वाराणसी का एक ऐसा मंदिर जहां हिंदू धर्म न मानने वालों का है प्रवेश निषेध, उर्दू में भी लगा है
बोर्ड
श्रीनारद मीडिया, सुनील मिश्रा, वाराणसी (यूपी ):
काशी मंदिरों का शहर है और यहां के मंदिर अतिप्राचीन इतिहास को समेटे हुए है। शिव की नगरी में सभी देवी और देवताओं का मंदिर है। दुर्गाकुंड स्थित दुर्गा मंदिर का चैत्र और शारदीय नवरात्र में काफी महत्च है। सावन माह में सावन का मेला भी लगता है। इस मंदिर के मुख्य द्वार पर शिलापट्ट पर एक सूचना अंकित है। इसके तहत हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों को ही मंदिर में प्रवेश की अनुमति है। सूचना पटट पर संस्कृत, इंग्लिश और उर्दू में लिखा है। इस बारे में दुर्गाकुंड मंदिर के महंत कौशल पति द्विवेदी ने कहा कि मंदिर के द्वार पर यह बोर्ड लगा है। सामान्य तौर पर इसाई धर्म मानने वाले अंग्रेज या मुस्लिम मंदिर में स्वत: नहीं आते हैं। केवल सनातन धर्म अनुयायी ही मंदिर में अंदर प्रवेश करते हैं और दर्शन-पूजन करते हैं। 2019 में पीएम मोदी ने भी मंदिर में दर्शन-पूजन किया था।
हिंदी में लिखा है : जो लोग आर्य धर्म नहीं मानते वे इस मंदिर में प्रवेश न करें
इंग्लिश में लिखा है : GENTLEMEN NOT BELONGING TO HINDU RELIGIONARE REQESTED NOT TO ENTER THE TEMPLE
उर्दू में लिखा है : हिन्दू नहीं हैं, इस मंदिर में तशरीफ़ ना ले जावें
इसके साथ ही संस्कृत में भी आर्य धर्म के अतिरिक्त लोगों का मंदिर में प्रवेश निषेध का संदेश पत्थर पर लिखा गया है। वहीं दूसरी ओर शुक्रवार को ‘#हरमंदिरपरबोर्डलगेगा’ का हैश टैग इंटरनेट मीडिया में चर्चा के केंद्र में बना रहा। वहीं वाराणसी में इस प्रसिद्ध मंदिर में दशकोंं पहले से लगा यह बोर्ड कभी विवाद का विषय नहीं बना। जबकि मंदिर में मात्र आस्थावानों का आना जाना भी कभी किसी के लिए आपत्ति या पूछताछ का विषय नहीं रहा।
बाबा दरबार में प्रियंका वाड्रा का भी विवाद
काशी विश्वनाथ मंदिर में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के दर्शन पूजन पर उनके गैर हिंदू होने को लेकर वाद भी दाखिल हो चुका है। मगर अदालत की ओर से स्पष्ट किया गया कि ईश्वर सबके हैं और जिसकी आस्था है वह मंदिर में जाकर दर्शन पूजन कर सकता है।
जाने दुर्गा जी के आदि मंदिर दुर्गा कुंड के बारे में
प्राचीन मंदिर
दुर्गा मंदिर काशी के पुरातन मंदिरों मे से एक है। इस मंदिर का उल्लेख ” काशी खंड” में भी मिलता है। यह मंदिर वाराणसी कैन्ट से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर है। लाल पत्थरों से बने इस भव्य मंदिर के एक तरफ दुर्गा कुंड है। इस मंदिर में माता दुर्गा यंत्र के रूप में विराजमान है। मंदिर के निकट ही बाबा भैरोनाथ, लक्ष्मीजी, सरस्वतीजी, और माता काली की मूर्तियां अलग से मंदिरों में स्थापित हैं। इस मंदिर के अंदर एक विशाल हवन कुंड है, जहां रोज हवन होते हैं। कुछ लोग यहां तंत्र पूजा भी करते हैं।
अदृश्य रूप में विराजित हैं माता
ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में दुर्गा माता आद्य शक्ति स्वरूप में अदृश्य रूप से विराजमान हैं। ये मंदिर शिव की नगरी काशी के प्राचीनतम मंदिरों में से एक माना जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि ये देवी का आदि मंदिर है, इसके अतिरिक्त वाराणसी में केवल दो ही मंदिर काशी विश्र्वनाथ और मां अन्नपूर्णा मंदिर ही प्राचीनतम हैं।
अदभुद कहानी
इस मंदिर से जुड़ी एक अदभुद कहानी सुनाई जाती है। कहते हैं कि अयोध्या के राजकुमार सुदर्शन का विवाह काशी नरेश सुबाहु की बेटी से करवाने के लिए माता ने सुदर्शन के विरोधी राजाओं का वध करके उनके रक्त से कुंड को भर दिया वही रक्त कुंड कहलाता है। बाद में राजा सुबाहु ने यहां दुर्गा मंदिर का निर्माण करवाया और 1760 ईस्वी में रानी भवानी ने इसका जीर्णेद्धार करवाया।
स्वामी विवेकानंद को मिला था मंत्र- रुको ! उनका सामना करो !
एक बार बनारस में स्वामी जी दुर्गा जी के मंदिर से निकल रहे थे कि तभी वहां मौजूद बहुत सारे बंदरों ने उन्हें घेर लिया। वे उनके नज़दीक आने लगे और डराने लगे . स्वामी जी भयभीत हो गए और खुद को बचाने के लिए दौड़ कर भागने लगे, पर बन्दर तो मानो पीछे ही पड़ गए और वे उन्हें दौडाने लगे।
पास खड़ा एक वृद्ध सन्यासी ये सब देख रहा था , उसने स्वामी जी को रोका और बोला , – रुको ! उनका सामना करो !
स्वामी जी तुरन्त पलटे और बंदरों के तरफ बढ़ने लगे , – ऐसा करते ही सभी बन्दर भाग गए।
इस घटना से स्वामी जी को एक गंभीर सीख मिली और कई सालों बाद उन्होंने एक संबोधन में कहा भी – यदि तुम कभी किसी चीज से भयभीत हो, तो उससे भागो मत , पलटो और सामना करो।
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