41 मजदूरों को निकाला जा रहा बाहर,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में एक सुरंग में फंसे 41 जिंदगियों को आखिरकार 17 दिनों के बाद नई जिंदगी मिलती हुई दिखाई दे रही है। सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को अब धीरे-धीरे निकाला जा रहा है। कुछ देर में सभी श्रमिक पूरी तरीके से बाहर होंगे। उन्हें मेडिकल जांच के लिए अस्पताल ले जाया जाएगा। साथ ही साथ उन्हें हर तरह की सुविधा दी जाएगी। खुद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और केंद्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह सुरंग में मौजूद रहे। यह दोनों लगातार सुरंग के पास डटे रहे। सबसे पहले 5 श्रमिकों को बाहर निकाला गया। मंगलवार को बचाव अभियान अंतिम चरण में पहुंचने पर सिल्कयारा सुरंग के अंदर फंसे एक श्रमिक के रिश्तेदार ने कहा, “मैं बहुत खुश हूं”।
सिलक्यारा सुरंग में बचावकर्मियों ने 50 मीटर की दूरी को पार कर लिया है और पिछले 16 दिन से फंसे श्रमिकों तक पहुंचने के लिए रैट होल माइनिंग तकनीक से ड्रिलिंग की जा रही है। मजदूरों को कुछ ही समय में बाहर निकाल लिया जाएगा। तेजी से रैट माइनिंग के जरिए मजदूरों तक पहुंचने की कवायद जारी है। मजदूरों को सकुशल बाहर निकालने के लिए 12 रैट होल माइनिंग विशेषज्ञों को लगाया गया है।
वहीं जब भारी मशीनें भी रेस्क्यू ऑपरेशन में फेल हो गई तो रैट माइनर्स के जरिए खुदाई होने लगी है। ये चूहे की तरह की काम करते है। रैट माइनर्स की खासियत है कि ये चूहे की तरह कम जगह में तेज खुदाई करते है। इन रैट माइनर्स की टीम के भरोसे ही 41 मजदूरों का जीवन है। बता दें कि ये रैट माइनर्स साबल, हथौड़ा और खुदाई करने वाले कई अहम टूल्स के जरिए खुदाई कर रहे है। इनके द्वारा खुदाई की तकनीक इतनी बेहतरीन है कि ये कम समय में जल्दी खुदाई करने में सक्षम है।
जानकारी के मुताबिक रैट माइनर्स टनल की ड्रिलिंग को मैन्युअली अंजाम दे रहे है। इस तकनीक के जरिए काम करने के लिए कुल 12 एक्सपर्ट्स की टीमें जुटी हुई है। ये टीम रोटेशन के आधार पर काम कर रही है। खबर लिखे जाने तक सिर्फ तीन मीटर की खुदाई का काम ही शेष बचा है।
क्या है रैट माइनिंग तकनीक
बता दें कि रैट माइनिंग एक तकनीक है जो मूल रूप से माइनिंग करने में उपयोग की जाती है। इस तकनीक का उपयोग कोयला निकालने के लिए किया जाता है। संकरी खदानों से माइनिंग करने के लिए इस तकनीक का उपयोग होता है। रैट होल शब्द खुद ही ये बताता है कि जमीन में खोदे गए गड्ढे, यानी ये खुदाई की ही तकनीक है। ये एक व्यक्ति के उतरने जितनी जगह में होती है, इससे कोयला निकालने में मदद मिलती है। बता दें कि जब इस तकनीक का उपयोग कर गड्ढा खोदा जाता है तो गड्ढा खोदने के बाद माइनर रस्सियों या बांस की सीढ़ियों का उपयोग करते है। कोयले को सुरंग से गैंती, फावड़े और टोकरियों की मदद से निकाला जाता है।
रैट-होल खनिकों को अपने ड्रिलर्स के साथ उत्तरकाशी में सिल्क्यारा सुरंग से बाहर निकलते देखा गया। इसके अलावा, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमों को ढहने वाली जगह पर फंसे 41 श्रमिकों को निकालने के लिए अपने गियर के साथ प्रवेश करते देखा गया। 12 रैट-होल खनन विशेषज्ञ ढहने वाली जगह पर क्षैतिज उत्खनन पर काम कर रहे थे। रैट-होल खनन भारत में प्रचलित कोयला निष्कर्षण की एक आदिम और खतरनाक विधि है।
बचाव अभियान की सफलता की सूचना आते ही सुरंग के बाहर खड़े श्रमिकों ने जय श्रीराम के नाम का जयकारा लगाया। इससे पहले, लारसन एंड टयूबरों टीम का नेतृत्व कर रहे क्रिस कूपर ने श्रमिकों का इंतजार जल्द खत्म होने की भविष्यवाणी की थी। उन्होंने संवाददाताओं को बताया था कि श्रमिक शाम पांच बजे तक बाहर आ सकते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि श्रमिकों तक पहुंचने के लिए विकल्प के तौर पर की जा रही लंबवत ड्रिलिंग को अब रोक दिया गया है। भारी और शक्तिशाली 25 टन वजनी अमेरिकी ऑगर मशीन से सुरंग में क्षैतिज ड्रिलिंग के दौरान शुक्रवार को मशीन के कई हिस्से मलबे में फंसने के कारण काम में व्यवधान आ गया। इसके बाद सुरंग में हाथ से ड्रिल कर पाइप डालने की रणनीति अपनाई गयी।
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