होटल ताज की नींव रखने वाले जमशेदजी टाटा का आज है जन्मदिन.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
आज टाटा ग्रुप नमक से लेकर ट्रक तक बनाता है। पर इसे इस मुकाम तक लाने में सबसे प्रमुख भूमिका रही है जमशेदजी टाटा की। आज से ठीक 182 साल पहले उनका जन्म हुआ था।
जमशेदजी का जन्म 3 मार्च 1839 में दक्षिणी गुजरात के नवसारी में पारसी परिवार में हुआ था। वहीं, 19 मई 1904 को 65 साल की आयु में उनकी मृत्यु हुई थी। उनका पूरा नाम जमशेदजी नुसीरवानजी टाटा था। मात्र 14 साल की आयु में ही जमशेदजी अपने पिता के साथ मुंबई आ गए और व्यवसाय में कदम रखा था। 17 साल की उम्र में मुंबई के एलफिंस्टन कॉलेज में प्रवेश लिया। दो साल बाद 1858 में ग्रीन स्कॉलर (स्नातक स्तर की डिग्री) बने। जमशेदजी के जीवन के बड़े लक्ष्यों में स्टील कंपनी खोलना, विश्व प्रसिद्ध अध्ययन केंद्र स्थापित करना, अनूठा होटल खोलना और पनबिजली परियोजना लगाना शामिल था। हालांकि, उनके जीवनकाल में वे सिर्फ होटल ताज ही बनवा सके। होटल ताज दिसंबर 1903 में 4 करोड़ 21 लाख रुपए के खर्च से तैयार हुआ था। यह भारत का पहला होटल था जहां बिजली की व्यवस्था थी।
जमशेदजी के बेटे दोराब टाटा ने 1907 में देश की पहली स्टील कंपनी टाटा स्टील एंड आयरन कंपनी, टिस्को खोली थी। यह कर्मचारियों को पेंशन, आवास, चिकित्सा सुविधा और कई सहूलियतें देने वाली शायद एक मात्र कंपनी थी। जमशेदजी का विजन झारखंड के जमशेदपुर में दिखता है। टाटानगर के नाम से मशहूर इस शहर को नियोजित तरीके से बसाया गया।
आज बेंगलुरू का इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) दुनिया के नामी-गिरामी संस्थानों में से एक है। इसकी स्थापना का सपना भी जमशेदजी ने ही देखा था। इसके लिए उन्होंने अपनी आधी से अधिक संपत्ति, जिनमें 14 बिल्डिंग और मुंबई की चार संपत्तियां थीं, दान दे दीं।
पारिवारिक तौर-तरीकों से अलग जमशेदजी ने नया कारोबार शुरू किया. माना जाता है कि जमशेदजी ही वह शख्स थे, जिन्होंने देश को नए तरीकों से बिजनेस करना सिखाया.
जमशेदजी टाटा ने ही बॉम्बे के गेटवे ऑफ इंडिया के सामने होटल ताजमहल बनाया था. इस होटल के बनाने की भी अलग ही कहानी है. दरअसल, जमशेदजी टाटा ब्रिटेन घूमने गए तो वहां एक होटल में उन्हें भारतीय होने के कारण रुकने नहीं दिया गया. जमशेदजी ने ठान लिया कि वह ऐसे होटल बनाएंगे, जिनमें हिंदुस्तानी ही नहीं, पूरी दुनिया के लोग ठहरने की हसरत रखें.
भारत लौटने के बाद उन्होंने होटल ताज की नींव रखवाई और 1903 में लगभग 4,21,00,000 रुपये के खर्च से यह भव्य इमारत बनकर खड़ी हो गई. होटल ताज देश का पहला होटल था जिसे दिन भर चलने वाले रेस्त्रां का लाइसेंस मिला था. कहा जाता है कि तब विदेश में हुई बदसुलूकी की याद दिलाने को होटल के द्वार पर लिखवाया गया था कि यहां बिल्लियों और ब्रिटिश लोगों का आना मना है. हालांकि कहीं-कहीं ही इस बात का जिक्र मिलता है. अब ये होटल देश के अलावा विदेशी सैलानियों के बीच अपने भव्यता को लेकर ज्यादा लोकप्रिय है.
उन्होंने अपने कारोबारी जीवन की शुरुआत अफीम की खरीद-फरोख्त से की थी. उस समय अफीम का कारोबार कानूनी था. दरअसल, ये साल 1850 का दौर था, जब पश्चिमी देश अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए पूरी दुनिया में भयानक मार-काट कर रहे थे. युद्ध में घायल सैनिकों को दर्द से निजात दिलाकर फिर लड़ने के लिए तैयार करने को अफीम खिलाई जाती थी. इस दौरान जमशेदजी गुजरात के नवसारी में अपनी पढ़ाई कर रहे थे. उनके पिता नुसरवानजी टाटा बॉम्बे (Bombay) में कारोबार कर रहे थे. पिता ने अफीम के कारोबार में जबरदस्त मुनाफा कमाया था.
इधर मुंबई के एलफिंसटन कॉलेज से पढ़ाई के बाद जमशेदजी पिता के व्यवसाय में लग गए. शुरुआत में उन्होंने कारोबार में हाथ बंटाया और 29 साल की उम्र तक पिता के साथ रहे. आगे चलकर उन्होंने 29 साल की उम्र में खुद का कारोबार शुरू किया तो उस दौर में सबसे मुनाफे वाले अफीम के कारोबार में भी नाकामी हाथ लगी. इस दौरान उन्होंने कई देशों की यात्रा की. ब्रिटेन की यात्रा के दौरान उन्होंने लंकाशायर कॉटन मिल का दौरा किया. इससे उन्हें इस कारोबार की क्षमता और संभावनाओं का अहसास हुआ.
भारत लौटने के बाद जमशेदजी ने बॉम्बे में एक दिवालिया हो चुकी ऑयल मिल खरीद ली. इसके बाद इसमें एलेक्जेंड्रा मिल नाम से कपड़ा मिल खोली. ये मिल जब मुनाफा देने लगी तो उन्होंने इसे भारी मुनाफे में बेच दिया. इसके बाद मिल से मिले पैसों से उन्होंने 1874 में नागपुर में एक कॉटन मिल खोली. यह बिजनेस भी चल निकाला. बाद में इसका नाम एम्प्रेस्स मिल कर दिया गया. यह वही दौर था, जब क्वीन विक्टोरिया भारत की महारानी बनीं. अपनी सोच और कड़ी मेहनत के बूते जमशेदजी ने टाटा फैमिली को अफीम के कारोबार से निकालकर एक बड़े बिजनेस एम्पायर में बदला.
विशुद्ध कारोबारी जमशेदजी पर स्वामी विवेकानंद की गहरी छाप थी. दरअसल दोनों की मुलाकात साल 1893 में हुई थी, जब स्वामी विवेकानंद वर्ल्ड रिलीजन कॉन्फ्रेंस में भाग लेने के लिए अमेरिका जा रहे थे. जमशेदजी भी उसी जहाज में थे. समुद्री यात्रा के दौरान दोनों में काफी बातचीत हुई, जिसके बाद जमशेदजी ने देश में ही तकनीक के विकास पर जोर देना शुरू किया था. जमशेदजी के बारे में बताया जाता है कि देश में पहली कार खरीदने वाले शख्स भी वही थे.