सुनाई न देने की समस्या एक बड़ा संकट, 2050 तक दुनिया भर में 250 करोड़ लोग होंगे शिकार.

सुनाई न देने की समस्या एक बड़ा संकट, 2050 तक दुनिया भर में 250 करोड़ लोग होंगे शिकार.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की वल्र्ड रिपोर्ट ऑन हियरिंग में चेतावनी देते हुए कहा गया है कि 2050 तक दुनिया भर में लगभग 250 करोड़ लोग या दूसरे शब्दों में कहें तो हर चार में से एक व्यक्ति को कुछ हद तक सुनाई न देने की समस्या होगी। इनमें से कम से कम 70 करोड़ लोग ऐसे होंगे जिन्हें सुनाई न देने और कानों की समस्याओं को लेकर अस्पतालों में जाना पड़ेगा। आज भारतीय आबादी का बड़ा हिस्सा भी सुनाई न देने की समस्या से ग्रस्त है। डब्ल्यूएचओ के 2018 के आंकड़ों के अनुसार भारत में श्रवण दोष प्रसार लगभग 6.3 फीसद था। तब भारत में वयस्कों में बहरेपन का अनुमानित प्रसार 7.6 फीसद था और बाल्यावस्था में बहरेपन का प्रसार दो फीसद था।

हमारी सुनने की क्षमता महत्वपूर्ण होती है। सुनाई न देने से लोगों के संवाद करने, पढ़ने और जीविकोपार्जन की क्षमता पर एक हानिकारक प्रभाव पड़ता है। यह लोगों के मानसिक स्वास्थ्य और रिश्तों को बनाए रखने की उनकी क्षमता पर भी प्रभाव डाल सकता है। वास्तव में अधिकांश देशों में कान और सुनने संबंधी देखभाल को अभी भी राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणालियों में नहीं जोड़ा गया है, जिसके कारण कान की बीमारियों वाले लोगों और जिन्हें सुनाई नहीं देता, उनका देखभाल सेवाओं तक पहुंचना चुनौतीपूर्ण होता है। इसके अलावा कान और सुनने संबंधी देखभाल तक पहुंच को खराब तरीके से मापा भी जाता है, लेकिन स्वास्थ्य प्रणाली में सबसे ज्यादा अंतर मानव संसाधनों का है।

कम आय वाले अधिकांश देशों में प्रति मिलियन आबादी में एक या उससे कम कान, नाक और गले (ईएनटी) के विशेषज्ञ हैं। प्रति मिलियन आबादी में एक या उससे कम ऑडियोलॉजिस्ट हैं। प्रति मिलियन आबादी में एक या उससे अधिक वाक् चिकित्सक हैं और प्रति मिलियन बहरों के लिए एक या उससे अधिक शिक्षक हैं। उच्च अनुपात वाले देशों में भी इन विशेषज्ञों का असमान वितरण है। ये न केवल मरीजों की देखभाल के लिए संसाधन की कमी की चुनौतियों का सामना करते हैं, बल्कि इससे अन्य सेवाओं पर भी दबाव पड़ता है।

प्राथमिक स्वास्थ्य में कान और सुनने संबंधी देखभाल को जोड़ने से इस अंतर को कम किया जा सकता है। बच्चों में लगभग 60 फीसद सुनाई न देने की समस्या को मातृ और नवजात देखभाल में सुधार और स्क्रीनिंग के लिए किए गए टीकाकरण जैसे उपायों के माध्यम से रोका जा सकता है। इसके अलावा राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजनाओं के साथ कान और सुनने की देखभाल संबंधी कार्यक्रमों को भी जोड़ा जाना चाहिए। इन्हें मजबूत स्वास्थ्य प्रणालियों के माध्यम से वितरित करना चाहिए।

Leave a Reply

error: Content is protected !!