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जुंटा विरोधी समूह के 29 जवानों ने भारत की सीमा लांघकर ली मिजोरम में शरण,क्यों? - श्रीनारद मीडिया

जुंटा विरोधी समूह के 29 जवानों ने भारत की सीमा लांघकर ली मिजोरम में शरण,क्यों?

जुंटा विरोधी समूह के 29 जवानों ने भारत की सीमा लांघकर ली मिजोरम में शरण,क्यों?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

पड़ोसी मुल्क म्यांमार में सैनिकों के शिविर पर जुंटा विरोधी समूह का कब्जा हो गया है। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि उसके बाद लगभग 29 और म्यांमार सैनिक मिजोरम भाग आए हैं। उनके साथ, पीपुल्स डिफेंस फोर्स (पीडीएफ) के साथ हाल ही में हुई गोलीबारी के कारण कुल 74 म्यांमार सैन्यकर्मी मिजोरम भाग गए थे। हालांकि, इनमें से कई सैनिकों को वापस भेज दिया गया था।

मिजोरम की ओर भाग रहे म्यांमार सैनिक

पुलिस महानिरीक्षक (मुख्यालय) लालबियाकथांगा खियांग्ते ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया, “आज 29 और सैनिकों ने तियाउ नदी के पास चंफाई जिले के सैखुमफाई में पुलिस और असम राइफल्स से संपर्क किया। यह भारत और म्यांमार के बीच सीमा के रूप में कार्य करती है।”

कई सैनिकों की हुई देश वापसी

म्यांमार के सैनिक अंतरराष्ट्रीय सीमा से कुछ किलोमीटर दूर चिन राज्य के तुईबुल में अपने शिविर से भाग गए। असम राइफल्स के एक अधिकारी ने कहा कि इन 29 म्यांमार सैनिकों को अभी भी उनके देश वापस नहीं भेजा गया है। एक अधिकारी ने कहा कि कुल 45 सैनिक, जो पड़ोसी देश के चिन राज्य में दो सैन्य ठिकानों पर पीडीएफ के कब्जे के बाद मिजोरम भाग गए थे, उन्हें मंगलवार को म्यांमार की सैन्य सरकार को सौंप दिया गया।

भारत ने गुरुवार को अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास म्यांमार की सेना और जुंटा विरोधी समूहों के बीच लड़ाई को रोकने का आह्वान किया है। दरअसल, इस झड़प के कारण मिजोरम में म्यांमार के लोगों की आमद बढ़ गई है।

2021 में सत्ता पर सेना ने किया कब्जा

फरवरी 2021 में सेना द्वारा तख्तापलट कर सत्ता पर कब्जा करने के बाद से म्यांमार में लोकतंत्र की बहाली की मांग को लेकर व्यापक विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। म्यांमार की सेना अपने विरोधियों और सत्तारूढ़ शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष में शामिल लोगों के खिलाफ हवाई हमले कर रही है।

म्यांमार भारत के रणनीतिक पड़ोसियों में से एक है और नागालैंड और मणिपुर सहित कई पूर्वोत्तर राज्यों के साथ 1,640 किलोमीटर की सीमा साझा करता है। म्यांमार सैन्य शासन द्वारा पड़ोसी देश में तख्तापलट करने के बाद फरवरी 2021 से 31,000 से अधिक म्यांमार नागरिकों ने मिजोरम में शरण ली है।

सशस्त्र बलों के दो हेलिकॉप्टरों ने म्यांमार की सीमा से लगे मिजोरम के चम्फाई जिले के मुख्यालय चम्फाई से मणिपुर के मोरे तक सैनिकों को निकालने के लिए दो-दो उड़ानें भरीं। मोरेह म्यांमार के सागांग क्षेत्र की सीमा पर है। संघर्ष प्रभावित मणिपुर से बचने के लिए ड्रग तस्करों ने मिजोरम के रास्ते नया रास्ता ढूंढ लिया है

अभ्यास की निगरानी कर रहे एक सेना अधिकारी ने कहा, “म्यांमार के सैनिकों को मोरेह से निकालने और उन्हें तामू (मोरेह से निकटतम म्यांमार शहर) की ओर भेजने का पूरा अभियान दोपहर 3 बजे तक समाप्त हो गया था।”

पुलिस के मुताबिक, म्यांमार के इन 29 सैनिकों ने तियाउ नदी के पास चंफाई जिले के सैखुमफाई में पुलिस और असम राइफल्स से संपर्क किया. ये सैनिक अंतरराष्ट्रीय सीमा से कुछ किलोमीटर दूर चिन राज्य के तुईबुअल में अपने शिविर से भागकर भारत पहुंचे. असम राइफल्स के मुताबिक, इन सैनिकों को म्यांमार भेजा जाना है.

अधिकारियों के मुताबिक, कुल 45 सैनिक, जो पड़ोसी देश के चिन राज्य में दो सैन्य ठिकानों पर पीडीएफ के कब्जे के बाद मिजोरम भाग गए थे, उन्हें मंगलवार को म्यांमार की सैन्य सरकार को सौंप दिया गया.  भारत ने गुरुवार को अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास म्यांमार की सेना और जुंटा विरोधी समूहों के बीच लड़ाई को रोकने की अपील की. इस लड़ाई के चलते म्यांमार से बड़ी संख्या में लोग भारत आ रहे हैं.

म्यांमार भारत का पड़ोसी देश है. नागालैंड और मणिपुर समेत कई पूर्वोत्तर राज्यों के साथ इसकी 1,640 किलोमीटर की सीमा भारत से मिलती है. म्यांमार में 2021 में सेना द्वारा तख्तापलट के बाद से लोकतंत्र की बहाली की मांग को लेकर व्यापक विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. म्यांमार की सेना अपने विरोधियों और सत्तारूढ़ शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष में शामिल लोगों के खिलाफ हवाई हमले करती रही है. म्यांमार सैन्य शासन द्वारा तख्तापलट करने के बाद फरवरी 2021 से 31,000 से अधिक म्यांमार नागरिकों ने मिजोरम में शरण ली है.

म्यांमार सेना के खिलाफ खोला मोर्चा

म्यांमार में अब लोकतंत्र समर्थक फोर्सेस और सेना के बीच जंग छिड़ गई है. लोकतंत्र समर्थक फोर्सेस ने सेना के खिलाफ 27 अक्टूबर को ऑपरेशन लॉन्च किया है. विद्रोही गुट म्यांमार की सेना को निशाना बना रहे हैं. इस ऑपरेशन में म्यांमार के तीन विद्रोही गुट साथ आए. ये गुट अराकन आर्मी (AA), म्यांमार नेशनल डिफेंस अलायंस आर्मी (MNDAA) और ताआंग नेशनल लिबरेशन आर्मी (TNLA) हैं.

म्यांमार नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस आर्मी इन तीनों में सबसे ताकतवर मानी जाती है. ऑपरेशन को यही लीड कर रही है. इसका गठन 1989 में हुआ था. इसमें लगभग 6 हजार लड़ाके हैं. जबकि अराकन आर्मी का गठन 2009 में हुआ था. ये रखाइन प्रांत में एक्टिव है और यूनाइटेड लीग ऑफ अराकन (ULA) की मिलिट्री विंग है. इसके नेता त्वान म्राट नाइंग हैं. माना जाता है कि इसके पास 35 हजार से ज्यादा लड़ाके हैं, जो काचिन, रखाइन और शान प्रांत में एक्टिव हैं. वहीं, TNLA पलाउंग स्टेट लिबरेशन फ्रंट (PSLF) की मिलिट्री विंग है. 2005 में सरकार के साथ समझौते के बाद TNLA का विघटन हो गया था. 2011 में इसे फिर से गठित किया गया. माना जाता है कि इसमें आठ हजार के आसपास लड़ाके हैं.

सेना पर क्यों हो रहे हमले?

म्यांमार में लोकतंत्र समर्थक फोर्सेस के इस ऑपरेशन का मकसद वहां के सैन्य शासन का मुकाबला करना है. ‘ब्रदरहुड अलायंस’ के नाम से बना ये विद्रोही गठबंधन उत्तरी शान प्रांत में सेना और उसके सहयोगी सैन्य संगठनों को खदेड़ना है. ये प्रांत म्यांमार-चीन सीमा के पास पड़ता है. 27 अक्टूबर को अलायंस ने बयान जारी कर कहा था कि उनके ऑपरेशन का मकसद नागरिकों की रक्षा करना, आत्मरक्षा करना, अपने इलाकों पर नियंत्रण हासिल करना और म्यांमार सेना के हमलों और हवाई हमलों का जवाब देना है. बयान में ये भी कहा था कि सैन्य शासन का पूरी तरह से सफाया करना है, और म्यांमार की पूरी आबादी भी यही चाहती है.

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