30 नवम्बर  :  जगदीश चन्द्र बोस, जन्मदिवस  पर विशेष

30 नवम्बर : जगदीश चन्द्र बोस,  जन्मदिवस  पर विशेष

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

भारत के पहले आधुनिक वैज्ञानिक कहे जाने वाले जगदीश चंद्र बोस का जन्म (30 नवंबर) एवं पुण्यतिथि (23 नवंबर) दोनों एक ही सप्ताह में पड़ते हैं। कोलकाता स्थित बोस इंस्टीट्यूट या बोस विज्ञान मंदिर को 30 नवंबर 1917 में इस संस्थान को स्थापित किया गया था। बोस ने अपना अधिकांश शोधकार्य किसी प्रयोग शाला एवं उन्नत उपकरणों के बिना किया था और वह एक अच्छी प्रयोग शाला बनाना चाहते थे। बोस इंस्टीट्यूट उनकी इसी सोच का परिणाम है, जो विज्ञान में शोध-कार्य के लिए एक प्रसिद्ध केंद्र है।

रेडियो और सूक्ष्म तरंगों पर अध्ययन करने वाले जगदीश चन्द्र बोस पहले भारतीय वैज्ञानिक थे। विभिन्न संचार माध्यमों, जैसे- रेडियो, टेलीविजन, रडार, सुदूर संवदेन यानी रिमोट सेंसिंग सहित माइक्रोवेव ओवन की कार्यप्रणाली में बोस का योगदान अहम है। आज पूरीदुनिया बोस को मार्कोनी के साथ बेतार संचार के पथप्रर्दशक कार्य के लिए रेडियो का सह-आविष्कारक मानती है।

जगदीशचन्द्र बोस का दो महत्वपूर्ण क्षेत्रों में योगदान रहा है। एक ओर जहां उन्होंने बहुत छोटी तरंगें उत्पन्न करने का तरीका दिखाया, वहीं दूसरी तरफ हेनरिक हर्ट्ज के रिसीवर को उन्होंने एक उन्नत रूप दिया। बोस द्वारा आविष्कार की गई सूक्ष्म तरंगों की तकनीक पिछले कुछ दशकों में दुनिया भर में विभिन्न क्षेत्रों में सफलतापूर्वक प्रयोग की जा रही है।

कुछ समय पूर्व जब यह साबित हुआ कि मार्कोनी के वायरलेस या बेतार रिसीवर का आविष्कार जगदीश चन्द्र बोस ने किया था तो यह जानकर सभी हैरान थे। बहुत कम लोग जानते हैं कि मार्कोनी ने इस रिसीवर का एक संशोधित वायरलेस यंत्र उपयोग किया था, जो मर्करी ऑटो कोहेरर था। इसी से पहली बार वर्ष 1901 में अटलांटिक महासागर के पार बेतार संकेत प्राप्त हुआ था। मार्कोनी के प्रदर्शन से पहले ही वर्ष 1885 में बोस ने रेडियो तरंगों द्वारा बेतार संचार का प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन में जगदीश चंद्र बोस ने दूर से एक घंटी बजाकर बारूद में विस्फोट कराया, जो तरंगों की ताकत का एक नमूना ही था।

बोस ने ऐसे यंत्र का निर्माण किया, जिससे 25 मिलीमीटर से पांच मिलीमीटर तक सूक्ष्म तरंगें उत्पन्न की जा सकती थीं। यह यंत्र इतना छोटा था कि उसे एक छोटे बक्से में कहीं भी ले जाया जा सकता था। उन्होंने दुनिया को उस समय एक बिल्कुल नई तरह की रेडियो तरंग दिखाई, जो एक सेंटीमीटर से पांच मिलिमीटर की थी, जिसे आज माइक्रोवेव या सूक्ष्म तरंग कहा जाता है। बोस ने ही सब से पहले दर्शाया था कि विद्युत चुम्बकीय तरंगें किसी सुदूर स्थल तक हवा के सहारे पहुंच सकती हैं। ये तरंगें किसी क्रिया को दूसरे स्थान से नियंत्रित भी कर सकती हैं। उनकी यही धारणा बाद में रिमोट कंट्रोल सिस्टम का सैद्धांतिक आधार बनीं। उनके उल्लेखनीय कार्यों के लिए ‘इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रिकल ऐण्ड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर्स’ ने जगदीश चन्द्र बोस को अपने ‘वायरलेस हॉल ऑफ फेम’ में सम्मिलित किया है।

19वीं सदी के अंत तक जगदीशचंद्र बोस की शोध रुचि विद्युत चुम्बकीय तरंगों से हटकर जीवन के भौतिक पहलुओं की ओर होने लगी। उनका मानना था कि सजीव और निर्जीव या निष्क्रिय पदार्थों के रास्ते कहीं न कहीं आपस में मिलते जरूर हैं और इस मिलन मे विद्युत चुम्बकीय तरंगे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

अपने इसी विचार के आधार पर बोस ने पादप कोशिकाओं पर विद्युतीय संकेतों के प्रभाव का अध्ययन किया। उनके प्रयोग इस तथ्य की ओर संकेत कर रहे थे कि संभवत: सभी पादप कोशिकाओं में उत्तेजित होने की क्षमता होती है। ठंडक, गर्मी, काटे जाने, स्पर्श और विद्युत उद्दीपन के साथ-साथ बाहरी नमी के कारण भी पौधों में क्रिया स्थितिज यानी एक्शन पोटेंशल उत्पन्न हो सकती है। उनके इस चिन्तन का आधार उन के द्वारा वायरलेस पर किया गया शोध था। उन्होंने जब देखा कि वायरलेस बार-बार संकेत प्राप्त करते-करते थक जाते हैं तो उनकी दक्षता में कमी आ जाती है। जीवों में भी ठीक ऐसा ही होता है। उन्होंने ऐसे संवेदनशील यंत्र बनाए, जो पौधों में भौतिक, रासायनिक, यांत्रिक या विद्युतीय स्तर की अति सूक्ष्म जैविक क्रियायों को भी दर्ज कर सकते थे।

वर्ष 1901 से, बोस ने पौधों पर विद्युतीय संकेतों के प्रभाव का अध्ययन किया और इस कार्य के लिए उन्होंने ऐसे पौधों का चयन किया, जो उद्दीपन से पर्याप्त-रूपेण उत्तेजित हो सकते थे। बोस ने अपने प्रयोग के लिए छुई-मुई यानी मिमोसा पुडिका और शालपर्णी यानी डेस्मोंडियम गाइरेंस का उपयोग किया। छुई-मुई को लाजवन्ती भी कहते हैं, अगर इसकी पत्तियों को छुएं तो वे एक दूसरे की ओर झुकने लगतीं हैं। बोस ने डिसमोडियम गायरेन्स के विद्युतीय स्पंदन को जीवों की रिकॉर्ड की गई हृदयगति से तुलना करने के लिए स्पन्दन रिकॉर्डर का प्रयोग किया।

बोस ने दर्शाया कि पौधों में हमारी तरह ही दर्द का एहसास होता है। अगर पौधों को काटा जाए या फिर उनमें जहर डाल दिया जाए तो उन्हें भी तकलीफ होती है और वह मर भी सकते हैं। उन्होंने एक सभागार में इस बात को प्रयोग के माध्यम से सार्वजनिक रूप से दर्शाया तो लोग दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हो गए। बोस ने एक पौधे में जहर का इंजेक्शन लगाया और वहां बैठे वैज्ञानिकों से कहा- अभी आप सब देखेंगे कि इस पौधे की मृत्यु कैसे होती है।

उन्होंने प्रयोग शुरू किया और जहर का इंजेक्शन पौधे को लगाया। पर, पौधे पर कोई असर नहीं हुआ। अपनी खोज पर उन्हें इतना दृढ़ विश्वास था कि उन्होंने भरी सभा में जहरीले इंजेक्शन की परवाह किए बिना कह दिया कि अगर इस इंजेक्शन का इस पौधे पर कोई असर नहीं हुआ तो दूसरे सजीव प्राणी, यानी मुझ पर भी इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा। बोस स्वयं को इंजेक्शन लगाने ही जा रहे थे कि दर्शकों के बीच से एक आदमी खड़ा हुआ और कहा-‘मैं अपनी हार मानता हूं, मिस्टर जगदीश चंद्र बोस, मैंने ही जहर की जगह एक मिलते-जुलते रंग का पानी डाल दिया था।’ बोस ने फिर प्रयोग शुरूकिया और पौधा सभी के सामने मुरझाने लगा।

एक अन्य अध्ययन क्षेत्र, जिस ने बसु को आकर्षित किया, वह था पौधों में जड़ों से तने और पत्ते और फुन्गियों तक पानी का ऊपर चढ़ना। पौधे जो पानी सोखते हैं, उसमें अनेक प्रकार के कार्बन तथा अकार्बनिक तत्व भी होते हैं। यह जलीय मिश्रण का पौधों में ऊपर चढ़ना “असेन्ट ऑफ सैप” कहलाता है। पौधों की वृद्धि और अन्यजैविक क्रियाओं पर समय के प्रभाव के अध्ययन की बुनियाद जगदीश चंद्र ने डाली थी, जो आज विज्ञान की एक शाखा क्रोनोबायोलॉजी के नाम से प्रसिद्ध है।

एक छोटे से गांव से शिक्षा प्राप्त करने वाले जगदीश चंद्र ने अपने अविष्कारों से पूरी दुनिया से परिचित कराया था। जगदीशचंद्र की लिखित वैज्ञानिक कथाएं आज भी आधुनिक वैज्ञानिकों को प्रेरित करती हैं। उन्हें बंगाली विज्ञान कथा-साहित्य का पिता भी माना जाता है।

 

यह भी पढ़े

राजस्थान में 19 साल के रेपिस्ट को फांसी की सजा

मुजफ्फरपुर में डॉक्‍टर की लापरवाही ने छीन ली 24 से अधिक लोगों के आंखों की रोशनी, कइयों की निकालनी होगी आंख

ई-विन प्रणाली बनाए रखती है वैक्सीन की गुणवत्ता

कंगारू मदर केयर नवजात शिशुओं के लिए साबित होता है वरदान

भगवानपुर हाट में छिटफूट घटनाओं को छोड़ शांति पूर्ण माहौल में  चुनाव  हुआ सम्पन्न , 53 प्रतिशत मतदाताओं ने किया मतदान

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!