चीन के रवैये में क्यों आया सकारात्मक बदलाव?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत को लेकर चीन की भाषा अकस्मात बदल गई है। भारत को लेकर उसके रुख में नरमी देखी गई है। पूर्वी लद्दाख में भारतीय सैनिकों के साथ संघर्ष करने वाले चीन ने रविवार को कहा कि भारत हमारा दोस्त और सहयोगी है। हम एक दूसरे के लिए खतरा या प्रतिद्वंद्वी नहीं है। दोनों देश एक दूसरे की अनदेखी नहीं कर सकते। चीन ने कहा कि अच्छे वातावरण में सक्षम स्थितियां बनाकर सीमा विवाद समेत सभी मतभेदों को दूर कर सहयोग को और मजबूत किया करेंगे। चीन और भारत मिलकर बहुध्रुवीय दुनिया का विकास कर सकते हैं। हालांकि, भारत के साथ संबंधों पर अपने लंबे जवाब में वांग ने चीनी सेना की वापसी के मसले पर चर्चा नहीं की। ऐसे में सवाल यह उठता है कि चीन की भाषा में इस नरमी के क्या बड़े निहितार्थ हैं। अकस्मात भारत को लेकर चीन के रुख में बड़ा बदलाव क्यों आया है। चीन के इस रुख में बदलाव की बड़ी वजह क्या है। आइए जानते हैं इस बदलाव के तीन प्रमुख कारण।
चीन की आक्रामकता ही बनी उसकी बड़ी कमजोरी
प्रो. हर्ष पंत का कहना है कि चीन की आक्रमकता ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन गई। दरअसल, हाल के महीनों में चीन अपने आसपास के इलाकों में बहुत ज्यादा आक्रामक हो गया है। दक्षिण चीन सागर और प्रशांत क्षेत्र में उसने कई अहम देशों से सीधे दुश्मनी ठान ली है। दक्षिण चीन सागर और प्रशांत क्षेत्र में उसकी दिलचस्पी और आक्रमाकता के चलते जापान, ऑस्टेलिया, इंडोनेशिया और वियतनाम के साथ तनावपूर्ण रिश्ते चल रहे हैं। इसके साथ हांगकांग और ताइवान को लेकर उसके अमेरिका और यूरोपीय देशों के साथ संबंध तल्खपूर्ण हो गए हैं। लद्दाख में सीमा नियंत्रण के अतिक्रमण के कारण चीन के भारत के साथ रिश्ते काफी नीचे चले गए हैं। उन्होंने कहा कि यह कहा जा सकता है हाल के दिनों में चीन ने दुश्मन ज्यादा बनाए और दोस्त कम। अपनी आक्रामकता के चलते वह पूरी दुनिया में अलग-थलग पड़ चुका है। लद्दाख में चीन के साथ तनाव में भारत ने बहुत संयम और धैर्य से काम लिया। भारत के इस स्टैंड की पूरी दुनिया में सराहना हुईंं, वहीं चीन की आक्रामकता को लेकर उसकी सभी देशों ने प्रत्यक्ष रूप से निंदा की।
सफल रही पीएम मोदी की कोरोना डिप्लोमेसी
प्रो. पंत का कहना है कि भारत की सफल कोरोना डिप्लोमेसी के चलते भी चीन के दृष्टिकोण में यह बदलाव आया है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोरोना डिप्लोमेसी का दुनिया ने लोहा माना। दअरसल, दुनिया में कोरोना महामारी के प्रसार के दौरान भारत की भूमिका को लेकर चौतरफा प्रशंसा हुई। संयुक्त राष्ट्र ने इसकी सराहना की। यूएन ने कहा कि अन्य देशों को भारत से सीख लेना चाहिए। यूएन ने भारत को एक सामर्थ्यवान देश माना। यह पहली दफा हुआ है, जब दुनिया में फैली महामारी से निपटने के लिए भारत ने अन्य मुल्कों की बढ़चढ़ कर मदद की है। भारत के इस कदम को दुनिया में सराहा गया। दुनियाभर में भारत की छवि एक उदार लोकतांत्रिक, सक्षम, सशक्त और सामर्थ्यवान देश के रूप में उभरकर आई। भारत की अतंरराष्ट्रीय स्तर पर साख मजबूत हुई है। इसके चलते चीन पर कहीं न कहीं भारत और उसके पड़ोसी मुल्कों के साथ संबंधों में सुधार का दबाव है।
भारत-चीन के बीच अमेरिका बड़ा फैक्टर
प्रो. पंत का कहना है कि अमेरिका और चीन के बीच तल्ख होते रिश्ते इस नरमी की एक बड़ी वजह है। हाल में पेंटागन से जारी अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में चीन को प्रबल विरोधी बताया गया है। हाल में विदेश नीति पर अपने भाषण में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने भी चीन को अमेरिका का सबसे गंभीर प्रतिद्वंद्वी करार दिया। बाइडन प्रशासन भी इस बात को मान चुका है कि चीन अपनी सेना के आधुनिकीकरण में लगा हुआ है। दक्षिण चीन सागर, हिंद प्रशांत क्षेत्र और ताइवान को लेकर चीन अमेरिका को सीधे टक्कर दे रहा है। चीन ने दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना खड़ी कर दी है। इसके अलावा अमेरिका का चीन के साथ मानवाधिकारों, बौद्धिक संपदा, आर्थिक नीतियों समेत कई मसलों पर टकराव है। इसलिए चीन अब अपना पूरा ध्यान हांगकांग और ताइवान पर लगाना चाह रहा है। उन्होंने कहा कि बदलते अंतरराष्ट्रीय परिदृष्य में चीन निश्चित रूप से भारत के साथ तनावपूर्ण रिश्ते खत्म करने का मन बना रहा होगा। इसके बावजूद चीन ने लद्दाख पर अपने दृष्टिकोण का खुलासा नहीं किया है। इससे जाहिर होता है कि उसने लद्दाख का मुद्दा छोड़ा नहीं है। इससे जाहिर होता है कि वह सैन्य टकराव को वार्ता के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने का ख्वाहिश रख रहा है।