25th Anniversary: मैैं’ से ‘हम’ की यात्रा का एक पड़ाव!

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25 साल का सफर बेमिसाल रहा- विनोद कुमार सिंह

समय के साथ–साथ रिश्ता और गहरा व मजबूत होता जाता है।

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

आज हीं के दिन 25साल पहले मिले थे मैं और तुम पर आज “मै” और “तुम” विलीन हो गए एक दुसरे में।बन गए-“हम”।गवाह था-सारा जमाना।साक्षी थे-अग्नि और ईश्वर।वादा था-साथ निभाने का।शपथ था-भरोसे का।आज अतीत के आईने में जब भी झांकता हूँ तो लगता है जैसे यह कल की हीं बात हो।जिन्दगी के आईने में वादों और भरोसे की वह तस्वीर आज भी ताजा और जीवंत है।उन तस्वीरों पर मैल की कोई परत नहीं।

मुझे आज भी याद है जब मेरी संवेदनाएं सूख रहीं थी,सपने तार-तार हो रहे थे,ख़्वाहिशें टूट रहीं थीं,हौसले पस्त हो रहे थे और जिन्दगी निरुद्देश्य थी उसी समय तुम मेरे जीवन में आई।इन बीते दिनों में कितना कुछ बदल गया पर नहीं बदली तो सिर्फ़ तुम।”झिलमिल सितारों का आँगन होगा—“का ख्वाब जो हमने देखा था उसे आज जब तुम्हारे प्रेम से अतिरंजित आँखो से देखता हूँ तो जीवन-आकाश के वे सभी झिलमिलाते हुए तारे “ध्रूवतारा” नजर आते हैं।वजह तुम हो प्रिये!

“मै” और “तुम”।जिन्दगी के अविराम सफर के हमराही हैं दोनों।जिन्दगी के सफर में जब कभी भी मेरी राहों में रोडे आए तुमने उसे अपनी पलकों से हटाया,चलते-चलते जब कभी भी मेरे पैर डगमगाए तो कंधों से कंधा मिलाया,पैरों के नीचे कंकड़-पत्थर आए तो अपनी हथेलियों को मेरे पैरों के नीचे बिछाया,जिन्दगी को चुभने वाले हर काटों को अपने दाँतो से निकाला–।ऊफ्फ!
“जिन्दगी को आसान बनाने की जद्दोजहद अभी भी है जारी,इसीलिए यह जिन्दगी कर्जदार है तुम्हारी। शायद बहुत जिद्दी हो तुम,इसीलिए मेरे होने की वजह हो तुम”। इस खास मौके पर तुम्हें देने के लिए मेरे पास न तब कुछ था ना ही अभी कुछ है।अफसोस! मैं तुम्हें सिन्दूर के सिवा कुछ नहीं दे सका।मगर यह भी क्या कम है?-”


“मेरा हीं दिया हुआ सिन्दूर तुम लगाती हो,अपने होने की वजह तुम मुझे बताती हो, बहुत सारी बातें तुम हंसकर छिपाती हो,हर गम को हंसीं में टाल जाती हो।”
तुमने जिस सेवा, समर्पण, मेहनत, स्नेह, कर्तव्यनिष्ठा,और अनुशासन से सबका दिल जीता है; मैं धन्य हूँ तुम्हें पाकर।तुमने एक आदर्श पत्नी,बहू और मा का जो जीवंत किरदार निभाया है वह अनुकरणीय है।पर मुझे इसी बात का मलाल है कि मैं ही एक आदर्श पति नहीं बन पाया।
आओ!एक वादा करते हैं आज-“अगर मैं पहले चला गया तो तुम्हारा इन्तज़ार करूँगा।अगर तुम पहले चली गई तो तुम मेरा इन्तज़ार करना।मैं भी आऊँगा जरूर।क्योंकि “जनम-जनम का साथ है हमारा- तुम्हारा–“।हम वहां फिर मिलेंगे।फिर आएंगे इसी संसार में।वादा रहा अगली बार शिकायत का मौका नहीं दूँगा।इस बार माफ कर दो न प्लीज!🙏
भावातिरेक में शब्दहीन हो रहा हूँ।सिर्फ़ मेरी भावनाओं को एहसास कर लो न!तुम्हें पाकर बस यहीं कहना है कि-“वाह जिन्दगी!”
सिल्वर-जुबली मुबारक हो साथी!

आभार-विनोद कुमार सिंह,रघुनाथपुर,सीवान

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