27वां अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य का दो दिवसीय अधिवेशन का हुआ समापन!
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन का दो दिवसीय 27वां अधिवेशन रविवार को तुलसी भवन बिष्टुपुर में संपन्न हो गया. डॉ निर्भीक स्मृति व्याख्यान में झारखंड राज्य आ भोजपुरी विषय पर अपनी बात रखते हुए द्विवेंदु त्रिपाठी ने झारखंड और भोजपुरी को मगध साम्राज्य से जोड़ने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि जहां लोहे का बर्तन हो, साल के पत्ते में भोजन और खजूर के पत्ते की झोपड़ी में सोना हो, वह झारखंड है. उन्होंने झारखंड के संदर्भ में कहा कि नागपुरिया के बिना भोजपुरी की चर्चा नहीं हो सकती. छोटानागपुर में नागपुरिया में स्तरीय काम हुआ है. भोजपुरी और नागपुरिया अलग नहीं हैं.
पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के बांग्ला भाषा में जो भेद है, वही भोजपुरी और नागपुरिया में है. उन्होंने कहा कि झारखंड में भोजपुरी को द्वितीय राजभाषा का दर्जा मिला, लेकिन वह छीन लिया गया. इसके लिए हमें उत्तेजित होने की जरूरत नहीं है. बौद्धिक स्तर पर काम करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि आचार्य हरेराम चैतन्य भोजपुरी, मुंडारी व नागपुरी भाषा को मिलाकर शब्दकोश बना रहे हैं.
वरिष्ठ पत्रकार दुर्योधन सिंह ने कहा कि भोजपुरी भाषी हिंदी के विद्वान भी भोजपुरी का विरोध करते हैं, जो दुखद है. भोजपुरी को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त नहीं है, बल्कि इसे राजनीतिक विरोध का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि मान्यता को लेकर हमेशा लिपि की बात उठायी जाती है. यह देखा जाना चाहिए कि मराठी, नेपाली की कौन सी लिपि है. उसने देवनागरी को अपनाया है. भोजपुरी को भी इस तरह देखा जाना चाहिए. इसकी अध्यक्षता एके श्रीवास्तव ने की. उन्होंने कहा कि भोजपुरी हनुमान चालीसा बन गयी है. इसमें सब कुछ है. उन्होंने कहा कि भोजपुरी के प्रचार-प्रसार की जरूरत है.
विश्व पटल पर भोजपुरी विषय पर संगोष्ठी में मुख्य वक्ता नेपाल में भाषा आयोग के अध्यक्ष डॉ गोपाल ठाकुर ने कहा कि विद्वान कहता है राजनीति करेंगे नहीं और जो राजनीति में हैं उसका भोजपुरी पर ध्यान नहीं है. तो यह भाषा समृद्ध कैसे होगी? उन्होंने नेपाल के संदर्भ में कहा कि वहां उनलोगों ने संघर्ष कर इस भाषा को स्थान दिलाया.
1990 में सामंती पंचायती व्यवस्था समाप्त होने के बाद नेपाली को राष्ट्रभाषा व अन्य भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा मिला. जिससे भोजपुरी का भला हुआ. उन्होंने भोजपुरी के अनुरूप ही इसका व्याकरण तैयार किया. जिस पर उन्होंने पीएचडी भी किया. विशिष्ट वक्ता नेपाल के गोपाल अश्क ने कहा कि नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्यालय में भोजपुरी की पढ़ायी होती है. उन्होंने समग्र भोजपुरी का इतिहास लिखने का सुझाव दिया. इसमें नेपाल, मॉरीशस, त्रिनिदाद आदि अलग-अलग खंड हो सकते हैं.
संगोष्ठी की अध्यक्षता मॉरीशस की डॉ सरिता बुधु ने की. उन्होंने कहा कि लगातार संघर्ष के बाद वहां भोजपुरी को स्थान मिला. सरकारी टीवी पर भी भोजपुरी को स्थान देना पड़ा. उन्होंने कहा कि भोजपुरी की भार्गव और ऑक्सफोर्ड के समान स्टैंडर्ड शब्दकोश बनाने की जरूरत है. दुनियाभर में इस भाषा और बोलने वालों की कमेटी बने. उपन्यास के वैश्विक परिदृश्य आ भोजपुरी उपन्यास विषय पर संगोष्ठी की अध्यक्षता पटना के भवानी प्रसाद द्विवेदी ने की. इसमें आरा के जितेंद्र कुमार ने बीज वक्तव्य दिया. कन्हैया सिंह सदय विमर्शक थे. बक्सर के डॉ विष्णुदेव तिवारी ने भी अपनी बात रखी. नयी दिल्ली के डॉ राजेश कुमार माझी ने कार्यक्रम का संचालन किया.
समापन सत्र में अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन की नयी कार्यकारिणी घोषित की गयी. सर्वसम्मति से डॉ ब्रजभूषण मिश्र को अध्यक्ष और डॉ जयकांत मिश्र को महामंत्री की जिम्मेदारी दी गयी. सत्र में मुख्य अतिथि कोल इंडिया के मुख्य सतर्कता अधिकारी ब्रजेशे कुमार त्रिपाठी ने कहा कि सभी तन, मन, धन से माई भाषा की सेवा में निष्ठापूर्वक सक्रिय हों. इसका संचालन सूरज सिंह राजपूत ने किया. इस सत्र में ग्यारह प्रस्ताव प्रस्तुत हुए जिन्हें कुछ संसोधनों के साथ सर्वसम्मति से पारित किया गया.
जिसमें प्रमुख था केंद्र सरकार से आग्रह हुआ कि शीघ्रता से भोजपुरी को अष्टम सूची में स्थान दिया जाय. प्रसेनजित तिवारी ने झारखंड सरकार से आग्रह किया कि भोजपुरी को पुनः द्वितीय राजभाषा का दर्जा दे, जिसका समर्थन डॉ संजय पाठक ने किया. सभा ने सर्वसम्मति दी. डॉ अजय ओझा ने धन्यवाद ज्ञापन किया. इससे पहले डॉ निर्भीक व्याख्यान सत्र का संचालन प्रसेनजित तिवारी और प्रथम संगोष्ठी का संचालन मनोज भावुक ने किया.
कवियों ने अपनी रचनाओं का किया पाठ
कवि सम्मेलन में कवियों ने अपनी रचनाओं का सस्वर पाठ किया. इसकी अध्यक्षता डॉ कमलेश राय, ब्रजमोहन देहाती और डॉ रविकेश मिश्र ने किया. इसका उद्घाटन दिनेश्वर सिंह दिनेश ने किया. संचालन डॉ संध्या सिन्हा और गुलरेज शहजाद ने किया. दिल्ली के मनोज भावुक, कोलकाता के ब्रजेश त्रिपाठी, मुजफ्फरपुर के जयकांत सिंह जय, रांची से कनक किशोर, जमशेदपुर से डॉ अजय ओझा, माधव पांडेय निर्मल, रीना सिन्हा, पूनम सिंह, उपासना सिंह, दिव्येंदु त्रिपाठी, माधवी उपाध्याय, पूनम शर्मा स्नेहिल, डॉ वीणा पांडेय भारती, लक्ष्मी सिंह, राजेंद्र शाह राज, सविता सिंह मीरा, शकुंतला शर्मा, शिप्रा सैनी मौर्या, पूनम महानंद सहित गोरखपुर, कानपुर, देवरिया, छत्तीसगढ़ से आये कवियों ने अपनी-अपनी रचना का पाठ किया.