आखिर क्‍यों चीन के प्रति अमेरिका की तरह आक्रामक नहीं होता है भारत.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

हाल ही में अमेरिकी संसद में चीन की वन चाइना पॉलिसी के खिलाफ दो रिपब्लिकन सांसदों टम टिफनी और स्कॉट पेरी ने एक विधेयक पेश किया है। यदि ये पारित होता है तो चीन की मुश्किलें बढ़नी लगभग तय हैं। चीन और अमेरिका के बीच पिछले कुछ वर्षों से लगातार तनाव बना हुआ है। ये तनाव किसी एक मुद्दे पर नहीं है बल्कि कई मुद्दों पर है। अमेरिका के पूर्व राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप ने चीन को लेकर बेहद आक्रामक नीति इख्तियार की थी। मौजूदा जो बाइडन प्रशासन में फिलहाल इस नीति में कोई बदलाव आता दिखाई नहीं दे रहा है।

चीन की बात करें तो उसका टकराव केवल अमेरिका से ही नहीं बल्कि भारत समेत कई देशों से है। पिछले वर्ष गलवन घाटी में जो कुछ हुआ उसको पूरी दुनिया ने देखा और चीन के रुख की कड़ी निंदा भी की थी। गलवन समेत कई मुद्दों पर भारत को अंतरराष्‍ट्रीय सहयोग मिला। बावजूद इसके भारत ने कभी चीन के प्रति कड़ा रुख इख्तियार नहीं किया, जैसा अमेरिका करता आया है। ऐसा क्‍यों?

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर एशियन स्‍टडीज के रिटायर्ड प्रोफेसर एचएस भास्‍कर इसके पीछे भारतीय विदेश नीति को मानते हैं। उनका कहना है कि भारत ने पहले भी कभी चीन ही नहीं बल्कि किसी भी दूसरे देश के खिलाफ इस तरह से आक्रामक व्‍यवहार, वो भी एक तरफा नहीं किया है। इसकी सबसे बड़ी वजह भारत पड़ोसी देशों से अपने संबंधों को तरजीह देता है। भारत हमेशा से ही क्षेत्र की एकता, अखंडता, सुरक्षा, शांति और स्थिरता को प्राथमिकता देता आया है। भारत ने कभी भी क्षेत्र में किसी भी देश के साथ तनाव को बढ़ाने का काम नहीं किया है। भारत की विदेश नीति के ये मूल सिद्धांत भी हैं, जिनपर वो आज तक अमल करता आया है।

जहां तक अमेरिका की बात है तो वो इस मामले में काफी अलग है। वो अपने व्‍यापार और अपने हितों को साधने के लिए किसी भी स्‍तर तक जा सकता है। प्रोफेसर भास्‍कर का ये भी कहना है कि चीन को लेकर बाइडन या ट्रंप की नीतियां कुछ अलग नहीं हैं। वहीं भारत की विदेश नीति यहां पर सरकार बदलने के साथ नहीं बदलती है। भारत की विदेश नीति का मूल सिद्धांत बेहद मजबूत है जिसको हर प्रधानमंत्री मजबूती के साथ फॉलो करता है। भारत ने कभी भी चीन या पाकिस्‍तान में घुसपैठ नहीं की है न ही कभी आगे करेगा। लेकिन यदि कोई देश भारतीय सीमा में घुसपैठ करता है तो उसका जवाब देता है। भारत और अमेरिका में यही एक बड़ा अंतर है।

ताइवान के मुद्दे पर बात करते हुए उन्‍होंने बताया कि अमेरिकी संसद में जो विधेयक पेश किया गया है उसके पास होने का खामियाजा चीन को भुगतना होगा। इसकी वजह है कि ये विधेयक ताइवान, हांगकांग, मकाऊ पर चीन के अधिकार को चुनौती देता है। यदि ये विधेयक चीन की मेनलैंड के बाबत होता तो उसको कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन ये विधेयक इन तीनों जगहों से संबंधित है। इसलिए चीन का परेशान होना लाजमी है। इस विधेयक के पास होने से अमेरिका खुलेतौर पर इनसे व्‍यापार कर सकेगा।

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