बाटला एनकाउंटर के बाद लगभग पूरी तरह खत्म हो गया इंडियन मुजाहिदिन: करनैल सिंह
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बाटला हाउस एनकाउंटर के 13 साल बाद साकेत कोर्ट ने सोमवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए आरिज खान उर्फ जुनैद को दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई। यह एनकाउंटर राजनीतिक रूप से काफी विवादों में रहा। इस कारण देश की तमाम आतंक विरोधी एजेंसियों को लंबे समय तक बेवजह का विवाद झेलना पड़ा।‘बाटला हाउस एनकाउंटर’ किताब में कई राज खोलने वाले ईडी के पूर्व डायरेक्टर और इस एनकाउंटर के समय दिल्ली पुलिस के ज्वांइट कमिश्नर रहे करनैल सिंह ने कहा कि बेशक कुछ लोगों ने दिमागी उपज से एनकाउंटर पर जानबूझकर सवाल खड़े किए थे। मगर, कोर्ट का फैसला पुख्ता प्रमाण और ठोस जांच पर आधारित थे।
मेहनत से इनपुट जुटाकर कार्रवाई की थी
दिल्ली में हुए 50 से ज्यादा बम धमाकों को सुलझाने वाले पूर्व वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी करनैल सिंह ने बताया कि बाटला हाउस एनकाउंटर में दो लोग मौके से भाग गए थे। एक शहजाद और दूसरा आरिज खान। इन्होंने पुलिस टीम पर फायरिंग की थी, जिसमें हमारे जांबाज इंस्पेक्टर मोहन चंद शहीद हो गए थे। हमले में एक हेड कॉन्स्टेबल बलवंत को हाथ में फ्रैक्चर हो गया था। आरिज को 2018 में नेपाल बॉर्डर से पकड़ा गया था, जिसका दोषी साबित हुआ और कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई।
इससे पता चलता है कि स्पेशल सेल की कार्रवाई एकदम सही दिशा में थी जिसमें तब के एसीपी संजीव यादव, इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा और पूरी टीम ने मेहनत से इनपुट जुटाकर कार्रवाई की थी। यही कारण था कि आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) को लगभग पूरी तरह खत्म कर दिया और अब इसके बचे खुचे लोग पाक दुबई में हैं। यह इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि दिल्ली पुलिस की ठोस जांच की बदौलत और उसके आधार पर ही कोर्ट का फैसला सामने आया है।
एनकाउंटर पर राजनेताओं ने उठाए सवाल
करनैल सिंह के अनुसार, बाटला हाउस एनकाउंटर साल 2008 में हुआ था, उस दौरान पांच राज्यों में चुनाव होने थे और साल 2009 में लोकसभा के चुनाव होने थे। ऐसे में कुछ राजनेताओं ने पूरे एनकाउंटर को राजनीति से जोड़कर बयानबाजी की। बिना तथ्यों के आधार पर राजनेताओं ने बयानबाजी कर एनकाउंटर पर सवाल खड़े करने लगे। उस समय राजनीति के कुछ सेक्शन ऐसे थे, जिन लोगों ने इस मामले का फायदा उठाने की पूरी कोशिश की, लेकिन वो सफल नहीं हो सके। इस मामले में गलत माहौल बनाने की कोशिश की गई।
यहां तक कहा गया कि आतंकवादी मासूम थे। मोहन चंद शर्मा को उसकी टीम ने गोली मार दी। बिना सच को जाने तोड़ मरोड़ कर स्टोरी पेश की गई। उस समय ऐसी बयानबाजी से स्पेशल सेल के खिलाफ माहौल पैदा कर दिया गया था, लेकिन बाद में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की जांच हुई। यह मामला हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी गया। कोर्ट ने भी यही माना कि एनकाउंटर असली है। इसके बावजूद कुछ लोग एनकाउंटर को फर्जी बोलते रहे।
उन्होंने कहा कि मेरे साथ-साथ देश के बहुत सारे लोगों को दुख पहुंचा क्योंकि एनकाउंटर में एक तो हमारे इंस्पेक्टर शहीद हुए, दूसरी तरफ ऐसी राजनीतिक बयानबाजी हो रही थी। उन्होंने कहा कि आप रिकॉर्ड चेक कीजिए कि उस एनकाउंटर के बाद देश में कहीं भी इंडियन मुजाहिदीन ब्लास्ट जैसी आतंकी घटना को अंजाम नहीं दे पाया। इससे साबित होता है कि स्पेशल सेल ने बड़ी सफलता हासिल की थी, लेकिन एजेंसियों को लंबे समय तक बेवजह झेलना पड़ा।
सटीक रही जांच एजेंसियों की जांच
इस मामले में आतंक विरोधी एजेंसियों ने दो दिशाओं में जांच की। एक, एनकाउंटर को लेकर और दूसरी, आतंकवाद को लेकर। एनकाउंटर की जांच दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने वैज्ञानिक सबूतों के आधार पर की। आज का फैसला क्राइम ब्रांच की जांच पर आधारित है। दूसरी जांच इंडियन मुजाहिदीन ने जो बम धमाके दिल्ली, जयपुर, बेंगलुरु, अहमदाबाद और उत्तर प्रदेश में किए, उसे लेकर हुई। इस जांच में कमी यह है कि जिन अलग-अलग जगहों पर धमाके हुए, वहां की अदालतों में ट्रायल चल रहा है। जबकि सभी में आरोपी लगभग समान हैं। इस पूरी प्रक्रिया में ट्रायल बहुत देर हो जाती है, जबकि इसका केंद्रीकृत ट्रायल होता तो त्वरित फैसला आता।