Breaking

महात्मा ज्योतिबा फुले ने समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने का किया प्रयास.

महात्मा ज्योतिबा फुले ने समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने का किया प्रयास.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

‘मनुष्य जाति एक है’ इस आदर्श को आचरण तक लाने एवं अस्पृश्यता के संस्कारों को स्वस्थता देने में जिन महापुरुषों ने अनूठे उपक्रम किये, उनमें  महात्मा ज्योतिबा फूले का अविस्मरणीय योगदान है। वे 19वीं सदी के महान समाज सुधारक, विचारक, दार्शनिक और लेखक थे। उन्होंने भारतीय समाज में फैली अनेक कुरीतियों को दूर कर हिंदू समाज में समरसता लाने का प्रयास किया। उनके द्वारा किए गए कार्यों से भारतवर्ष में एक नई चेतना एवं नये विश्वास का विकास हुआ और समाज के उस तबके को जीने की नई राह मिली जो अभी तक दुनिया के विकास की रोशनी से वंचित था।

वंचितो, शोषितों और समाज में हाशिए पड़े हुए लोगों के उत्थान के लिए उन्होंने कई कल्याणकारी कार्य किए और समाज में अलग-थलग रह रहे लोगों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया। वे सशक्त, संतुलित, जातिवाद एवं रूढ़ि-आडम्बरमुक्त भारत निर्माण के पुरोधा थे। उनकी मानवीय संवदेनाओं ने केवल दलितों, वंचितों एवं अभावग्रस्तों को ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण मानवता को करुणा से भिगोया था।

महात्मा ज्योतिबा फूले ने एक बार जो संकल्प कर लिया और विश्वास के साथ हाथ में साहसी मशाल थाम ली तो फिर उनके कदम कभी, कहीं रूके नहीं। चलते चले, चलते चले। संघर्षों के तूफान भी उठें तो अपनी आदर्श समाज निर्माण की किश्ती को स्वयं के विवेक, साहस एवं आत्म विश्वास से किनारा दिया, क्योंकि रास्ते बनते नहीं, बनाये जाते हैं। उनके भीतर दीपक पर मर मिटने वाले पतंगों जैसी गहरी समर्पण निष्ठा थी। आपने अपने साध्य को सदा शुद्ध साधन से जोड़े रखा। इसीलिये सत्ता और पद का मद आपको छू न सका। यश और प्रतिष्ठा आपको गर्वित नहीं सकी।

आलोचना एवं संघर्ष आपके कद को छोटा नहीं कर सका। उन्होंने सबको ऊंची उड़ान भरने के लिये खुला आसमां दिया, वे बुराइयों के विरूद्ध संघर्ष काते रहे, आदमी को सही मायने में आदमी बनाने एवं उसके अधिकारों को उचित जगह दिलाने के लिये। उनका सम्पूर्ण जीवन सुधारवादी समाज-निर्माण के कार्यों एवं उपक्रमों की प्रयोगशाला था। इसलिये आपका अखण्ड व्यक्तित्व नमनीय बन गया।

महात्मा ज्योतिबा फूले का जन्मे 11 अप्रैल 1824 को पुणे में हुआ था, उनकी माता का नाम चिमणाबाई तथा पिता का नाम गोविंदराव था। एक वर्ष की अवस्था में इनकी माता का निधन हो गया। इनका लालन-पालन एक बाईं ने किया था। इन्हें महात्मा फुले, ज्योतिराव फुले और ज्योतिबा फुले के नाम से जाना जाता है। उनका परिवार कई पीढ़ी पहले सतारा से पुणे आकर फूलों के गजरे आदि बनाने का काम करने लगा था इसलिए माली के काम में लगे ये लोग ‘फुले’ के नाम से जाने जाते थे। ज्योतिबा ने प्रारंभ में मराठी में अध्ययन किया, बीच में पढाई छूट गई और बाद में 21 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी की सातवीं कक्षा की पढाई पूरी की। इनका विवाह 1840 में सावित्री बाई से हुआ, जो बाद में स्वयं एक प्रसिद्ध समाजसेवी बनीं। दलित और स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में पति-पत्नी दोनों ने मिलकर काम किया।

वे एक कर्मठ और समाजसेवी की भावना रखने वाले व्यक्ति थे। फुले समाज के सभी वर्गों को शिक्षा प्रदान करने के प्रबल समर्थक थे। वे भारतीय समाज में प्रचलित जाति पर आधारित विभाजन और भेदभाव के हमेशा विरुद्ध थे। वे कहा करते थे कि परमेश्वर एक है और सभी मानव उसकी संतान हैं।’ सितंबर 1873 में जोतिबा फुले ने महाराष्ट्र में अछूतोद्धार सत्यशोधक समाज नामक संस्था का गठन किया था। इसके प्रमुख गोविंद रानाडे और आरजी भंडारकर थे। उनकी उल्लेखनीय समाजसेवाओं एवं संतुलित समाज निर्माण के कार्यों को देखकर 1888 ई. में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि दी।

महात्मा ज्योतिबा फूले महिलाओं के उत्थान एवं उन्नयन के लिए मसीहा बन कर सामने आये। उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य औरतों को शिक्षा का अधिकार प्रदान करना और बाल विवाह, विधवा विवाह का विरोध करना रहा है। वे कुप्रथा, अंधश्रद्धा एवं आडम्बरों की जाल से समाज को मुक्त करना चाहते थे। यह वह समय था जब स्त्रियों को शिक्षा नहीं दी जाती थी और ऐसे समय में उन्होंने महिला-पुरुष भेदभाव मुक्त समाज की सरंचना की। उन्होंने बालिकाओं के लिए भारत देश की पहली पाठशाला पुणे में बनाई। लड़कियों और दलितों के लिए पहली पाठशाला खोलने का श्रेय ज्योतिबा को दिया जाता है।

स्त्रियों की तत्कालीन दयनीय स्थिति से महात्मा फुले बहुत व्याकुल और दुखी थे इसीलिए उन्होंने दृढ़ निश्चय किया कि वे समाज में क्रांतिकारी बदलाव लाकर ही रहेंगे। उन्होंने कहा भी है कि भारत में राष्ट्रीयता की भावना का विकास तब तक नहीं होगा, जब तक खान-पान एवं वैवाहिक सम्बन्धों पर जातीय बंधन बने रहेंगे।’ उन्होंने अपनी धर्मपत्नी सावित्रीबाई फुले को खुद शिक्षा प्रदान की और सावित्रीबाई फुले भारत की प्रथम महिला अध्यापिका बनी।

देश से छुआछूत खत्म करने और समाज को संतुलित करने में महात्मा ज्योतिबा फूल ने अहम किरदार निभाया। उन्होंने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरम्भ कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली। धर्म, समाज और परम्पराओं के सत्य को सामने लाने के लिए अपने जीवन काल में उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं, जिनमें प्रमुख हैं-गुलामगिरी, तृतीय रत्न, छत्रपति शिवाजी, राजा भोसला का पखड़ा, किसान का कोड़ा, अछूतों की कैफियत आदि। उनका खुद का जीवन एक सुधारवादी आन्दोलन था, मिशन था।

अनेक प्रमुख सुधार आंदोलनों के अतिरिक्त हर क्षेत्र में छोटे-छोटे आंदोलन उन्होंने जारी किये थे जिसने सामाजिक और बौद्धिक स्तर पर लोगों को परतंत्रता से मुक्त किया था। लोगों में नए विचार, नए चिंतन की शुरुआत हुई, जो आजादी की लड़ाई में उनके संबल बने। उन्होंने किसानों और मजदूरों के हकों के लिए भी संगठित प्रयास किया था। उन्होंने समाज को बहुत कुछ दिया। आज उनका संवाद हमारे लिये संदेश बन गया है तो उनके कर्म संतुलित एवं आदर्श समाज निर्माण की दीपशिखा। देखना अब यह है कि हम उनकी स्मृति को सिर्फ स्मारक बनाकर पूजते रहेंगे या उनके जलाये दीयों से रोशनी लेकर दीप बनकर जलेंगे।

 

महात्मा ज्योतिबा और उनके संगठन के संघर्षों एवं लगातार प्रयासों के कारण सरकार ने ‘एग्रीकल्चर एक्ट’ पास किया।  1854 में उन्होंने उच्च वर्ग की विधवाओं के लिए एक विधवाघर भी बनवाया। उन्होंने जनविरोधी सरकारी कानून कायदे के खिलाफ भी संघर्ष किया। ज्योतिबा फुले और सावित्रिबाई को कोई संतान नहीं थी इसलिए उन्होंने एक विधवा के बच्चे को गोद लिया था,जो उनके समाजसेवा के काम को आगे बढ़ाने के लिए डॉक्टर बना। 1888 से उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था। उनको लकवे का अटैक आया था। दो साल के बाद 28 नवम्बर 1890 को भारतीय समाज एवं जीवन को नई दिशा देने वाले इस महात्मा का निधन हो गया, लेकिन उनके द्वारा किए गए कार्य आज भी समाज में मिसाल बने हुए हैं और उनके बताए गए मार्ग पर चलकर ही समाज आज प्रगति कर रहा है।

इसे भी पढ़े…

Leave a Reply

error: Content is protected !!