शराब के धंधे से जुड़े 38 फीसदी बंदी मंडल कारा में बंद, 676 बंदियों में 33 महिलाएं भी शामिल
30 रुपये की एक गिलास शराब जान पर भारी
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बिहार सारण में जहरीली शराब पीने से लगातार बढ़ती मौत व बीमारों के आंकड़ों के बीच पुलिस व उत्पाद विभाग की सक्रियता से जहां लगभग डेढ़ सौ लोगों को तीन दिनों में शराब के सेवन या शराब के धंधे में गिरफ्तार कर जेल भेजा गया है. वहीं शराबियों की संख्या मंडल कारा में उपस्थित कुल बंदियों की संख्या के 38 फीसदी के करीब है. जिनमें अधिकतर धंधेबाज , नियमित शराब का सेवन करने वाले पुरुष एवं महिला शामिल है.
ऐसी स्थिति में मंडल कारा के भीतर भी नशे के लत वाले कई बंदियों की कारगुजारियां कारा प्रशासन के लिए परेशानी का कारण आये दिन बनती रही है. परंतु, कारा प्रशासन जेल मैनुअल का हर संभव पालन कराने के लिए नियमानुसार ऐसे बंदियों पर कार्रवाई करता है. इसे लेकर कभी-कभी ऐसे बंदियों में जहां दबी जुबान नाराजगी देखी जाती है. वहीं कई सामान्य बंदी ऐसे बंदियों की कारगुजारियों से मंडल कारा में रहने वाले सामान्य बंदी भी परेशान है.
शराब के धंधे से जुड़े 38 फीसदी बंदी मंडल कारा में बंद
सरकार के द्वारा शराब पीने पर पहली बार पकड़े जाने वाले लोगों को थाना स्तर से ही जुर्माना कर छोड़ने का निर्देश है. परंतु, जिले में शराब के निर्माण, आयात, वितरण, भंडारण के धंधे में लगे हजारों की संख्या में पुरुष व महिला के कारण एक ओर जहां शराबबंदी के बावजूद गांव-गांव में यह धंधा फैल गया है. जिसमें पुरूषों के साथ-साथ महिलाएं भी बढ़-चढ़कर काम कर रही है. कई स्थानों पर तो, जब पुलिस छापामारी करने के लिए शराब के अड्डे पर जाती है तो पुरुष जहां गायब हो जाते है.
वहीं महिलाएं मोर्चा संभाल लेती है . उनके विरोध के कारण पुलिस को परेशानी होती है. मशरक, इसुआपुर की घटना के बाद गुरुवार को जब मढ़ौरा के लालापुर में छापामारी करने पुलिस गयी तो शराब का धंधा करने वाली एक महिला ने खुलेआम कहा कि हर महीना जब थाने को नजराना देते है तो छापेमारी किस बात की.
2078 बंदियों में 776 बंदी शराब के मामले से संबंधित
मंडल कारा से प्राप्त जानकारी के अनुसार मंडल कारा में शुक्रवार की सुबह बंदियों की कुल संख्या 2078 थी. जिसमें 776 बंदी शराब से संबंधित मामलों के थे. जिनमें शराब सेवन, बेचने, भंडारण आदि से जुड़े है. मंडल कारा की क्षमता 931 बंदियों के रखने की है. परंतु, शराब से जुड़े मामले में हर रोज इतने ज्यादा व्यक्ति गिरफ्तार होकर आ रहे है कि मंडल कारा में रहने वाले सामान्य बंदियों को जगह के अभाव में भेड़ बकरियों के सामान रहने की मजबूरी होती है.
मंडल कारा छपरा के काराधीक्षक राधेश्याम सुमन ने बताया कि मंडल कारा में 931 बंदियों के रखने की क्षमता है. वर्तमान में 2070 बंदी है. जिनमें 776 शराब से जुड़े बंदी है. इनमें 33 महिला शराब के धंधे में गिरफ्तार होकर आयी है. शराब से जुड़े बंदियों की कारगुजारियों के कारण मंडल कारा में रहने वाले सामान्य बंदियों को परेशानी होती है. परंतु, जेल मैनुअल के अनुसार व्यवस्था को बेहतर बनाने का प्रयास किया जाता है.
30 रुपये की एक गिलास शराब जान पर भारी
श्मशान घाट, कब्रिस्तान, बरात वाले घर के आस-पास और कंस्ट्रक्शन साइट के नजदीक शराब के धंधेबाज शाम पांच बजे के बाद ही सक्रिय हो जाते हैं. कोड वर्ड ’10 रुपया में निमकी 50 रुपया में चिमकी’ के साथ तीन से चार मिनट में ही शराब की ग्लास दे दी जाती है. वहीं कई बार 20 से 30 रुपये का ग्लास भी दिया जाता है.
विदित हो कि करीब 10 साल पहले गली मुहल्लों वह दियारा इलाकों में दो रुपया निमकी, पांच रुपया चिमकी के कोड वर्ड के साथ देशी शराब बेची जाती थी. आज उसी कोड वर्ड को शराबबंदी के बाद धंधेबाज इस्तेमाल कर रहे हैं. वहीं रोजाना शराब पीने वाले भली-भांति इस कोडवर्ड से परिचित होते हैं. शुक्रवार को सदर अस्पताल में बीमार होकर भर्ती हुए तरैया के मुकेश कुमार सिंह ने बताया कि उसने 50 रुपये ग्लास शराब खरीदकर पी है.
200 एमएल प्लास्टिक के ग्लास में बेचते हैं शराब
हालांकि बीमार होने के बाद उसे कुछ भी ठीक से याद नहीं आ रहा था. लेकिन उसने इतना जरूर कहा कि मशरक चिमनी के पास श्मशान घाट के नजदीकी जाकर उसने शराब पी थी. जो 32 मौतें हुई हैं. उसमें से 15 से अधिक लोगों ने बीमार अवस्था में यह बात कही थी कि मशरक यदु मोड़ के चिमनी के पीछे ही जाकर 30 से 50 रुपये में शराब खरीदी थी. यह शराब उन्हें 200 एमएल के प्लास्टिक के ग्लास में दी गयी. कुछ लोग पॉलिथीन में भी शराब लेकर घर आये थे. जरूरत के हिसाब से बदलता रहता है अड्डा : जरूरत के हिसाब से शराब के धंधेबाज बिक्री का अड्डा भी बदलते रहते हैं. पहले धंधेबाजों द्वारा पता कर लिया जाता है कि गांव में कहां बारात आने वाली है.
रात के अंधेरे में मजदूर से लेकर संभ्रांत भी आते हैं पीने
बारात लगने की घंटे पहले वह गांव के किसी सुनसान इलाके में जाकर शराब की खेप रख देते हैं. वहीं अपने ही कुछ आदमियों को भेजकर शराब की डिमांड करने वाले बरातियों को सुनसान इलाके तक बुला लिया जाता है. सदर अस्पताल में बीमार लोगों के साथ पहुंचे परिजनों ने बताया कि शराब पीने से भले ही मजदूर वर्ग के लोगों की मौत अधिक होती है. लेकिन ग्रामीण इलाकों में जहां गुपचुप रूप से शराब बेची जाती है. वहां पीने वाले सिर्फ मजदूर ही नहीं बल्कि संभ्रांत घर के लोग भी होते हैं. कई टीनेजर भी चार पहिया वाहनों से गांव के सुदूर इलाकों में शराब खोजते पहुंचते हैं.
पीने के तीन मिनट बाद ही पेट में शुरू हो रहा दर्द
मशरक के यदु मोड़ के पास एक ही बस्ती के जिन पांच लोगों की मौत हुई है. वह सभी संभ्रांत परिवार के बताये जा रहे हैं. वहीं कुछ के घर में तो देशी शराब की पाउच भी बरामद हुई है. मुकेश मांझी व रघुनाथ महतो के परिजनों ने बताया कि बीमार होने से पहले उन दोनों ने कहा था कि शराब पीने के दो से तीन मिनट बाद ही पेट में तेज दर्द शुरू हो गया. आंख के आगे अंधेरा छाने लगा था. यह दोनों पहले भी गांव के किसी जगह पर जाकर शराब पीया करते थे. लेकिन उन्हें ऐसी समस्या कभी नहीं हुई थी.