LAC पर हार, साइबर हमले से वार, भारत कितना है तैयार?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
साल था 2018 के अगस्त के महीने में अमेरिका के लांस वेगास में एक खास मेले का आयोजन किया गया था। जिसमें साइबर एक्सपर्ट से लेकर हर उम्र के लोग हैकिंग का हुनर दिखाने के लिए उपस्थित हुए थे। जिस वक्त हैकर्स का ये मेला लांस वेगास में लगा उसी वक्त एक हैकर ने भारतीय बैंक पर साइबर अटैक कर करीब 3 करोड़ डॉलर की रकम उड़ा ली। वैसे देखा जाए तो दुनियाभर में सरकारी वेबसाइट से लेकर हैकिंग कंपनियों और आम लोगों पर साइबर अटैक होते रहते हैं।
कई देशों ने हैकिंग के लिए अपनी साइबर आर्मी बना रखी है और समय-समय पर अपने विरोधी देशों को निशाना बनाते रहते हैं। चीन की थ्री वाॅर फेयर स्टेटजी है। जिसका प्रयोग वो साल में दो बार करता है। पहला- साइकोलाॅजिकल वाॅर फेयर, दूसरा मीडिया वाॅर फेयर और तीसरा-लीगल वाॅर फेयर। ये तीन तरह की लड़ाई चीन के द्वारा टैंक, सोल्जर और आर्टलर्री के अलावा लड़ी जाती है। इतिहास से लेकर वर्तमान दौर में ये कहा जाता है कि कोई भी लड़ाई दो तरीके से लड़ी जाती है। पहला- बाहुबल और दूसरा बुद्धिबल। बाहुबल के मामले में लद्दाख से लेकर अरुणाचल तक एलएसी पर हर नापाक मंसूबा नाकाम होता देख चीन ने अपने दूसरे हथकंडे अपनाने शुरू कर दिए। चीन ने मैदाने जंग में लड़ने की बजाय पर्दे के पीछे से जंग लड़ रहा है और वो भी साइबर जंग। बाहुबल में चीन को पछाड़ने के बाद अब भारत के लिए बड़ी चुनौती चीन को साइबर जंग में पीछे धकेलने की है। ऐसे में आपको बताते हैं चाइनीज हैकर नेटवर्क के बारे में इसके साथ ही क्या भारत ऐसे हमले के लिए तैयार?
रूस की हैकर्स आर्मी
1990 के दशक में सोवियत संघ के टूटने के बाद रूस में बहुत से एक्सपर्ट अचानक बेरोजगार हो गए। ये इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर्स थे। रोजी कमाने के लिए उन्होंने इंटरनेट की दुनिया खंगालनी शुरू की। उस वक्त साइबर सिक्योरिटी को लेकर ज्यादा जानकारी या जागरूकता नहीं थी। इन रूसी एक्सपर्ट ने हैकिंग के साम्राज्य की बुनियाद रखी। इन रूसी हैकरों ने बैंको, वित्तीय संस्थानों, दूसरी देशों की सरकारी वेबसाइट को निशाना बनाना शुरू किया।
उस दौर में रूस में हैकर्स नाम की पत्रिका भी छपती थी। रूस की खुफिया एजेंसी एफएसबी को इन हैकर्स के बारे में पता था। 2007 में रूसी हैकर्स ने पड़ोसी देश आस्टोनिया पर बड़ा साइबर हमला किया। इन हैकर्स ने आस्टोनिया के सैकड़ों वेबसाइट को हैक कर लिया। अगले साल ही हैकरों ने एक और पड़ोसी देश जॉर्जिया की सरकारी वेबसाइट को साइबर अटैक से तबाह कर दिया था। 2008 में जॉर्जिया पर हुआ साइबर हमला रूस के सरकारी हैकर्स ने किया था। ये रूस की खुफिया एजेंसी के कर्मचारी थे। आज की तारीख में रूस के पास सबसे ताकतवर साइबर सेना हैं। रूसी हैकर्स पर अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में दखलअंदाजी करने का आरोप लगा।
पॉवर ग्रिड को बनाया निशाना
अमेरिका की एक कंपनी ने अपने हालिया अध्ययन में दावा किया है कि भारत और चीन के बीच सीमा पर जारी तनाव के दौरान चीन सरकार से जुड़े हैकरों के एक समूह ने ‘‘मालवेयर’’ के जरिए भारत के पावरग्रिड सिस्टम को निशाना बनाया। आशंका है कि पिछले साल मुंबई में बड़े स्तर पर बिजली आपूर्ति ठप होने के पीछे शायद यही मुख्य कारण था। अमेरिका में मैसाचुसेट्स की कंपनी ‘रिकॉर्डेड फ्यूचर’ ने अपनी हालिया रिपोर्ट में चीन के समूह ‘रेड इको’ द्वारा भारतीय ऊर्जा क्षेत्र को निशाना बनाए जाने का जिक्र किया है। पिछले साल 12 अक्टूबर को मुंबई में एक ग्रिड ठप होने से बिजली गुल हो गयी थी।
इससे ट्रेनें भी रास्तें में ही रूक गयी और महामारी के कारण घर से काम रहे लोगों का कार्य भी प्रभावित हुआ और आर्थिक गतिविधियों पर भारी असर पड़ा। आवश्यक सेवाओं के लिए बिजली आपूर्ति बहाल में दो घंटे लग गए थे। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने घटना की जांच का आदेश दिया था। ‘रिकॉर्डेड फ्यूचर’ ने ऑनलाइन सेंधमारी संबंधित रिपोर्ट के प्रकाशन के पूर्व भारत सरकार के संबंधित विभागों को इस बारे में अवगत कराया। न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने एक खबर में कहा कि इस खुलासे से सवाल उठा है कि मुंबई में बिजली गुल के पीछे कहीं बीजिंग यह संदेश तो नहीं देना चाहता था कि अगर भारत ने सीमा पर आक्रामक व्यवहार जारी रखा तो क्या हो सकता है।
अमेरिका के एक वरिष्ठ सांसद ने चीनी हैकरों द्वारा भारत की पावर ग्रिड प्रणाली को निशाना बनाने संबंधी रिपोर्ट के मद्देनजर सोमवार को बाइडन प्रशासन से भारत का साथ देने का अनुरोध किया। साइबर हमले जैसी गतिविधियों की निगरानी करने वाली एक अमेरिकी कंपनी की रिपोर्ट में भारत की पावरग्रिड प्रणाली को निशाना बनाने की बात सामने आयी है। सांसद फ्रैंक पैलोन ने ट्वीट किया, ‘‘अमेरिका को निश्चित रूप से हमारे रणनीतिक साझेदारों के साथ खड़ा रहना चाहिए और भारत के पावर ग्रिड पर चीन के खतरनाक साइबर हमले की निंदा करनी चाहिए, जिसकी वजह से महामारी के दौरान अस्पतालों को जनरेटरों का सहारा लेना पड़ा’’ पैलोन ने ट्वीट किया, ‘‘हम चीन को बल प्रयोग और डर के माध्यम से क्षेत्र में प्रभुत्व कायम करने की अनुमति नहीं दे सकते।’’ माइक्रोसॉफ्ट ने भी अपने ग्राहकों को चीन के हैकरों से सतर्क रहने को कहा है। वहीं माइक्रोसॉफ्ट ने भी अपने ग्राहकों को चीन समर्थित हैकरों से सावधान किया है।
भारतीय वैक्सीन निर्माता कंपनियों के आईटी सिस्टम को टारगेट
अभी पॉवर ग्रिड पर हमले की खबर चर्चा में ही थी कि साइबर इंटेलिजेंस फर्म साइफर्मा के हवाले से समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने एक खबर की। जिसमें चीनी हैकरों द्वारा हाल के हफ्तों में दो भारतीय वैक्सीन निर्माता कंपनियों के आईटी सिस्टम को टारगेट करने की बात कही गई। बता दें कि इन दोनों कंपनियों की बनाई वैक्सीन भारत में 16 जनवरी से शुरू हुए टीकाकरण कार्यक्रम में इस्तेमाल हो रही है। सिंगापुर और टोकियो स्थित गोल्डमैन सैक्स समर्थित साइफर्मा के अनुसार चीनी हैकरों के समूह एपीटी 10 ने भारतीय वैक्सीन निर्माता कंपनियों सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक के आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर और सप्लाई चेन सॉफ्टवेयर में खामी और कमजोरी की पहचान की है। चीनी हैकरों का मुख्य उद्देश्य इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी चुराना और भारतीय दवा निर्माता कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा में बढ़त हासिल करना था।
भारतीय पोर्टों को बना रहे निशाना
ऑनलाइन डिजिटल थ्रेट्स पर काम करने वाली कंपनी रिकॉर्ड फ्यूचर ने भारत स्थित पोर्ट और चीन से जुड़े ग्रुप के बीच लिंक पाया जो अभी सक्रिय है। ये बात रिकॉर्ड फ्यूचर के चीफ ऑपरेटिंग अफसर स्टूअर्ट सोलोमॉन की तरफ से कही गई है। रिकॉर्ड फ्यूचर के अनुसार चीनी हैकिंग कंपनी का नाम रेड इको है और 10 फरवरी को रिकॉर्डेड फ्यूचर ने पाया कि इसने भारत स्थित पावर ग्रिड और पोर्ट से जुड़े कम से करीब 10 ठिकानों को निशाने पर लिया। कहा जा रहे है कि इसमें से अधिकांश कनेक्शन 28 फरवरी तक सक्रिय थे।
कितना बड़ा है चाइनीज हैकर नेटवर्क
एक अनुमान के मुताबिक चीन की हैकर कम्युनिटी में तीन लाख से भी ज्यादा लोग काम करते हैं। इनमें से 93 फीसदी चीनी सेना यानी चाइनीज रिपब्लिकन आर्मी के लिए काम करते हैं। इनकी पूरी फंडिंग चीनी सरकार करती है। ये हैकर लगातार अमेरिका, जापान, साउथ कोरिया, भारत और साउथ ईस्ट एशिया के देशों में हैकिंग करते हैं। चीन की इंटेलिजेंस ब्रांच भी है। इसे कोड 61398 के नाम से भी जाना जाता है। यही वो कोड है जो दुश्मन देशों पर साइबर हमले करता है।
नए जमाने का युद्ध- साइबर वॉर
साल 2007 में इजरायली एयर फोर्स ने सीमा के नजदीत स्थित सीरिया की न्यूक्लियर फैसलिटीज को बर्बाद करने के लिए ऑपरेशन ऑर्किड चलाया। इसमें इजरायल ने सीरिया के एयर डिफेंस सिस्टम को निष्क्रिय करने के लिए साइबर वॉरफेयर रा रास्ता अपनाया। इसा फायदा उठाते हुए इजरायल के फाइटर एयरक्राफ्ट ने न्यूक्लियर फैसिलिटीज पर बम गिराये।
साल 2010 में स्टूक्नेट वायरस ने ईरान की न्यूक्लियर फैसिलिटी का एक बड़ा हिस्सा बर्बाद कर दिया। इसे इजरायल और अमेरिकी के साझा ऑपरेशन के तौर पर देखा गया।
2014-15 में यूक्रेन के साथ विवाद के बीच रूस ने उनके मिलिट्री कम्युनिकेशन सिस्टम को ब्लैंक कर दिया थआ और इसकी वजह से यूक्रेन को सेलुलर नेटवर्क का इस्तेमाल करना पड़ा और उनके लोकेशन रूस को आसानी से पता चल जाती थी।
क्या भारत ऐसे हमले के लिए तैयार
देश में एक इंटीग्रेटेड साइबर कमांड बनाने की मांग लंबे वक्त से चल रही है। दुनियाभर के देशों में सेना के पास अपनी एक साइबर सेना भी होती है जो इस तरह के मामलों से निपटती है। भारत में साइबर हमलों को रोकने के लिए दो संस्थाएं हैं। एक है सीईआरटी जिसे कंप्यूटर इमरजेंसी रेस्पॉन्स टीम के नाम से जाना जाता है। इलका गठन साल 2004 में किया गया था। क्रिटिकल इनफॉर्मेशन के तहत नहीं आने वाले साइबर हमलों पर सीईआरटी कार्रवाई करतीहै। दूसरी संस्था है नेशनल क्रिटिकल इनफर्मोशन इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोटेक्शन सेंटर जो 2014 से काम कर रही है। ये क्रिटिकल इंफ्रास्ट्रक्चर पर होने वाले हमलों की जांच और रेस्पॉन्स का काम करती है। लेकिन अब वक्त और तकनीक में काफी बदलान समय के साथ आया है। देश के लिए नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल द्वारा साइबर सिक्योरिटी स्ट्रेटजी की जरूरत महसूस हुई और इसको लेकर तैयारी जारी है लेकिन काम अभी पूरा नहीं हुआ है।