ब्रह्मपुत्र नदी पर बाँध बनाने के पीछे क्या है विस्तारवादी चीन का असल उद्देश्य.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
विस्तारवादी चीन भारत के करीब पहुँचने के लिए कई मोर्चों पर तेजी से प्रयास कर रहा है। इसी कड़ी में चीनी संसद ने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र पर बांध बनाने संबंधी 14वीं पंचवर्षीय योजना को मंजूरी दे दी है। इस चीनी बांध के बन जाने से खासतौर पर भारत, बांग्लादेश को सूखे और बाढ़ जैसी स्थितियों का जब-तब सामना करना पड़ सकता है। चीन इसलिए भी तिब्बत में बड़े-बड़े निर्माण कार्यों को तीव्रता से मंजूरी दे रहा है क्योंकि पूर्वी लद्दाख में तनाव पैदा करने के बाद ड्रैगन की नजर अब अरुणाचल प्रदेश पर है। इससे पहले खबर आई थी कि चीन बुलेट ट्रेन लेकर अरुणाचल प्रदेश की सीमा के निकट पहुँचने वाला है। बहरहाल, जब चीन के कब्जे वाले तिब्बत में विद्रोह दिवस के 62 साल हो चुके हैं, एक चीज और स्पष्टता के साथ दिख रही है कि चीन तिब्बती संस्कृति और इतिहास को मिटा देने का अभियान भी अनवरत जारी रखे हुए है।
नया विवाद कैसे खड़ा हुआ ?
यह नया विवाद तब खड़ा हुआ जब इस सप्ताह चीनी संसद ने अरबों डॉलर की लागत वाली परियोजनाओं संबंधी 14वीं पंचवर्षीय योजना को मंजूरी दी। इसमें अरुणाचल प्रदेश सीमा के निकट तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर विवादास्पद जल विद्युत परियोजना भी शामिल है, जिस पर भारत ने चिंता जताई है। सरकारी मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार चीन की शीर्ष विधायिका नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) ने छह दिवसीय सत्र के अंतिम दिन बृहस्पतिवार को राष्ट्रीय आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए 14वीं पंचवर्षीय योजना (2021-2025) को मंजूरी दी। एनपीसी में दो हजार से अधिक सदस्य हैं जिनमें से ज्यादातर सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी से है। संसद सत्र में चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग, प्रधानमंत्री ली क्विंग और अन्य वरिष्ठ नेताओं ने भाग लिया।
एनपीसी ने विकास के एक ऐसे खाके को भी मंजूरी दी है जिसमें चीन के विकास को गति देने के लिए 60 प्रस्ताव शामिल हैं। इसे पिछले साल कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) ने पारित किया था। 14वीं पंचवर्षीय योजना में ब्रह्मपुत्र नदी की निचली धारा पर बांध बनाना शामिल था, जिस पर भारत और बांग्लादेश ने चिंता जताई थी। चीन ने इस तरह की चिंताओं को दूर करते हुए कहा है कि वह उनके हितों को ध्यान में रखेगा। भारत सरकार ने लगातार चीनी अधिकारियों को अपने विचार और चिंताओं से अवगत कराया है और उनसे यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया है कि उसकी किसी भी गतिविधि से उसके हितों को नुकसान न पहुंचे।
चीन के इरादे क्या हैं ?
अब चीन दावे भले करे कि वह किसी और के हितों को नुकसान नहीं पहुँचाएगा लेकिन उसके असल इरादे कुछ और ही हैं। अभी पिछले सप्ताह ही चीन एक बार फिर विवादों में आया था जब यह खबर आई कि चीन इस साल जुलाई से पहले अरूणाचल प्रदेश से लगने वाली भारतीय सीमा के नजदीक तिब्बत तक बुलेट ट्रेनों का संचालन करेगा। इसका मतलब हुआ कि इस रेलवे लाइन के शुरू होने से चीन की पहुंच अरुणाचल प्रदेश की सीमा तक हो जाएगी। चीनी रेलवे लाइन तिब्बत के जिस निंगची में समाप्त होगी, वो स्थान अरुणाचल प्रदेश के बॉर्डर से काफी नजदीक है। चीन निंगची के दूरगामी इलाकों में भी लगातार निर्माण कार्य कर रहा है। निंगची की भारत की सीमा से दूरी को अगर किलोमीटर के हिसाब से देखें तो 50 किलोमीटर से भी कम की दूरी मान लीजिये।
चीनी बांध बनने से क्या नुकसान होगा ?
जहां तक ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन के बनने वाले बांध से उत्पन्न होने वाले खतरे की बात है तो इससे भारत और बांग्लादेश समेत कई पड़ोसी देशों को सूखे और बाढ़ दोनों, ही स्थितियों का जब-तब सामना करना पड़ सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि बांध बन जाने से चीन अपने मन मुताबिक समय पर बांध के दरवाजे खोल कर ज्यादा पानी छोड़ देगा जिससे पानी का तेज बहाव उत्तर-पूर्वी राज्यों में बड़ा नुकसान कर सकता है। इसके अलावा चीन का मन करेगा तो पानी छोड़ेगा ही नहीं जिससे उत्तर-पूर्व में जल संकट जैसी स्थिति भी हो सकती है। उल्लेखनीय है कि चीन यह बांध तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र की यारलंग जांग्बो नदी पर बना रहा है, यह नदी भारत में बह कर आने पर ब्रह्मपुत्र में जा मिलती है। ब्रह्मपुत्र नदी असम से बह कर बांग्लादेश में भी जाती है, इसीलिए बांग्लादेश भी इस बांध के निर्माण के विरोध में है।
तिब्बत में करना क्या चाहता है चीन ?
इसके अलावा चीन ने तिब्बत में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए बड़ी राशि खर्च करने की योजना बनाई है। चीन ने अपनी नई पंचवर्षीय योजना के तहत दूरदराज के हिमालयी प्रांत में अगले पांच साल के दौरान बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 30 अरब डॉलर आवंटित किए हैं। इनमें नए एक्सप्रेसवे का निर्माण और मौजूदा बुनियादी ढांचे को मजबूत करना शामिल है। चीन की 14वीं पंचवर्षीय योजना के अनुसार 2021-2025 के दौरान परिवहन क्षेत्र की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर 190 अरब युआन या 29.3 अरब डॉलर खर्च किए जाएंगे। सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार इस राशि का इस्तेमाल नए एक्सप्रेसवे बनाने, मौजूदा राजमार्गों का अद्यतन करने और ग्रामीण क्षेत्रों की सड़कों की हालत सुधारने पर किया जाएगा। बयान में कहा गया है कि 2025 तक तिब्बत में कुल राजमार्ग 1,20,000 किलोमीटर हो जाएंगे। इस दौरान एक्सप्रेसवे 1,300 किलोमीटर से अधिक हो जाएंगे।
बहरहाल, इसमें कोई दो राय नहीं कि चीन ने तिब्बत की गौरवशाली संस्कृति एवं इतिहास को नष्ट करने के लिए दशकों से मुहिम छेड़ रखी है। चीन के कब्जे के खिलाफ तिब्बती विद्रोह दिवस के 62 वर्ष पूरे हो रहे हैं, ऐसे में दुनिया के सामने यह स्पष्ट है कि तिब्बती लोग अपने अधिकारों एवं स्वतंत्रता के लिए दशकों से जो अभियान छेड़े हुए हैं वह अब तक सफल नहीं हुआ है। तिब्बती लोग सिर्फ हिंसा मुक्त माहौल में अपने धर्म का पालन करना चाहते हैं, अपनी भाषा बोलना चाहते हैं और अपनी संस्कृति को जीवित रखना चाहते हैं, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि चीन उन्हें इसकी आजादी नहीं देता और अब वहां अंधाधुंध निर्माण कार्यों की बदौलत देश की संस्कृति और इतिहास तो मिटाना ही चाहता है साथ ही अपने विस्तारवाद को भी आगे बढ़ाना चाहता है।