदि तब छह दिन युद्ध और खिंच जाता तो पाकिस्तान के कई टुकड़े हो जाते। उनका कहना है कि तब हम पाकिस्तान का अस्तित्व खत्म कर देते। यह कहना है अवकाशप्राप्त एयर मार्शल आदित्य विक्रम पेठिया का। मध्य प्रदेश के निवासी और वीर चक्र से सम्मानित पेठिया ने तब पाकिस्तान की विभिन्न जेलों में पांच माह गुजारे और यातनाओं की पराकाष्ठ को हंसकर सहा।
पेठिया का कहना है कि पाकिस्तान को हम 50 साल पहले ही सीधा कर देते। 1971 में हम लाहौर में थे। छह दिन और लड़ लेते तो पाकिस्तान के छह टुकड़े हो जाते। पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) अलग हो चुका था। पंजाब, बलूचिस्तान, और पाकिस्तान का उत्तर-पश्चिम का क्षेत्र भी अलग हो जाता। गुलाम कश्मीर भी हमारे पास होता। इस तरह पाकिस्तान छोटे से दायरे में सिमट कर रह जाता। हालांकि पेठिया का मानना है कि अब कोई युद्ध नहीं होगा, अब सिर्फ इकोनमी वार होगा, जो शुरू हो चुका है। उन्होंने कहा कि मेरी उम्र 80 साल हो चुकी है, लेकिन मेरा तजुर्बा कहता है कि पाकिस्तान भूखा मर जाएगा और चीन टूट जाएगा। चीन के लोग झूठे होते हैं और उनका सामान भी घटिया होता है।
गवर्नर हाउस पर दागी मिसाइलों के बाद पाक ने घुटने टेके:
1971 के युद्ध के बारे में पेठिया का कहना था कि भारी तनाव के बीच पाकिस्तान को सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि भारत इस तरह आक्रामक हो जाएगा। पाकिस्तान को अपने विदेशी आका पर भारी भरोसा था, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किसी की एक नहीं सुनी। बनने से पहले ही बांग्लादेश के चप्पे-चप्पे का खाका खींचा जा चुका था। पेठिया बताते हैं कि युद्ध के दौरान चार मिग विमानों ने गवर्नर हाउस पर मिसाइलें दाग कर पाकिस्तान को घुटने टेकने को मजबूर कर दिया था।
अंधेरी कोठरी की दीवार को नाखून से खुरचकर गिनते थे दिन :
लगभग साढ़े छह फीट कद और सुगठित शरीर के फौजी पेठिया को 50 साल पहले पाकिस्तान की कैद में गुजारा एक-एक पल याद है। पांच दिसंबर 1971 को पाकिस्तान में आयुध ले जा रही एक ट्रेन को उड़ाने के दौरान उनके लड़ाकू विमान में आग लग गई थी। उनका अनुमान था कि सिर्फ पांच मिनट तक विमान हवा में टिक जाए तो वह भारत पहुंच सकते है,
लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बाद में उन्हें पकड़ लिया गया। पांच माह के दौरान उन्हें अलग-अलग स्थानों पर कैद में रखा गया। उनके शरीर की तमाम हड्डियों को तोड़ दिया गया। अंधेरे कमरे में ठंडे फर्श पर दिसंबर की खून जमा देने वाली ठंड में उन्हें किसी तरह के कपड़े तक नहीं दिए जाते थे। जब वह खांसते थे तो मुंह से खून आने लगता था।
पता ही नहीं लगता था कि दिन है कि रात:
उन दिनों को याद करते हुए एयर मार्शल पेठिया कहते हैं कि जेल के कमरे में अंधेरे के कारण पता ही नहीं चलता था कि दिन है या रात। दिन निकलते समय जब चिडिय़ां चहचहाती हैं तो उनके कलरव में मधुरता रहती है। शाम को जब वे वापस अपने घोसले में वापस आती हैं तो उनकी चहचहाहट में थोड़ी कर्कशता होती है। वह इसी बात से दिन निकलने और डूबने का अंदाजा लगाते थे। कैद में एक दिन होने पर वह दीवार पर नाखून की खरोंच से एक लाइन खींच देते थे। कमरा बदल दिए जाने पर वह अंगुलियों से हिसाब लगाकर कैद में गुजारे गए दिन याद रखने की कोशिश करते थे।
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