वसंत पंचमी का पर्व 3 फरवरी सोमवार को हर्षोल्लास के साथ मनाई जायेगी।
सिवान जिला के सभी प्रखंडो सहित दारौंदा प्रखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों तथा शिक्षण संस्थानों में वसंत पंचमी 03 फरवरी सोमवार को बड़े धूम धाम तथा हर्षोल्लास के साथ मनाई जायेगी।
श्री नारद मीडिया, उत्तम कुमार, दारौंदा, सिवान (बिहार )।
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इस साल वसंत पंचमी कब हैं, असमंजस बना हुआ हैं।इसको लेकर बगौरा निवासी पण्डित कमल किशोर पाण्डेय ने पंचांग के अनुसार बताया कि पंचमी तिथि 02 फरवरी रविवार को दिन में 11बजकर 53 मिनट से शुरू होगी। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार वसंत पंचमी 03 फरवरी सोमवार को मनाया जायेगा।इसमें कोई संशय नहीं हैं।
प्रसिद्ध एवं सर्वमान्य पर्व वसंत पंचमी माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है।
धर्मग्रंथों के अनुसार इस दिन ही देवी सरस्वती श्वेत वर्ण, हाथों में पुस्तक, माला और वीणा हाथ में लिए हुए प्रकट हुई, तब समस्त देवी देवताओं ने माँ सरस्वती की स्तुति की थी। ब्रह्मा जी ने उन्हें सर्वप्रथम वाणी की देवी सरस्वती के नाम से पुकारा और समस्त जीवों को वाणी प्रदान करने के लिए कहा।
इसी उपलक्ष्य में घर, मंदिरो व सभी शिक्षण संस्थानों में मां सरस्वती की आराधना और पूजन अर्चन पूजा का भव्य आयोजन किया जाता हैं। यह दिन विद्यार्थियों के लिए खास माना गया हैं। मां सरस्वती को विद्या, वुद्धि, संगीत और रचनात्मकता की देवी कहा जाता हैं।
देवी की उपासना से विद्यार्थियों के कला और कौशल में निखार और ज्ञान में वृद्धि होती हैं।
इसलिए इस दिन को श्री पंचमी, माघ पंचमी, वसंत पंचमी या सरस्वती पूजा के नाम से भी जानते हैं।
माता सरस्वती जी की पूजा के लिए सामग्री :-
माँ सरस्वती की तस्वीर, पीला वस्त्र, पीला अक्षत, हल्दी चूर्ण, रोली, सिंदूर,अवीर, पीला चन्दन, पान, कशैली, लौंग, लाइची, माचिस, अगरबत्ती, फूलबती, घी,पंचमेवा, गडीगोला, दीपक,कलश, पीला या सफेद फूल,दूब,विल्वपत्र,आम्रपल्लव, शमीपत्र,कपूर, मौली,फल, मिठाई, गंगाजल, गाय के दूध, दही, मधु,मीठा खीर, मालपुआ इत्यादि।
वही पण्डित राकेश भारद्वाज ने कहा कि इस दिन विद्यानुरागी श्रद्धालुजन माँ सरस्वती की प्रतिमा स्थापित कर पूजन अर्चन करते हैं तथा ज्ञान की देवी सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए सरस्वती स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। वसंत पंचमी को देवी सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता हैं। वसंत पंचमी से ही वसंत ऋतु की शुरुआत होती है। यह प्रकृति के उत्सव का पर्व हैं।