कैसे 18 मार्च 1974 को पड़ी, जेपी आंदोलन की नींव?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

18 मार्च, 1974 को पटना में जो कुछ हुआ, उसने मशहूर जय प्रकाश आंदोलन की नींव डाल दी थी. छात्रों और युवकों द्वारा उस दिन शुरू किए गए आंदोलन को बाद में जेपी का नेतृत्व मिला था. समय के साथ आंदोलन लगभग पूरे देश फैला. 25 जून 1975 की रात में आपातकाल लगा. करीब सवा लाख राजनीतिक नेता और कार्यकर्ता लोग विभिन्न जेलों में बंद कर दिए गए. कुछ पत्रकार भी जेल भेजे गए.

अंततः 1977 के चुनाव के बाद देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बन गई. वैसे इस राजनीतिक यात्रा की शुरूआत एक गैर राजनीतिक अभियान से 18 मार्च 1974 को हुई थी. उस दिन को याद करना अपने आप में एक अनुभव है. बिहार के छात्रों और युवकों ने भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी और गलत शिक्षा नीति के खिलाफ 18 मार्च 1974 को जोदार आंदोलन शुरू किया. उस दिन अपनी मांगों के समर्थन में राज्य भर से पटना आए छात्रों-युवकों ने बिहार विधान मंडल भवन का घेराव किया.

क्या हुआ था उस दिन?

उस दिन विधान मंडल के सत्र की शुरूआत होने वाली थी. राज्यपाल दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित करने वाले थे. आंदोलनकारियों की योजना थी कि राज्यपाल को विधान मंडल भवन में प्रवेश ही न करने दिया जाए. प्रस्तावित घेराव की जानकारी चूंकि लोगों को पहले से ही थी, इसलिए सत्ताधारी विधायक सुबह छह बजे ही विधान मंडल भवन में प्रवेश कर गए थे. विपक्षी विधायकों ने राज्यपाल के अभिभाषण के बहिष्कार का निर्णय कर लिया था इसलिए वे वहां गए ही नहीं. उधर प्रशासन भी राज्यपाल आर.डी. भंडारे को किसी भी कीमत पर विधान मंडल भवन पहुंचाने पर अमादा था.

राज्यपाल की गाड़ी को आगे बढ़ाने के क्रम में पुलिस ने छात्रों-युवकों पर निर्ममतापूर्वक लाठियां चलाईं. तब छात्रों और युवकों का नेतृत्व करने वालों में पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के तत्कालीन अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव, शिवानंद तिवारी, वशिष्ठ नारायण सिंह, नरेंद्र कुमार सिंह, राम जतन सिंहा, सुशील कुमार मोदी, रवि शंकर प्रसाद और कृपानाथ पाठक प्रमुख थे. इनमें से कई लोगों को चोटें आईं. पुलिस द्वारा निर्मम प्रहार से भीड़ में उत्तेजना फैल गई. भीड़ बेकाबू हो गई. भीड़ किसी नेता के कंट्रोल में नहीं रही. भीड़ में अराजक तत्व भी घुस गए थे.

उस अवसर पर घटनास्थल पर उपस्थित इन पंक्तियों के लेखक ने देखा कि दोनों तरफ से प्रहार-प्रति प्रहार होने लगे. अश्रु गैस के गोलों के कारण पूरा इलाका तीखे धुएं से भर गया था. थोड़ी देर के बाद पटना में भीड़ लूटपाट, तोड़फोड़ और आगजनी करने लगी. उन्हें रोकने के लिए कोई छात्र या युवा नेता कहीं आसपास नहीं था. किसी के रोकने से वे रुकने वाले भी नहीं थे. पुलिस बल भी अपर्याप्त साबित हुआ. अनियंत्रित भीड़ ने जहां-तहां प्रमुख संस्थानों में आग लगा दी. यहां तक कि दैनिक अखबार सर्चलाइट-प्रदीप की बिल्डिंग में भी आग लगा दी गई. भीड़ इंडियन नेशन-आर्यावर्त में भी आग लगाने फ्रेजर रोड पर गई पर वहां के कर्मचारियों ने बहादुरी दिखाई और उन्हें खदेड़ दिया. बाद में प्रबंधन ने उन कर्मचारियों को इनाम भी दिया. एक कांग्रेसी मंत्री के सुजाता होटल में भी आग लगाई गई.

जाहिर है कि यह सब उन आंदोलनकारियों का काम नहीं था जिन्होंने घेराव का आयोजन किया था. दोपहर होते-होते पटना शहर को सेना के हवाले कर दिया गया. उधर विधानसभा के सचिव विश्वनाथ मिश्र के सरकारी आवास में भीड़ द्वारा आग लगा देने की खबर जब विधानसभा सचिवालय पहुंची तो सचिवालय के कर्मचारी भी उत्तेजित हो गए. उन लोगों ने मंत्रियों और विधायकों पर अपना गुस्सा उतारना शुरू कर दिया. मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर और कुछ मंत्रियों ने छिप कर खुद को बचाया. उनके अंगरक्षकों को अपने रिवाल्वर निकालनी पड़ी.

इस आंदोलन के हिसंक हो जाने पर जयप्रकाश नारायण ने यह बयान दिया कि हिंसा और आगजनी से क्रांति नहीं हो सकती. अपने आंदोलन की दुर्दशा देखकर कुछ छात्रों और युवकों ने जयप्रकाश नारायण से मुलाकात की. उनसे आग्रह किया कि अब वे आंदोलन का नेतृत्व करें. जेपी ने एक शर्त पर नेतृत्व देना स्वीकार किया. उनकी शर्त यह थी कि आंदोलन में हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं होगा. छात्र-युवक शर्त मान गए. आंदोलन जब आगे बढ़ा तो जेपी ने बिहार विधान सभा के सदस्यों से सदन की सदस्यता से इस्तीफा दे देने की अपील की. अधिकतर प्रतिपक्षी सदस्यों ने तो इस्तीफा दे दिया पर कांग्रेस सदस्यों द्वारा इस्तीफे का सवाल ही नहीं उठता था.

इस्तीफे की मांग के समर्थन में आंदोलनकारियों ने विधान मंडल भवन के घेराव का कार्यक्रम शुरू किया. आंदोलन आगे बढ़ा आंदोलन के दौरान कई महत्वपूर्ण पड़ाव आए. कई उतार-चढ़ाव भी. आंदोलन की दृष्टि से कई नए रिकार्ड कायम हुए. आजादी के बाद वैसा अहिंसक आंदोलन कभी नहीं हुआ जैसा जेपी के नेतृत्व में 1974-75 में हुआ था. आंदोलन के दौरान जय प्रकाश नारायण ने छात्रों से अपील करते हुए कहा था कि ‘गांधी ने लोगों से उनका जीवन मांगा था. मैं सिर्फ एक साल मांग रहा हूं. नया बिहार बनाने के लिए विद्यार्थियों से अपील करता हूं कि वे एक साल के लिए कॉलेज और विश्वविद्यालयों को बंद रखें.’ कुछ मामलों में इसका भी असर हुआ था.

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