: टीबी का संपूर्ण इलाज संभव, डरने की जरूरत नहीं : डॉ. अजय

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• जिले में प्रखंडस्तर पर टीबी का उपचार व दवा नि:शुल्क उपलब्ध
• समुदाय को जागरूक करने में मिला सामुदायिक रेडियो का साथ
• रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने पर टीबी की संभावना अधिक

श्रीनारद मीडिया‚ पंकज मिश्रा‚ छपरा (बिहार):

 

 

टीबी के खिलाफ लड़ाई को एक जन आंदोलन में बदलने की जरूरत है। इसके लिए एक प्रभावी संचार रणनीति की आवश्यकता है। जिस तरह से पूरे देश को पोलिया मुक्त किया गया, उसी तरह से टीबी मुक्त करने की भी जरूरत है। इसके लिए सामूहिक सहभागिता व जनआंदोलन की आवश्यकता है। सामूहिक सहभागिता से ही बिहार व पूरे देश को टीबी मुक्त किया जा सकता है। उक्त बातें प्रभारी जिला यक्ष्मा पदाधिकारी मेजर डॉ. अजय कुमार शर्मा ने सामुदायिक रेडियो “रेडियो मयूर” पर इंटरव्यू देते हुए कही। उन्होंने कहा कि 2025 तक सारण जिला समेत पूरे देश को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया है। कहा कि राज्य सरकार टीबी उन्मूलन की दिशा में हर संभव कदम उठा रही है। स्वास्थ्य विभाग नये साधन व तकनीक को अपनाने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है और टीबी उन्मूलन के लिए लगातार प्रयासरत है। जिले में टीबी मरीजों की खोज की जा रही है। कहा कि अगर किसी व्यक्ति को यह बीमारी है तो उसे छिपाएं नहीं बल्कि बताएं ताकि उनका बेहतर उपचार किया जा सके।

 

टीबी से बचाव के लिए बच्चों को बीसीजी का टीका:
जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ. शर्मा ने बताया कि बच्चों में टीबी की बीमारी नहीं हो, इसके लिए जन्म के समय हीं बीसीजी का टीका लगाया जाता है। इससे बच्चों में टीबी की बीमारी होने की संभावना कम हो जाती है। किसी बीमारी के ख़िलाफ़ बच्चे के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिए उसे वैक्सीन दी जाती है।

ऐसे लक्षण दिखे तो जरूर जांच कराएं:
डॉ. अजय कुमार शर्मा ने कहा कि बच्चों व व्यस्कों में टीबी बीमारी का लक्षण सामान्य होता है। टीबी सबसे ज्यादा फेफड़ों को प्रभावित करती है, इसलिए शुरुआती लक्षण खांसी आना है। पहले तो सूखी खांसी आती है लेकिन बाद में खांसी के साथ बलगम और खून भी आने लगता है। दो हफ्तों या उससे ज्यादा खांसी आए तो टीबी की जांच करा लेनी चाहिए। पसीना आना, थकावट, वजन घटना, बुखार रहना टीबी के लक्षण हैं है।

टीबी के समुचित इलाज की नि:शुल्क सुविधा:
डॉ. शर्मा ने कहा कि जिले के सभी प्रखंडों में टीबी मरीजों के लिए संपूर्ण इलाज की व्यवस्था उपलब्ध है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर जांच की सुविधा के साथ दवा भी उपलब्ध है। जो दवा निजी अस्पताल में मिलती है वही सरकारी अस्पताल में भी मिलती है। लेकिन निजी अस्पताल में अधिक कीमत पर यह दवा उपलब्ध है, जबकि सरकारी अस्पतालों में नि:शुल्क दी जाती है। टीबी के मरीजों को दवा का कोर्स पूरा करना जरूरी है। अगर बीच में दवा छोड़ देते हैं तो उनका इलाज लंबे समय तक चलता है।

स्वस्थ व्यक्तियों में टीबी होने की संभावना कम:
डॉ. शर्मा ने कहा कि टीबी भी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलती है। लेकिन अगर कोई स्वस्थ व्यक्ति है तो उसमें यह बीमारी होने की संभावना कम रहती है, क्योंकि उस व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है और वह उस बैक्टीरिया को खत्म कर देती है। लेकिन अगर किसी व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है और वह टीबी मरीज के संपर्क में आता है या बैक्टीरिया उसके शरीर में प्रवेश करता है तो उसे भी टीबी हो सकता है। इसलिए सावधानी जरूरी है। कोरोना से बचाव के लिए जैसे हम लोग मास्क और शारीरिक दूरी का पालन करते हैं वैसे टीबी से बचाव के लिए भी करना होगा।

टीबी छुआछूत की बीमारी नहीं:

टीबी छुआछूत की बीमारी नहीं है, बस मरीज को इतना ख्याल रखना है कि वह मुंह-नाक पर रूमाल रखकर खांसे या छीकें। इलाज चलता रहे तो दो सप्ताह बाद टीबी के फैलने का खतरा खत्म हो जाता है। यह एक ही थाली में खाना खाने और कपड़े पहनने से नहीं होती है। दवा शुरू होने पर दो हफ्ते के अंदर ही संक्रमण की क्षमता खत्म हो जाती है। किसी बर्तन में बलगम थूकें। फिनायल डाल दें और बर्तन उबालकर साफ करें।

टीबी कितने प्रकार की होती है:
ड्रग सेंसेटिव टीबी और ड्रग रेजिस्टेंस टीबी। इसमें एमडीआर टीबी भी एक प्रकार है। जब टीबी की आम दवाएं काम करना बंद कर देती हैं तो उसे ड्रग रेजिस्टेंस टीबी कहते हैं। एमडीआर टीबी उसी का प्रकार है। इसमें लंबे समय तक ज्यादा मात्रा में दवा देनी पड़ती है। इसकी कीमत और अन्य प्रभाव ज्यादा होते हैं। ड्रग सेंसेसटिविटी का इलाज ठीक से किया जाए तो ड्रग रेजिस्टेंस टीबी को रोका जा सकता है।

 

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