आधी आबादी को हाशिये पर रख आगे जाना मुमकीन नहीं है.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष
बीते कुछ दशकों से जीवन के हर क्षेत्र में अपनी मेहनत, क्षमता और कौशल से महिलाओं ने उत्कृष्ट स्थान हासिल किया है, लेकिन आज भी उनकी भागीदारी का अनुपात बहुत कम है. हमारे देश में उद्यमों के संचालन में उनकी हिस्सेदारी केवल सात प्रतिशत है. इनमें से लगभग आधी महिलाएं किसी विवशता की वजह से कारोबार में आयी हैं, न कि अपनी आकांक्षाओं को साकार करने के इरादे से. छोटे कारोबारों में यह आंकड़ा 13 प्रतिशत से कम है.
उद्यमों के शुरुआती स्तरों पर महिलाओं की मौजूदगी 33 फीसदी है. इससे यह संकेत मिलता है कि हाल के समय में स्थिति में कुछ सुधार हो रहा है. इसका एक संकेत इस तथ्य से भी मिलता है कि स्त्री उद्यमियों में से 58 फीसदी की आयु 20 से 30 साल के बीच है, लेकिन यह भी है कि कामकाजी उम्र की लगभग 43 करोड़ महिलाओं में से 34 करोड़ से अधिक किसी ऐसे काम से नहीं जुड़ी हुई हैं, जिसके एवज में उन्हें वेतन या मेहनताना मिले.
कामकाजी आयु की केवल सात फीसदी स्त्रियों को ही काम के बदले वेतन मिलता है. यह भी उल्लेखनीय है कि एक जैसा काम होने के बावजूद महिलाओं को पुरुषों से कम वेतन मिलता है. एक अध्ययन के मुताबिक, अगर कोई स्त्री घर से चलनेवाले कारोबार में है, तो वह रोज महज 5.8 घंटे ही काम को दे पाती ही, जबकि 6.6 घंटे उसे परिवार की देखभाल के लिए देना होता है और इस अवधि के लिए उसे कोई भुगतान नहीं मिलता. छोटे व मझोले उद्यमों में महिलाओं की बहुत कम भागीदारी के अनेक कारण हैं.
एक तो हमारे देश में इक्कीसवीं सदी में भी स्त्रियों के स्वावलंबन को व्यापक समर्थन नहीं मिलता है. पुरुष वर्चस्ववादी समाज यह सुनिश्चित करता है कि स्त्री पिता, पति और पुत्र पर निर्भर बनी रहे. एक शोध में पाया गया है कि महिला उद्यमियों के ऋण आवेदनों के खारिज होने या उनके निबटारे में देरी की संभावना बहुत अधिक होती है. आज जब हम देश को आत्मनिर्भर बनाने और अपनी अर्थव्यवस्था के विस्तार के लिए प्रयासरत हैं,
तो हमें यह समझना होगा कि महिला कारोबारियों और कामगारों की संख्या में बहुत बढ़ोतरी के बिना यह संभव नहीं हो सकेगा. साल 2019 की एक रिपोर्ट में रेखांकित किया गया था कि 2030 तक महिला उद्यमी 15 से 17 करोड़ रोजगार का सृजन कर सकती हैं.
ऐसे में जरूरी है कि कारोबार लगाने के लिए महिलाओं को प्रेरित किया जाए तथा उन्हें समुचित संसाधन उपलब्ध कराये जाएं. एक बड़ी चिंता की बात यह है कि देश की कार्यशक्ति में महिलाओं की भागीदारी मात्र 17.5 फीसदी (2017-18) है. कारोबार में महिलाओं की संख्या बढ़ाने के लिए सरकार, नीति आयोग, बैंकों और निजी क्षेत्र की ओर से कुछ सराहनीय पहलें हुई हैं तथा उन्हें अधिक-से-अधिक महिलाओं तक ले जाने की जरूरत है. आधी आबादी को हाशिये पर रख आगे जाना मुमकीन नहीं है.