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जेडीएस के 5% वोटर बीजेपी का नहीं, कांग्रेस का काम बना गए,कैसे? - श्रीनारद मीडिया

जेडीएस के 5% वोटर बीजेपी का नहीं, कांग्रेस का काम बना गए,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कर्नाटक चुनाव में बजरंगबली बीजेपी के काम तो न आ सके, लेकिन कांग्रेस को बहुमत दिला गए। कर्नाटक की 224 विधानसभा सीटों में कांग्रेस ने 135 सीटें सीतीं। बीजेपी 66 और जेडीएस 19 सीटों पर सिमट गई। कांग्रेस ने 2018 के मुकाबले 2023 में 80 नई सीटें जीती हैं। राजनीतिक एक्सपर्ट्स का मानना है कि बजरंग दल पर बैन लगाने जैसी घोषणाओं की वजह से जेडीएस के मुस्लिम वोटर कांग्रेस की तरफ ट्रांसफर हो गए।

1. कांग्रेस ने 80 नई सीटें जीतीं, इनमें 75 सीटें बीजेपी-जेडीएस से छीनी

2. कर्नाटक के 6 में से 4 रीजन में कांग्रेस अव्वल, 2 में बीजेपी

कर्नाटक को राजनीतिक रूप से 6 भागों में बांटा जाता है…

बेंगलुरु कर्नाटक: ये बेंगलुरु और आस-पास का इलाका है। यहां बीजेपी, कांग्रेस और जेडी (एस) तीनों पार्टियां जीतती रही हैं। 2023 के नतीजों में इस इलाके में जेडी (एस) को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। यहां से जेडी (एस) की 6 सीटें कम हो गईं, वहीं बीजेपी की 6 सीटें बढ़ गईं।

बाॅम्बे कर्नाटक: लिंगायत बहुल ये इलाका बीजेपी का गढ़ माना जाता है। 2023 के नतीजों में बीजेपी को यहां 14 सीटों का नुकसान हुआ है, वहीं कांग्रेस को 16 सीटों का फायदा हुआ है।

सेंट्रल कर्नाटकः 2018 में बीजेपी यहां सबसे ज्यादा सीटें जीती थी, लेकिन 2023 के चुनाव में बीजेपी को यहां से सबसे ज्यादा 17 सीटों का नुकसान हुआ। कांग्रेस ने 2018 के मुकाबले दोगुनी से ज्यादा सीटें जीतीं।

कोस्टल कर्नाटकः इस इलाके में भी बीजेपी को 5 सीटों का नुकसान हुआ है और कांग्रेस को 5 सीटों का फायदा।

हैदराबाद कर्नाटकः इस इलाके में बीजेपी की सीटें 12 से घटकर 9 रह गई हैं और कांग्रेस की सीटें 15 से बढ़कर 19 हो गई हैं।

ओल्ड मैसूरुः वोक्कालिगा बहुल ये इलाका जेडी (एस) का गढ़ रहा है। 2023 के नतीजों में यहां से जेडी (एस) को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। उसकी सीटें 24 से घटकर महज 13 रह गई हैं। यहां कांग्रेस को सबसे ज्यादा फायदा मिला। इसी इलाके में राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा की थी।

3. कर्नाटक विधानसभा में 4% से भी कम महिलाओं की भागीदारी

4. बीजेपी ने कैंडिडेट्स बदले, लेकिन एंटी इनकम्बेंसी बनी रही

बीजेपी ने 224 विधानसभा सीटों पर 72 नए चेहरे उतारे। 6 मंत्री-पूर्व मंत्री के साथ ही 21 विधायकों के टिकट काट दिए गए। इसमें पूर्व सीएम और डिप्टी सीएम के नाम भी शामिल थे। यह सब कुछ एंटी इनकम्बेंसी कम करने के लिए किया गया था, लेकिन नतीजे बता रहे हैं कि इतने नए चेहरे उतारने के बाद भी एंटी इनकम्बेंसी का असर कम नहीं हुआ।

पार्टी ने एक फैमिली से एक ही व्यक्ति को टिकट का फॉर्मूला भी लागू किया। ये भी बेअसर रहा। सीनियर जर्नलिस्ट समीउल्ला बेलागारू के मुताबिक, बीजेपी में टिकट बंटवारे में सिर्फ एक-दो लोगों की सुनी गई। इसमें बीएल संतोष और प्रहलाद जोशी शामिल थे। येदियुरप्पा को साइडलाइन कर दिया गया था।

वहीं, कांग्रेस में बीजेपी समेत अन्य दलों से आए 23 में से 16 प्रत्याशी चुनाव जीत गए।

5. राहुल कर्नाटक के जिन 7 जिलों से गुजरे, कांग्रेस वहां 66% सीटें जीत

राहुल की भारत जोड़ो यात्रा कर्नाटक में 21 दिन चली, 7 जिलों से गुजरी। इन जिलों में 48 विधानसभा सीटें हैं। इनमें से 32 सीटें कांग्रेस ने जीत ली है। यानी 66% का स्ट्राइक रेट। ये 2018 से दोगुने से भी अधिक है। 2018 के विधानसभा चुनाव में यहां कांग्रेस 15 सीटें जीत पाई थी। बीजेपी ने 17, जेडीएस ने 14 और बाकी बची 2 सीट अन्य के पास थी।

6. पीएम मोदी ने 19 जिलों में कैंपेनिंग की, वहां बीजेपी ने 33% सीटें जीतीं

पीएम नरेंद्र मोदी ने जिन 19 जिलों में रैली और जनसभा की, वहां कुल 164 विधानसभा सीटें हैं। 2023 चुनाव में बीजेपी ने यहां 55 सीटें जीती। यानी स्ट्राइक रेट करीब 33% है। यहां की 19 सीटों पर जेडीएस और 90 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली है।

7. बीजेपी कम्युनिटी को साध नहीं पाई, लिंगायत बंट गए

कर्नाटक के सीनियर जर्नलिस्ट अशोक चंदारगी के मुताबिक, तीन दशकों से बीजेपी को वोट दे रहे लिंगायत वोट इस बार बीजेपी-कांग्रेस में बंट गए। करीब 50% लिंगायत वोट कांग्रेस की तरफ जाते दिख रहे हैं। एससी-एसटी के तो 80 परसेंट से ज्यादा वोट कांग्रेस को गए हैं। इसकी एक बड़ी वजह बोम्मई सरकार की फेल रिजर्वेशन पॉलिसी रही।

राज्य सरकार ने शेड्यूल कास्ट (SC) को मिलने वाले आरक्षण को इस वर्ग की अलग-अलग जातियों में बांट दिया। जिसका बंजारा और भोवी समुदाय ने विरोध किया था। मुस्लिमों का आरक्षण खत्म कर लिंगायत-वोक्कालिगा को दिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी। नतीजों में अलग-अलग कम्युनिटी के लोगों की नाराजगी साफ दिख रही है।

8. बजरंगबली, सांप, हिजाब जैसे विवाद बेअसर

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पीएम मोदी पर बयान देते हुए कहा, ‘मोदी एक जहरीले सांप की तरह हैं। अगर आपको लगता है कि यह जहर है या नहीं और आप इसे चाटते हैं तो आप मर चुके हैं।’ इस बयान के बाद बीजेपी के युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या ने कहा कि कर्नाटक चुनाव में यह एक महत्वपूर्ण मोड़ होगा, लेकिन यह मुद्दा 24 से 48 घंटों तक ही सुर्खियों में रहा। इसके बाद फीका पड़ गया।

हिजाब बैन का पूरे चुनाव में कोई असर नहीं दिखा। पीएम ने यह भी कहा कि 91 बार कांग्रेस ने मुझे तरह-तरह की गालियां दीं, लेकिन बयान का इम्पैक्ट नजर नहीं आया। चंदारगी कहते हैं- लोग महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से इतना परेशान थे कि इन बयानों का उन पर कोई असर नहीं हुआ। बोम्मई गवर्नमेंट के खिलाफ जो गुस्सा था, उसके सामने हिंदुत्व की राजनीति फेल साबित हुई।

9. बीजेपी 40% कमीशन के दाग को हटा नहीं पाए

मुंबई कर्नाटक में आने वाले बेलगावी के ठेकेदार संतोष पाटिल की मौत के बाद अप्रैल 2022 में 40% कमीशन विवाद शुरू हुआ। पाटिल ने अपने सुसाइड नोट में बीजेपी नेता केएस ईश्वरप्पा पर एक सरकारी योजना के लिए 40% कमीशन की मांग करने का आरोप लगाया था। कर्नाटक कॉन्ट्रैक्टर्स एसोसिएशन ने भी आरोप लगाया था कि ज्यादा कमीशन देना मजबूरी हो गया है।

उन्होंने पीएम मोदी को लेटर भी लिखा था, लेकिन बीजेपी इस पर कोई एक्शन लेते नहीं दिखी और कांग्रेस हमलावर हो गई। सितंबर 2022 में कांग्रेस ने पेसीएम कैंपेन शुरू कर दिया। सीएम बोम्मई के चेहरे के साथ क्यूआर कोड लगाकर फोटो चस्पा की गई। कैंपेन के आखिरी दिन तक कांग्रेस ने इस मुद्दे को छोड़ा नहीं।

बसवराज बोम्मई ने सीएम बनने के बाद एक भी स्ट्रिक्ट एक्शन नहीं लिया। करप्शन की तमाम शिकायतें उन तक पहुंचाई गईं, लेकिन उन्होंने हमेशा यही कहा कि इसकी जांच करवाएंगे। चंदारगी कहते हैं- कांग्रेस नेता सिद्धारमैया तक के खिलाफ करप्शन की शिकायत हुई थी, लेकिन बोम्मई ने कोई एक्शन नहीं लिया।

कॉन्ट्रैक्टर्स एसोसिएशन की शिकायत पीएम मोदी तक पहुंच गई, फिर भी कुछ नहीं हुआ। एडमिनिस्ट्रेशन एक तरह से गिर चुका था। हर जगह करप्शन का खेल चल रहा था। इसी ने बीजेपी को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया।

10. अब 15 राज्य और 45% आबादी पर बीजेपी राज

राज्यः फिलहाल देश में 30 विधानसभाएं है। इनमें 2 केंद्र शासित प्रदेश, दिल्ली और पुडुचेरी भी हैं। कर्नाटक के नतीजों के बाद बीजेपी अब 15 प्रदेशों में सत्ता में हैं। इनमें भी अपने बूते पर सिर्फ 9 प्रदेशों की सत्ता में हैं। बाकी 6 प्रदेशों में गठबंधन साथियों के साथ। इनमें से कोई भी दक्षिण भारत का राज्य नहीं।
  • आबादी: देश की सिर्फ 45% आबादी बीजेपी की सत्ता में है। बीजेपी या उसके गठबंधन शासित प्रदेशों में केवल 7 राज्यों की आबादी एक करोड़ से ज्यादा है।

दक्षिण भारत में बीजेपी मुक्त

  • कर्नाटक की हार के बाद दक्षिण के 5 में से किसी राज्य में बीजेपी सरकार नहीं।
  • दक्षिण भारत के 5 राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश से कुल 130 लोकसभा सांसद आते हैं। इनमें बीजेपी के केवस 29 सांसद है। इनमें भी 25 सासंद कर्नाटक से और 4 तेलंगाना से हैं।
  • दक्षिण भारत के इन राज्यों की विधानसभाओं में कुल 923 विधायक हैं। कर्नाटक चुनाव से पहले तक इनमें से भी बीजेपी कुल 135 विधायक थे। कर्नाटक में बीजेपी के 40 विधायक कम होने के बाद यह आंकड़ा भी घटकर 95 का बचा है।

नार्थ-ईस्ट के 7 में सिर्फ 3 राज्यों में बीजेपी के सीएम

  • असम में हेमंत बिस्वा शर्मा की अगुवाई में बीजेपी की सरकार है।
  • नगालैंड में NDPP यानी नेशनलिस्ट डेमोक्रैटिक प्रोग्रेसिव पार्टी की अगुवाई में बीजेपी सत्ता है। NDPP के ने नेफ्यू रियो सीएम हैं।
  • मणिपुर में बीजेपी स्थानीय पार्टी NPP यानी नेशनल पीपुल्स पार्टी, NPF यानी नेशनल पीपु्ल्स फ्रंट और KPA यानी कुकीज पीपुल्स अलायंस के साथ सत्ता में है। बीजेपी के बीरेन सिंह सीएम हैं।
  • मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट की सरकार है और जोरामथंगा वहां मुख्यमंत्री पद पर मौजूद हैं।
  • त्रिपुरा में बीजेपी सत्ता में हैं। यहां मणिक साहा मुख्यमंत्री हैं।
  • अरुणाचल प्रदेश में बीजेपी सत्ता में है। यहां पेमा खांडू मुख्यमंत्री हैं।
  • सिक्किम में सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा सत्ता में है। प्रेम सिंह तमांग सीएम हैं। बीजेपी का राज्य में कोई विधायक नहीं, लेकिन SKM में बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए का हिस्सा है।

11. जिन 5 राज्यों से लोकसभा चुनाव में उम्मीद थी, वहां अब बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती

2018-19 में राजनीतिक तौर पर बीजेपी ने चरम छुआ था, तब 21 राज्यों में बीजेपी या सहयोगी पार्टियों की सरकार थी। पिछले चुनाव में 303 सीटें हासिल करने वाली बीजेपी 14 राज्यों में अधिकतम सीटें हासिल करने की स्थिति में पहुंच चुकी है।

इन राज्यों में गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल, त्रिपुरा और हरियाणा की सभी सीटें बीजेपी के पास हैं। जबकि कर्नाटक में 28 में 25, मध्य प्रदेश में 29 में 28, बिहार में गठबंधन में 40 में 39, महाराष्ट्र में गठबंधन में 48 में से 41 सीटें जीती थीं। यूपी में 80 में 64, झारखंड में 14 में 12 और छत्तीसगढ़ में 11 में 9 सीटें बीजेपी के पास हैं। मतलब इन राज्यों में पार्टी अधिकतम प्रदर्शन कर चुकी है। कुल मिलाकर आगे नुकसान को देखते हुए बीजेपी को बंगाल, बिहार, तेलंगाना, कर्नाटक और ओडिशा में अपनी सीटें बढ़ने की उम्मीद थी।

अब कर्नाटक में हार से पार्टी को झटका लगा है, जबकि ओडिशा में नवीन पटनायक अब तक अपराजेय हैं। जदयू के अलग होने से बिहार में पुराना प्रदर्शन दोहराना संभव नहीं है। पिछले चुनाव में बंगाल में बीजेपी 18 और तेलंगाना में 4 सीटें जीती थी। अगर ममता कांग्रेस के साथ जाती हैं, तो वहां भी बीजेपी को मुश्किल होगी। कुल मिलाकर आगे इन 5 राज्यों में बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती है।

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