2024 लोकसभा चुनाव जदयू के लिए चिंता का विषय है,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बनी-बनाई व्यवस्था जब भंग होती है और दूसरे स्वरूप में जन्म लेती है तो ऐसा सामान्य तरीके से संभव नहीं हो पाता। कुछ न कुछ खटराग जरूर होता है। बिहार में भी नई सरकार ने पूर्ण रूप से आकार ले लिया है। स्वाभाविक है कि बीच राह में जदयू ने जब भाजपा का साथ छोड़ा और राजद का हाथ थामा तो यह आसानी से तो हो नहीं सकता।
मंत्रिमंडल गठन के साथ ही एक मंत्री को लेकर हंगामा शुरू हो गया कि उनके खिलाफ अपहरण के मामले में वारंट जारी है और वह मंत्री पद की शपथ ले रहे हैं। साथ ही सभी मंत्रियों की कुंडली खंगालनी शुरू हो गई। सुशासन बाबू नीतीश कुमार पर आरोप लगने लगे। मंत्री पद न मिलने से खिन्न उनकी पार्टी के विधायक भी नाराजगी भरा मुंह खोलने लगे।
हाल सिर मुड़ाते ही ओले पड़ने वाला है। गत 16 अगस्त को जब नई सरकार के 31 मंत्री शपथ ले रहे थे, तब तक सब ठीक था। लेकिन उसके बाद कानून मंत्री बने कार्तिकेय सिंह उर्फ कार्तिक मास्टर पर आठ वर्ष पुराना केस भारी पड़ गया। कार्तिक मास्टर राजद कोटे से मंत्री बने हैं। वह विधान पार्षद हैं और अनंत सिंह के करीबी हैं।
अनंत सिंह के घर से एके-47 मिलने के कारण उनकी विधानसभा की सदस्यता चली गई है। अनंत सिंह के साथ आठ वर्ष पूर्व एक अपहरण के मामले में कार्तिक मास्टर का नाम आया था। खबर उड़ी कि कार्तिक मास्टर को 16 अगस्त को ही न्यायालय में उपस्थित होना था, लेकिन वह शपथ ले रहे थे और वह भी कानून मंत्री की। फिर क्या था, बवाल शुरू हो गया। सरकार से बाहर होने से तिलमिलाई भाजपा के तमाम नेता चढ़ बैठे।
मीडिया ने मामले को जबरदस्त तूल दे दिया। इधर कार्तिक मास्टर सफाई देते रहे कि न्यायालय ने उन्हें एक सितंबर तक उपस्थिति से छूट दे रखी है।
वर्ष 2020 में जब भाजपा के साथ मिलकर जदयू ने सरकार बनाई थी तो उस समय शिक्षा मंत्री बनाए गए मेवालाल चौधरी को लेकर भी सवाल उठे थे और उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा था। ऐसा ही अवसर फिर नीतीश के समक्ष आ खड़ा हुआ। मीडिया ट्रायल में यह सवाल खड़ा होने लगा कि नीतीश क्या करेंगे?
मेवालाल वाला कदम उठाएंगे या राजद के दबाव में पीछे हट जाएंगे। हालांकि लालू यादव ने इसे बेबुनियाद बताया और नीतीश ने यह कहकर किनारा कर लिया कि उन्होंने सारे कागजात मंगा लिए हैं। अध्ययन करके ही वह कोई फैसला लेंगे। अब मामला कुछ ठंडा पड़ा है। लेकिन अपने समय में अपराध की घटनाओं पर चुप्पी साधे रही भाजपा, अब हर छोटी-बड़ी घटनाओं को जंगलराज से जोड़कर जनता के सामने रख रही है।
राजद के कारण नीतीश को अगर ऐसे हमले ङोलने पड़ रहे हैं तो उनकी पार्टी में मंत्री पद को लेकर लालायित विधायकों में भी असंतोष के स्वर उभर रहे हैं।
विधायक बीमा भारती को उम्मीद थी कि इस बार सरकार में उन्हें भी कुछ मिलेगा, लेकिन पिछली सरकार में मंत्री रहीं उनके जिले की ही लेशी सिंह को दोबारा मंत्री पद दिए जाने से वह भड़क उठी हैं। लेशी सिंह पर लगे आपराधिक मामलों के बारे में उन्होंने कहा, ‘भले ही उन्हें मंत्री न बनाया जाए, पर लेशी सिंह को भी बाहर किया जाए। वरना वह त्यागपत्र दे देंगी।’ नीतीश ने उनके बयान को गंभीरता से लिया है और बीमा भारती को गलत ठहराया है।
नीतीश के अनुसार बीमा भारती किसी के बहकावे में आकर ऐसा बोल रही हैं। बीमा भारती ही नहीं, जदयू के चार अन्य विधायक पंकज मिश्र, सुदर्शन, संजीव कुमार और राजकुमार सिंह ने भी शपथ ग्रहण समारोह से दूर रहकर अपनी नाराजगी जताई है। संजीव कुमार ने तो ट्वीट किया, ‘तुमसे पहले जो शख्स यहां तख्त-नशीं था, उसको भी अपने खुदा होने पर इतना ही यकीं था।’ इसे नीतीश कुमार के लिए एक संदेश माना गया।
बहरहाल इन्हीं घटनाक्रमों के बीच सरकार ने अपना कामकाज शुरू कर दिया है। दिल्ली में आराम कर रहे लालू यादव पटना पहुंच चुके हैं। सबसे पहले उनसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मुलाकात की। यह मुलाकात 40 मिनट चली। भाजपा ने अगली रणनीति के तहत नीतीश कुमार और तेजस्वी को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। जंगलराज को प्रचारित करना उसका लक्ष्य है। अभी लोजपा (चाचा पशुपति पारस और भतीजे चिराग पासवान, दोनों वाली) ही उसके साथ है।
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