धूम्रपान करने वाले ज्यादातर लोग इसके बुरे प्रभाव से अंजान होते हैं,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

विश्व भर में 10 मार्च को धूम्रपान निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है। सबसे पहले यह जानना जरुरी है कि धूम्रपान आखिर है क्या? यह वह क्रिया है जिसके तहत तम्बाकू को बीड़ी−सिगरेट, सिगार, हुक्का, इलेक्ट्रानिक सिगरेट, क्रेटेक्स, रोल−योर−ओन, वेपराइज़र आदि के द्वारा इसका धुआं या तो चखा जाता है या फिर उसे सांस द्वारा मुख के अंदर खींचा जाता है। तम्बाकू को वनस्पति विज्ञान में Nicotiana Tabacum कहा जाता है। इसे अमेरीकन हर्ब भी कहा जाता है। क्योंकि इसका इस्तेमाल भी सबसे पहले यहीं पर हुआ था। इसका प्रयोग बीड़ी−सिगरेट के अलावा खैनी, गुटका इत्यादि में भी किया जाता है। तम्बाकू के अंदर निकोटीन बहुतात में पाया जाता है जो कि एक सफेद रंग का घातक विष है। चिकित्सकों का मानना है कि यदि इसका शुद्ध कतरा इंजैक्शन से सीधे खून में उतार दिया जाए तो इंसान की मृत्यु हो सकती है। धूम्रपान कब व कैसे शुरू हुआ तो इसका जवाब है कि इसका इतिहास बहुत ही पुराना है। यह लगभग 5000 ई.पू से शुरू हुआ।

आगे बढ़ने से पहले आप सब के साथ प्रसिद्ध वैज्ञानिक एडीसन के बचपन की सच्ची घटना सांझा करना चाहते हैं। एक बार उन्होंने देखा कि कुछ पक्षियों ने एक वृक्ष पर बैठकर कुछ कीड़े खाए एवं कुछ समय बाद वे तेजी से उड़ गए। पक्षियों की गगन में उन्मुक्त उड़ान देखकर बालक एडिसन बहुत प्रभावित हुए। संपूर्ण दृष्य का आकलन करने पर उन्होंने यही निष्कर्ष निकाला कि पक्षी इसलिए उड़ पाते है, क्योंकि वे कीड़े खाते हैं। पिफर क्या था उन्होंने कहीं से कीड़े−मकोड़े एकत्र किए एवं उन्हें पानी में घोलकर अपनी नौकरानी को पिला दिया। पिफर नौकरानी को छत से कूदने के लिए कहा। नौकरानी ने उड़ना तो क्या था लेकिन बच्चे द्वारा दिए गए कुछ पैसे के लालच में आकर अपनी हड्डी पसली जरुर तुड़वा ली।

अगर हम धूम्रपान या किसी भी प्रकार का नशा करने वाले लोगों की जीवन की जाँच करेंगे तो पता चलेगा कि ज्यादातर लोग इनके बुरे प्रभाव से अनजान होते हैं। नशाखोरों द्वारा उन्हें हवाई स्वप्न दिखाए जाते हैं। जिनसे आकर्षित होकर वे नशा करते हैं। और पफलस्वरूप नशे की खाई में गिरकर दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं।

सब से पहले हमें जानना हैं कि आखिर व्यक्ति इस लत का आदी क्यों हो जाता है? इसके पीछे बहुत सारे कारण हैं। पहला व्यक्ति अपने दोस्त−मित्राों के प्रभाव या Peer Pressure में के आगे घुटने टेक देता है। क्योंकि ऐसे लोगों में आत्मविश्वास व स्वाभिमान का अभाव होता है। या यों कह सकते हैं कि ऐसे लोगों की निर्णात्मक या विवेक शक्ति दुर्बल होती है।

दूसरा जब व्यक्ति के भीतर एक विशेष तरह की सुखानुभूति पाने की ललक पैदा होती है, एक ऐसी खुशी, ऐसा उछाल व उल्लास, जो उसे अपने दैनिक कार्य−व्यवहारों से नहीं मिलता। विज्ञान के अनुसार हमारा शरीर और मस्तिष्क एक सामान्य लय (rhytm) में काम करते रहते हैं। एक ही वेवलैन्थ (Wavelength) पर सक्रिय रहते हैं। जिससे कभी−कभी एक तरह की बोरीयत, उबाऊपन या शिथिलता का आभास होता है। और व्यक्ति इस उबाऊ स्थिति से निकलने की कोशिश करने लगता है। और किसी भी चीज़ में मस्ती ढूंढता है। और यही से उसके अंदर धूम्रपान या नशे जैसे व्यसन की शुरुआत हो जाती है।

लेकिन अगर इसके दुष्प्रभावों पर गौर किया जाए तो इसकी शृंखला अनंत है। सबसे अहम तथ्य यह है कि सिर्फ बीड़ी−सिगरेट पीने वाले पर ही इसका दुष्प्रभाव नहीं पड़ता अपितु इस धुएं के संपर्क में आने वाला प्रत्येक मनुष्य इसके दुष्परिणामों के को भोगता है। क्योंकि एक होता है। Active smoker और दूसरा Passive smoker. एक्टिव स्मोकर वह व्यक्ति है जो 10 साल या इससे ज्यादा समय से निरंतर 5 से 10 सिगरेट/बीड़ी रोजमर्रा पी रहा है। और पैसिव स्मोकर वह व्यकित है जो एक एक्टिव स्मोकर के साथ तीन से भी ज्यादा सालों तक किसी न किसी रूप से संपर्क में रहता है।

तम्बाकू के प्रयोग से 2004 में दुनिया भर में 58.9 मिलीयन लोगों की जान के हताहत होने का अंदाजा लगाया है। जिसमें 5.5 मिलीयन मौतों का कारण धूम्रपान को माना गया है। इसी प्रकार 2007 में लगभग 4.10 मिलीयन मौतों हुई जिसमें 70 प्रतिशत मौतें विकासशील देशों में हुईं हैं। डा. फरिड पालम का कहना (प्रसिद्ध नशा वैज्ञानिक) ब्रिटेन में हर घंटे में 12 व्यक्ति तंबाकू की बली चढ़ते है। क्योंकि UK की तंबाकू इंडस्ट्री सारे संसार से ताक्तवर है। यही कारण यह है कि UK में कम से कम एक लाख से ज्यादा लोग प्रतिवर्ष सिर्पफ तंबाकूनोशी के कारण मर जाते हैं।

WHO का अनुमान है कि इस सदी के अंत तक यह गिनती बढ़कर एक करोड़ से भी ज्यादा हो जाएगी। तंबाकूनोशी करने वाले में से 70 प्रतिशत लोग फेफडों का कैंसर होने से मृत्यु के गाल में समा जाते हैं। 20−25 प्रतिशत लोग दिल के रोगों से, 30 प्रतिशत से भी ज्यादा लोग सांस के रोगों से। इनमें से ज्यादातर लोगों की मृत्यु का कारण सिर्फ सिगरेटनोशी ही है।

अगर हम भारत देश की बात करें तो की WHO की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के बीड़ी−सिगरेट में दूसरे देशों के मुकाबले निकोटीन की मात्रा अधिक होती है। एक सिगरेट में लगभग 15 से 30 मिली ग्राम तक पाया जाता है। हर रोज़ एक पैकेट बीड़ी−सिगरेट पीने वाले व्यक्ति अपनी जिंदगी के कीमती पाँच साल गँवा लेता है। विश्व सेहत संस्था ने चेतावनी दी है कि विकासशील देशों को जो तंबाकू भारत से निर्यात किया जाता है उस आधर पर कहा जा सकता है कि भारत में ज्यादातर लोग 20 साल की उम्र से पहले बीड़ी−सिगरेट पीने के आदी हो जाते हैं।

1. कैंसर−बीड़ी−सिगरेट नोशी या धूम्रपान का सबसे बड़ी सौगात मनुष्य को कैंसर जैसी नामुराद बीमारी के रूप में मिलती है। इसके द्वारा मुँह का कैंसर, गले का कैंसर, अग्निशय की कैंसर, निकोटीन,कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोजन साइनाइड, पाइरीडिन अमोनिया, एलडीहाइड, कैरीनोजियस आदि सब कैंसर जैसे दुस्साध्य रोग के जनक हैं। आज दुनियाभर में फेफडों का कैंसर तेजी से अपने पैर पसार रहा है। पिछले 30−32 सालों में पश्चिमी देशों में कैंसर से मरने वालों की तेजी से वृद्धि हुई है। अमेरिका में हर साल धूम्रपान से 480,000 मौतें होती हैं। यही नहीं 41,000 से ज्यादा मौतें Second smokers या passive smokers की होती हैं। सिर्फ कैंसर ही नहीं धूम्रपान अपने साथ और भी कई खतरनाक बीमारियों की सौगात देता है जैसे दिल का दौरा, सदमा, दीर्घकालीन फेफडों के रोग इत्यादि।

2. smoker’s cough- बीड़ी सिगरेट के इस्तेमाल से smoker’s cough हो जाती है। सिगरेट के धुएं द्वारा जो निकोटीन मनुष्य के भीतर जाता है वह cilia भाव श्वांस नली की भीतरी झिल्ली की कोशिकाओं को नष्ट कर देती है। इन्हें पीने से बुखाराती गैसें जैसे नाइट्रोजन डाइऑकसाइड, हाइड्रोजन सायनाइड एवं कार्बन मोनोऑकसाइड जैसी जहरीली, खतरनाक गैसें पैदा होती हैं। इसके धुएं में 4000 से भी ज्यादा ज़हरीले कैमीकल होते हैं। जिसके चलते सिगरेटनोशी करने वाले बुरी तरह की खांसी का शिकार हो जाते हैं एवं सारा जीवन खांसते हुए एक दिन संसार से अलविदा हो जाते हैं। इसलिए आएँ तम्बाकू रहित जीवन जीने का संकल्प लें व अपने जीवन को आनंदमय बनाएँ।

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