होलाष्टक में प्रकृति और मौसम के बदलाव से जुड़ी है परंपरा.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

धर्मग्रंथों और लोक मान्यताओं के मुताबिक होली से पहले के 8 दिनों को होलाष्टक कहते हैं। माना जाता है कि इन दिनों में किसी भी तरह का शुभ काम नहीं करना चाहिए। होलाष्टक की परंपरा प्रकृति और मौसम के बदलाव से जुड़ी हुई है। इन दिनों ग्रहों की चाल और ऋतुओं में बदलाव होने से मानसिक और शारीरिक संतुलन गड़बड़ा जाता है। इस कारण ही इन दिनों में शुभ और मांगलिक काम करने की मनाही है।

होलाष्टक में मांगलिक कामों की मनाही
होलाष्टक के दौरान सभी मांगलिक काम और 16 संस्कार नहीं किए जाते हैं। साथ ही अगर इन दिनों में अंतिम संस्कार करना पड़े तो उसके पहले विशेष पूजा-पाठ और शांति कर्म भी किए जाते हैं। होलाष्टक के दौरान 16 संस्कारों पर रोक होने के कारण ही इस अवधि को शुभ नहीं माना जाता है।

मौसम के साथ शरीर में भी होते हैं बदलाव
उज्जैन के धर्म विज्ञान संस्थान के अध्यक्ष डॉ. जगदीश चंद्र जोशी का कहना है कि होली से पहले के आठ दिन ये संकेत देते हैं कि रूटीन लाइफ में बदलाव कर लेना चाहिए। डॉ. जोशी के मुताबिक इन दिनों में मौसम में बदलाव के साथ शरीर में हार्मोंस और एंजाइम्‍स में भी बदलाव होते हैं। मूड स्विंग होने लगता है। सेक्‍सुअल हार्मोंस के कारण शरीरिक और मानसिक बदलाव भी होने लगते हैं। मौसम के बदलने से हार्ट और लीवर पर भी बुरा असर पड़ता है।

होलाष्टक के दौरान वातावरण में हानिकारक बैक्‍टीरिया और वायरस ज्यादा एक्टिव हो जाते हैं। सर्दी से गर्मी की ओर जाते हुए इस मौसम में शरीर पर सूर्य की पराबैंगनी किरणें विप‍रीत असर डालती हैं। ये दिन संकेत देते हैं कि साइट्रिक एसिड वाले फलों का इस्तेमाल ज्यादा करना चाहिए। इसके साथ ही गर्म पदार्थों का सेवन कम कर देना चाहिए।

सेहत के लिए अच्छा होता है होलिका दहन
होलिका दहन पर जो अग्नि निकलती है वो शरीर के साथ साथ आसपास के बैक्‍टीरिया और नकारात्‍मक ऊर्जा को खत्म कर देती है। क्योंकि गाय के गोबर से बने कंडे, पीपल, पलाश, नीम और अन्य पेड़ों की लकड़ियों से होलिका दहन होने पर निकलने वाला धुंआ सेहत के लिए अच्छा होता है।

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