खुद को देंगे आदर, तो दुनिया जरूर करेगी सलाम,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

लोग क्या कहेंगे, क्या आप इस बात से परेशान रहते हैं? यदि हां, तो आप अकेले नहीं हैं। यह सोच भी एक खास तरह की मनोदशा है, जो अधिकतर लोगों में देखी जाती है। दरअसल, मनोविज्ञान में एक अध्याय है- व्यक्तित्व का एक्स्ट्रावर्जन यानी जो लोग आमतौर पर बाहरी परिवेश से प्रभावित हो जाते हैं, लोगों की बातों या नजरिये से उनका मूड ऑन या ऑफ होता है, वे एक्स्ट्रावर्जन होते हैं। वहीं, जो भीतर ही भीतर अपनी सोच से, अपने विचारों से प्रभावित होते हैं, वे इंट्रावर्जन होते हैं।

जग भला तो आप भला

कुछ लोग दूसरों की बातों से प्रभावित होते हैं। लोगों ने उन्हें अच्छा कहा तो उन्हें लगता है कि वे सचमुच ऐसे हैं। वहीं यदि कुछ गलत कहा तो दिल पर ले लेते हैं। यह नजरिये की समस्या है। आपका नजरिया बचपन से होता है। छोटा बच्चा यदि बार-बार हर छोटी बात के लिए अभिभावक की अनुमति लेता है तो शायद उसकी यह आदत आगे भी बनी रह सकती है। लोगों की अनुमति या राय ऐसे लोगों के लिए अहम होती है। ऐसे लोग एक खास तरह का चश्मा धारण कर लेते हैं कि लोग उन्हें बुरा कह रहे हैं, उन्हें देखकर यह सोच रहे हैं, उन्हें यह कहेंगे आदि। ऐसा नहीं है कि उनका चश्मा नकारात्मक ही होता है। कुछ लेाग इसके उलट होते हैं। उन्हें लगता है कि लोग मेरी तारीफ ही कर रहे हैं, मुझे पसंद करते हैं आदि.

सोच वैकल्पिक होनी चाहिए 

यदि आप लोगों की तरफ देखकर यह सोचते हैं कि वे हमेशा आपके बारे में नकारात्मक या सकारात्मक ही बोलेंगे तो यह जरूरी नहीं। ऐसा वे लोग अधिक सोचते हैं, जिनमें आत्मविश्वास की कमी होती है। स्वावलंबी होने के बजाय परावलंबी होते हैं। अब सवाल है कि क्या करना चाहिए? आपको बस एक वैकल्पिक सोच लेकर चलना है। वैकल्पिक सोच यानी आप यह भी सोचें कि यदि लोग आपको बुरा भी कहेंगे या उनकी बात आपको बुरी लग रही है तो वह उनका अपना नजरिया हो सकता है। इसमें आपकी कोई गलती नहीं। यह सामने वाले की समस्या है। यदि कोई मुस्कुराये नहीं तो आपको यह नहीं सोचना चाहिए कि अमुक व्यक्ति हमें पसंद नहीं करता या तवज्जो नहीं देता। इस बारे में आपकी वैकल्पिक सोच होनी चाहिए। जैसे संभव है कि वह व्यक्ति तनाव में हो या उसका मुस्कुराने का मन न हो। यह भी तो संभव है कि उसने देखा हो आपको, पर ध्यान न दिया हो।

हमसे है जमाना

दुनिया में सब एक से नहीं होते। यहां मुख्य रूप से तीन तरह के व्यक्तित्व होते हैं। पहला, जो लोग अपने ही टूल और ट्वाय यानी अपनी दुनिया में व्यस्त व मस्त रहते हैं। लोग क्या कह रहे हैं इस बात से उन्हें कोई सरोकार नहीं होता। दूसरे, वे लोग होते हैं, जो चाहते हैं कि लोग उनकी तरफ आकर्षित हों, इसके लिए लगातार प्रयास करते हैं, कुछ ऐसा कि लोगों का मनोरंजन होता रहे। वे बड़े मिलनसार होते हैं। पार्टी या किसी समारोह आदि में ऐसे लोगों को आप देख सकते हैं। बड़े ही खुशमिजाज, मस्तमौला लोग। वहीं तीसरे प्रकार के व्यक्तित्व में वे लोग आते हैं, जो सलाह और मशविरा लेने में यकीन रखते हैं। उन पर एक खास प्रकार का दबाव बना रहता है कि लोग क्या कहेंगे। वे हमेशा इस कोशिश में होते हैं कि कहीं लोग उनसे नाराज न हो जाएं। ऐसे लोग स्वआलोचक होते हैं।

आत्मविश्वास खुद को आगे बढ़ाने की दिशा में पहला कदम

सबसे मुश्किल बात यह कि वे अपनी कमजोरियों को और बड़ा बनाकर देखते हैं। इससे उनकी खूबियां भीतर कहीं दब जाती हैं या बाहर नहीं आ पातीं। उन पर वे फोकस ही नहीं कर पाते। कोई दूसरा उनकी कमी क्या निकालेगा, वे खुद अपनी कमियां बता देते हैं। सोचें कि आप उक्त में से किस प्रकार के व्यक्तित्व हैं? यदि आप तीसरी श्रेणी में हैं तो आपको समझना होगा कि दुनिया वही देखेगी, जो आप खुद को देखेंगे या समझेंगे। खुद को आदर देंगे, इसे आगे बढ़ाने में लगातार प्रयासरत रहेंगे तो एक दिन दुनिया आपको सलाम जरूर करेगी। न भूलें कि आत्मविश्वास खुद को आगे बढ़ाने की दिशा में पहला कदम है।

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