परीक्षा के डर से बचाएगा 4 आर फॉर्मूला
परीक्षा के नजदीक आने पर यदि परीक्षार्थी अपने को रिचार्ज करें, रिवीजन पर फोकस करें, रिलैक्स रहने का प्रयास करें और रिस्ट्रिक्टेड यूज करें सोशल मीडिया का तो रहेंगे तनाव मुक्त
✍️डॉक्टर गणेश दत्त पाठक, श्रीनारद मीडिया :
वर्तमान समय में परीक्षा एक अध्ययन की प्रक्रिया न रहकर अपितु दहशत का पर्याय बन चुका है। स्थिति यह है कि परीक्षा के तनाव के कारण हमारे समाज के कई बच्चे अवसाद में आ जा रहे हैं तो कई आत्महत्या तक कर ले रहे हैं। अभी आगे कुछ दिनों में बोर्ड की परीक्षा और कुछ अन्य प्रतियोगिता परीक्षाएं भी होनी है। परीक्षा के डर के कारण हमारे कई बच्चे अभी दहशत में दिखाई दे रहे हैं। अभिभावकों की अपेक्षाएं चरम पर है तो स्कूल और शिक्षकों की अपेक्षाएं भी चरम पर हैं। परंतु बच्चों के दहशत के बारे में सभी मौन हैं। ऐसे में बहुत जरूरी उन उपायों को जानना है जिनको अपना कर हम अपने बच्चों को परीक्षा के डर से मुक्ति दिला सकते हैं। इसमें 4 R फॉर्मूला यानी परीक्षा के नजदीक आने पर यदि परीक्षार्थी अपने को रिचार्ज करें, रिवीजन पर फोकस करें, रिलैक्स रहने का प्रयास करें और रिस्ट्रिक्टेड यूज करें सोशल मीडिया का तो बच्चे और युवा परीक्षा के डर से काफी हद तक मुक्त रह सकते हैं।
परीक्षा का डर एक आम समस्या है, जो कई छात्रों को प्रभावित करती है और आज के दौर में एक बड़ी सामाजिक और शैक्षणिक चुनौती बनता जा रहा है। यह डर परीक्षा के दौरान या उसके पहले हो सकता है, और इसके कई कारण हो सकते हैं। आज के दौर में प्रतिस्पर्धा में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी होती जा रही है। यह प्रतिस्पर्धा मात्रात्मक और गुणात्मक स्तर पर बढ़ती जा रही है। आज के उपभोक्तावादी युग में माता पिता की अपेक्षाएं भी बढ़ती जा रही है। तगड़ी प्रतिस्पर्धा के दौर में विशेष तौर निजी स्कूलों के प्रबंधक बच्चों के अर्जित अंक को अपनी प्रतिष्ठा का आधार बना लेते हैं और बच्चों से अपनी अपेक्षाओं को पूरी करने के लिए भरपूर दवाब बनाते हैं। सामाजिक स्तर पर परीक्षाओं में छात्रों द्वारा अर्जित अंक स्टेट्स सिंबल का आधार भी बन चुके हैं। इन सभी के कारण हमारे बच्चे बेहद तनाव में आ रहे हैं और जैसे जैसे परीक्षा के दिन नजदीक आते जाते हैं यह परीक्षा का डर बच्चों के मानस में तांडव मचाने लगता है।
कभी कभी परीक्षा के परिणामों की अनिर्धारितता, प्रतिस्पर्धा के कारण छात्रों को डर लगता है। कभी स्कूल, शिक्षकों, माता पिता की अपेक्षाओं के कारण छात्रों को डर लगता है। इसका असर यह होता है कि परीक्षा के डर के कारण बच्चे तनाव में आ जाते हैं। उनकी रातों की नींद गायब हो जाती है। उन्हें भूख भी नहीं लगता और कम खाने के कारण शरीर को आवश्यक ऊर्जा की आपूर्ति नहीं हो पाती है कभी कभी उन्हें चक्कर भी आने लगता है। परीक्षा के डर के कारण छात्रों की एकाग्रता में भी बड़ी बाधा उत्पन्न होने लगती है और उनके आत्मविश्वास पर भी बेहद नकारात्मक असर पड़ता है। छात्रों में परीक्षा के डर के कारण जनित तनाव के कारण उनके मेमोरी क्षमता पर भी घातक असर होता है और उनका परीक्षा के दौरान अकादमिक प्रदर्शन बेहद नकारात्मक ही रहता है।
परीक्षा के डर के कारण सामाजिक और व्यक्तिगत संबंधों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। परीक्षा के डर के कारण छात्रों में सामाजिक अलगाव की भावना बढ़ती है उनके व्यक्तिगत संबंधों पर असर पड़ता है। परीक्षा के डर के कारण उत्पन्न मानसिक तनाव के दीर्घकालिक कुप्रभाव भी देखने को मिलते हैं। उनका व्यक्तिगत विकास पर भी प्रभाव पड़ता है।
ऐसे में यह कहना बिल्कुल उचित है कि परीक्षा का डर एक बड़ी चुनौती है जिसका सामना हम सभी को करना है। इस डर के निराकरण में माता पिता, बच्चों, स्कूल प्रबंधन सभी की भूमिका हैं। सबसे पहले हम परीक्षा के डर से मुक्ति के लिए हम चार आर फार्मूले की चर्चा करते हैं। परीक्षा के डर से मुक्ति के लिए यह चार आर संकल्पना बेहद अहम हैं। चार आर यानी रिचार्ज, रिवीजन, रिलैक्स और रिस्ट्रिक्टेड यूज ऑफ इंटरनेट और सोशल मीडिया है।
चार आर फार्मूले का सबसे अहम हिस्सा पहला आर यानी रिचार्ज होने से है। रिचार्ज का आशय यह है कि परीक्षा जब नजदीक आने लगे तो छात्रों को अपने को मानसिक तौर पर रिचार्ज करने के प्रयास करने चाहिए। छात्रों के मानसिक तौर पर रिचार्ज में अहम भूमिका माता पिता, नाते रिश्तेदार, स्कूल प्रबंधन, शिक्षकों की भी होती है। रिचार्ज होने का मतलब यह होता है कि छात्र अपने जीवन की सकारात्मक, सृजनात्मक उपलब्धियों को याद करे। माता पिता भी बच्चों की सकारात्मक उपलब्धियों को उन्हें समय समय पर बताएं तो इसका असर यह होगा कि छात्र के आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होगी और वह ऊर्जस्वित महसूस करेगा। नाश्ते के समय, खाने के समय इस गतिविधि पर काम होना चाहिए। बच्चे जब सकारात्मक उपलब्धियों को याद कर रिचार्ज रहेंगे तो उनके तनाव में आने की आशंकाएं न्यूनतम रहेगी।
दूसरे आर से अभिप्राय रिवीजन से है। अर्थात छात्रों ने पूर्व में जो अध्ययन किया है उसे बार बार दोहराएं और रिवीजन करें। ऐसा करने से बच्चों को विषय सामग्री के तथ्य अच्छे से याद हो जाएंगे। बार बार पढ़ने से तथ्य और संकल्पना पर अच्छी पकड़ भी बनती है। इसका निश्चित तौर पर परीक्षा के दौरान प्रदर्शन पर बेहद सकारात्मक असर पड़ता है। परीक्षा नजदीक आने के पूर्व ही छात्रों को अपना पाठ्यक्रम पूर्ण कर लेना चाहिए। परीक्षा के नजदीक आने पर नियमित तौर पर ज्यादा से ज्यादा फोकस रिविजन पर ही रहना चाहिए। इस रिविजन के लिए आवश्यक यह भी होता है कि नोट्स आदि सुव्यवस्थित और सुनियोजित तौर पर तैयार रहे। परीक्षा के नजदीक आने पर छात्रों को अपनी दिनचर्या इस तरह बनानी चाहिए कि सेकंड सेकंड के समय का सदुपयोग करना चाहिए। पौष्टिक आहार का सेवन और जंक फूड आदि के सेवन से बचने का प्रयास करना चाहिए। खान पान में गड़बड़ी होने से सेहत पर प्रतिकूल असर पड़ता है जिससे कभी कभी तबियत खराब होने पर बहुत समय बर्बाद हो जाता है जिससे रिवीजन की प्रक्रिया पर बहुत नकारात्मक असर पड़ता है।
तीसरे आर का मतलब रिलैक्स रहने से होता हैं। अपेक्षाओं तले परीक्षा के डर से तनाव बहुत ज्यादा होता है ऐसे में छात्रों के लिए रिलैक्स रहना आवश्यक होता है। रिलैक्स रहने के संदर्भ में प्राणायाम बेहद लाभकारी रहता है। कम से कम वस्त्रिका, अनुलोम विलोम और भ्रामरी प्राणायाम को सभी छात्रों को करना चाहिए। इन प्राणायाम के नियमित तौर पर करने से शरीर में ऑक्सीजन का संचार अच्छे से होता है जिससे मन को खुश रखनेवाले हार्मोन शरीर में संचारित होते हैं। साथ ही व्यायाम या अन्य शारीरिक गतिविधियों मसलन टहलने आदि से भी रिलैक्स रहने में मदद मिलती है। परीक्षा के परिणामों पर मंथन नहीं करने अभिभावकों द्वारा अपने बच्चों से बार अपेक्षाओं के प्रहार से बचने से भी परीक्षा के नजदीक आने पर बच्चे रिलैक्स रह पाते हैं और वे तनाव में नहीं आते हैं।
चौथे आर का अभिप्राय रिस्ट्रिक्टेड यूज ऑफ सोशल मीडिया/इंटरनेट से होता हैं। आज कल ऑनलाइन पढ़ाई का दौर है। ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान कई बार छात्र भटक जाया करते हैं। पढ़ते पढ़ते यूट्यूब या अन्य किसी सोशल मीडिया पर चले जाते हैं जिससे उनका खासा समय जाया हो जाता है। वैसे कई सर्वे में यह बात सामने आ चुकी है कि प्रतिदिन छात्र सोशल मीडिया साइट्स पर अपना समय दे रहे हैं। परीक्षा के नजदीक आने पर माता पिता को भी अपने बच्चों पर सतर्क नजर रखनी चाहिए और उन्हें सोशल मीडिया या इंटरनेट के ज्यादा इस्तेमाल से सचेत करना चाहिए। बच्चों को शिक्षकों, स्कूल प्रबंधन द्वारा पूर्व में इन बातों को बच्चों को समझाने का प्रयास करना चाहिए।
परीक्षा का डर एक बड़ी सामाजिक और शैक्षणिक चुनौती बनती जा रही है जिससे हमारे बच्चे तबाह हो रहे हैं। इस चुनौती का सामना करने में स्वयं बच्चों, अभिभावकों, स्कूल प्रबंधन, शिक्षकों की समन्वित भूमिका महत्वपूर्ण भूमिका महत्वपूर्ण है। बच्चे हमारे देश के भविष्य हैं। देश के भविष्य को हम तनाव, अवसाद, आत्महत्या आदि के दायरे में नहीं आने दे सकते हैं। ऐसे में बहुत जरूरी है कि छात्रों में परीक्षा के डर के मसले को संजीदगी, गंभीरता से समझा जाय और इसके निराकरण के लिए समन्वित, सार्थक और समर्पित प्रयास किए जा सकें।
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