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आंखों में इंतजार की हर रात काट दी, तेरे बेगैर अबकी भी बरसात काट दी-शमीम अंजुम

आंखों में इंतजार की हर रात काट दी, तेरे बेगैर अबकी भी बरसात काट दी-शमीम अंजुम

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श्रीनारद मीडिया, सीवान (बिहार )

सीवान जिले के बड़हरिया के सीवान रोड स्थित कांग्रेस कार्यालय में देश के मशहूर और मारुफ शायर शमीम अंजुम वारसी के सम्मान में साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस साहित्यिक संगोष्ठी की अध्यक्षता जिले के उस्ताद शायर फहीम जोगापुरी ने की। वहीं इसका सफल संचालन मशहूर मजाहिया शायर सुनील कुमार उर्फ तंग इनायतपुरी ने किया। इस अवसर पर प्रोफेसर तारिक शूजा और पूर्व मुखिया मिर्जा अली अख्तर ने सुप्रसिद्ध शायर शमीम अंजुम वारसी को शाल ओढ़ाकर और मालाएं पहनाकर सम्मानित किया। शायरों ने अपनी बेहतरीन कलामों से महफिल में समां बांध दिया। श्रोताओं ने जमकर दाद दिया।
साहित्यिक गोष्ठी में मोईज बभनबरवी ने अपनी नज्म यूं पेश की -‘ न जाने तलब फूलों की है कैसी, कांटों में दामन फंसा जा रहा है’। वहीं बभनबरवी की ये नज्म- अंधेरा बढ़ा जा रहा है,चिराग-ए-मुहब्बत बूझा जा रहा है’ सराही गयी। अब बारी थी कोलकाता से आये मशहूर शायर शमीम अंजुम वारसी की। तरन्नुम के साथ पढ़ी गयी शमीम अंजुम वारसी की नज्में तालियां बटोरती रहीं और वाहवाहियां लूटती रहीं। उनकी नज्म-‘मैंने भी उसके शौक का ना रखा लिहाज, उसने भी जिद्द में आकर मेरी बात काट दी’।आंखों में इंतजार की हर रात काट दी,तेरे बेगैर अबकी भी बरसात काट दी’। वहीं उस्ताद शायर का इन कलामों ने- ‘मांगने आये हैं वो मुझसे मुहब्बत का सबूत, आज

इस आग के दरिया से गुजर जाऊं क्या, डराता है मुझे मौत से,डर जाऊं क्या, मनसबे इश्क से नीचे उतर जाऊं क्या’। रात के पिछले पहर चांद ने पूछा मुझसे,जागने वाली है खाबिदा सहर जाऊं क्या’। खूब तालियां बटोरीं।मजाह के शायर तंग इनायतपुरी ने राजनीतिक वायदे पर प्रहार करते हुए अपनी नज्म यूं पेश कीं -वर्षों से खूंटियों में वादे लटक रहे हैं,सच बोलने में हम-तुम अटक रहे हैं’। लॉकडाउन की तस्वीर खींचते हुए शायर मेराज तिसना ने अपना कलाम यूं पेश किया-‘ ये क्या तिसना ज़माना आ गया है, गमों का शामियाना आ गया है,कोई रुकती जब गाड़ी सड़क पर, लगता है हमारे लिए खाना आ गया है’। दाग अपनी मुफलिसी का इस तरह वो धो गए,जिंदगी से थक चुके थे पटरी पर सो गए’. मजाह के शायर परवेज अशरफ ने ये शेर पढ़कर खूब गुदगुदाया-“ये बस्ती छोड़ देते हैं,ये कूचा छोड़ देते हैं, चलो हम आज से तुम्हारा पीछा छोड़ देते

हैं’। जबकि रजी अहमद फैजी ने अपने कलाम कुछ इस तरह परोसा-‘लब पे ये मुस्कान सजाते हुए थक जाता हूं, मैं ये किरदार निभाते थक जाता हूं। अश्क में तैरती तस्वीर कहां से ले आऊं, तुझको आंखों में छुपाते हुए थक जाता हूं’। खूब तालियां बटोरीं। वहीं डॉ जाकिर हुसैन जकी ने अपनी नज्म कुछ इस तरह पेश की-‘काश! ये बात समझते भाई, भाईचारे में है इज्ज़त कितनी। चांद धरती पे उतर आया है, आज मुझ पर इनायत कितनी’। वाहवाहियों का सबब बनी। वहीं कार्यक्रम के संयोजक शायर नूर सुल्तानी ने अपनी नज्म यूं परोसीं- ‘हमें अपनी विरासत की हिफाजत खुद करनी है, मुहाफिज हमेशा सरकार हो ऐसा नहीं होता’। जबकि मौलाना कासिम की ये नज्म भी सराही गयी-‘गुनाहगार कहती है दुनिया जिसे,वही आदमी बेगुनाहों में था,असर सोजे दिल में,न आहों में था,वो जादू तुम्हारी निगाहों में था’। शायर एहसानुल्लाह एहसान की अपनी नज्म यूं पेश की- ‘ये अहले दिल समझते हैं,मुहब्बत कितनी प्यारी है’। इस मौके पर जकीउल्लाह,सेराजुल हक,तनवीर जकी,सुल्तान वारसी,सगीर रहमानी आदि मौजूद थे।

 

 

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