आम से पहले, जरा हमे भी पहचान लीजिये
मंजर हूँ मैं, आंधी, तूफानो,से लड़ा करती हूँ।
धूप हो या वारिश, बस आप ये जान लीजिये,
सब कुछ सह टिकोलो को आम के लिए बड़ा करती हूँ।
खुबसूरती की भी मिशाल बनकर पेड़ों की शान होती हूँ
कुछ पल ही सही हर आँखो की खुबसूरत मेहमान होती हूँ।
जननी ही नही मैं पंछियो की आये दिन जलपान होती हूँ।
हर जुल्म -ए-सितम सहने वाली मैं यूँ ही बेजुबान होती हूँ।
जी हाँ, मैं वही मंजर हूं जो आम की जन्म दात्री होती हैं।
अटल और अडिग रहती हूँ, चाहे दिवस या रात्री होती हैं।
अनुपम अंदाज युक्त अक्सर हमारे यहाँ विश्राम यात्री होती है।
चंद पलो के लिए ही हमारी भूमिका बतौर निर्मात्री होती हैं।
साभार- डॉ अरविंद आनंद
9709810468
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