21वीं सदी नए मानव मन के बीजारोपण की प्रतीक्षा में, मनुष्य चिंतन, कर्म और सोच बदले.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

19वीं व 20वीं सदी के मंथन से उपजे वैचारिक क्रांति, पुनर्जागरण, साम्राज्यवाद, पूंजीवाद, साम्यवाद, समाजवाद, अराजकतावाद के अनुभवों को आत्मसात कर संसार 2022 में है। 21वीं सदी किशोर है। इसके उपजाऊ वर्षों की देन हैं, टेक्नोलॉजी क्रांति, प्रबंधन कला, विज्ञापनवाद, पूंजी के मानवीय चेहरे की पुकार। संचार और आवागमन क्रांति से दुनिया एकसूत्र में बंधी ‘ग्लोबल विलेज’ है।

इसे वैज्ञानिक शोध और प्रगति से ऊर्जा मिल रही है। विख्यात ‘टाइम पत्रिका’ ने 2021 के श्रेष्ठ सौ विस्मयकारी शोधों की एक सूची छापी है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के मर्मज्ञ अमेरिकीवासी राजीव मल्होत्रा का निष्कर्ष है, 2021 से 30 का दशक, एक नई दुनिया को जन्म देगा। ‘द इकोनोमिस्ट’ ने 2022 के संसार पर नजर डाली है। दस बड़े मुद्दे हैं।

सच है कि संसार की बदलाव की गति हतप्रभ करती है…पर इन बदलावों के अनुपात में दुनिया सही जीवन मूल्यों, नैतिक उत्थान, वैचारिक समृद्धि की दृष्टि से संपन्न हुई है? वीटो पावर संपन्न पांच महाशक्तियों ने आणविक युद्ध टालने संबंधी बयान दिया है। यह आपसी स्पर्धा का प्रतिबिंब है। क्या आदिम मानस सभ्य समाज के अनुरूप है ? गांधी कुटिया (सेवाग्राम-वर्धा, महाराष्ट्र) के आगे, एक उद्धरण टंगा हुआ है। इसकी अंतिम पंक्ति है- ‘डार्विन के समकालीन वालेस ने कहा कि तरह-तरह की नई खोजों के बावजूद 50 वर्षों में मानव जाति की नैतिक ऊंचाई एक इंच भी नहीं बढ़ी। टालस्टाय ने भी यही बात कही। ईसा मसीह, बुद्ध और मोहम्मद पैगंबर सभी ने एक ही बात कही है।’

टालस्टाय का भी यही यक्ष प्रश्न था। उन्होंने पूछा ‘हर कोई दुनिया बदलना चाहता है, लेकिन कोई खुद को बदलने का नहीं सोचता है।’ गांधी के प्रिय थोरो और रस्किन भी यही मानते थे। 2022 में ‘वर्चुअल संसार’ साकार हो जाएगा। इस तरह टेक्नोलॉजी ने 2020 में दुनिया को भारतीय ऋषियों की कामना ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की साक्षात अनुभूति के द्वार पर खड़ा कर दिया है। पर 2020-21 में सृष्टि ने जो सबक संसार को दिए हैं, क्या उनसे हम सीख ले पाए हैं? कोविड दुनिया का पहला सबक है कि मौजूदा जीवन शैली बदले। आर्थिक विकास का विश्वव्यापी पुराना मॉडल कारगर नहीं रहा।

चीनी दार्शनिक कुंगफू ने कहा कि वे सुधार सर्वश्रेष्ठ हैं, जो लोगों के आचरण बदलते हैं। अपराध, बेईमानी, स्वच्छता, भ्रष्टाचार, अय्याशी जैसी चीजें सिर ढक लेते हैं। केनेडी ने 1968 में कन्हास विश्वविद्यालय के छात्रों के बीच आधुनिक विकास माडल की सीमाएं बताई थीं। उनका आशय था कि क्या समग्र राष्ट्रीय उत्पाद (विकास का मौजूदा माडल), वायु प्रदूषण को आंकता है? सिगरेट के विज्ञापनों की कीमत समझता है? राष्ट्रीय हाइवे की दुर्घटनाओं की पीड़ा महसूसता है?

घरों पर लगने वाले मजबूत तालों का मर्म जानता है? केनेडी ने आगे कहा कि इस विकास में अमेरिका के दुर्लभ पेड़ों व प्राकृतिक सौगात का विनाश भी है। टेलीविजन कार्यक्रमों में हिंसा का महिमामंडन है, जो बच्चों के बीच खिलौने बेचने से जुड़ा है। विकास में कविता के सौंदर्य, पारिवारिक बंधन की ताकत, निजी साहस, करुणा, देश भक्ति के प्रति समपर्ण भी है? यह केनेडी जैसे राजनेता की पीड़ा थी।

हाल में भारतीय प्रबन्धन संस्थान (आईआईएम) अहमदाबाद ने ‘हैप्पीनेस’ पाठ्यक्रम शुरू किया है। दुनिया के श्रेष्ठ शिक्षा संस्थान पहले से ही ‘हैप्पीनेस’ पाठ्यक्रम चला रहे हैं। पर भारत में पांच हजार वर्ष पहले वेद के ऋषि ने कहा ‘भूमि पृथिवां धर्मणा धृताम’ धर्म से पृथ्वी है, भौतिकता, अतिभौतिकता से नहीं। उपनिषदों का मूल सत्व है कि मनुष्य बदले। चिंतन में, कर्म में, सोच में, मानवीय होने में। तब संसार स्वर्ग होगा।

कन्नड़ के महान संत बसवेश्वर, स्वअनुभूति व सदाचार से इस धरा को स्वर्ग बनाना चाहते थे। दो हजार वर्ष पहले, तमिल के महान संत, तिरुवल्लुवर ने ऐसा ही कहा। मानव प्रगति का यह सूचकांक आज ग्लोबल विलेज बन चुकी दुनिया में सर्वाधिक प्रासंगिक हैं। मनुष्य की ऊंचाई में समाज सुधारकों और नैतिक पुनर्जागरण के प्रणेताओं की भूमिका अप्रतिम है। 21वीं सदी नए मानव मन के बीजारोपण की प्रतीक्षा में है।

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