हमारी अस्मिता के प्रतीक पुरुष श्रीराम.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
राम मात्र एक नाम भर नहीं, बल्कि वह जन-जन के कंठहार हैं, मन-प्राण हैं, जीवन-आधार हैं। उनसे भारत अर्थ पाता है। वह भारत के पर्याय और प्रतिरूप हैं और भारत उनका। उनके नाम-स्मरण एवं महिमा-गायन में कोटि-कोटि जनों को जीवन की सार्थकता का बोध होता है। भारत के कोटि-कोटि जन उनके दृष्टिकोण से जीवन के विभिन्न संदर्भों-पहलुओं का आकलन-विश्लेषण करते हैं। भारत से राम और राम से भारत को कभी विलग नहीं किया जा सकता, क्योंकि राम भारत की आत्मा हैं। भला आत्मा और शरीर को कभी विलग किया जा सकता है।
एक के अस्तित्व में ही दूसरे का अस्तित्व है। राम र्नििवकल्प हैं। उनका कोई विकल्प नहीं। राम के सुख में भारत के जन-जन का सुख आश्रय पाता है। उनके दुख में भारत का कोटि-कोटि जन आंसुओं के सागर में डूबने लगता है। कितना अद्भुत है उनका जीवन चरित, जिसे बार-बार सुनकर भी और सुनने की चाह बची रहती है। इतना ही नहीं, उस चरित को पर्दे पर अभिनीत करने वाले, लिखने वाले, उनकी कथा बांचने वाले हमारी श्रद्धा के केंद्र बन जाते हैं। उस महानायक से जुड़ते ही सर्वसाधारण के बीच से उठा-उभरा आम जन भी नायक सा लगने लगता है।
उनके सुख-दुख, हार-जीत, मान-अपमान में हमें अपने सुख-दुख, हार-जीत, मान-अपमान की अनुभूति होती है। उस महामानव के प्रति यही हमारे चित्त की अवस्था है।
राम को शास्त्र-प्रतिपादित अवतारी, सगुण, वर्चस्वशील वर्णाश्रम व्यवस्था के संरक्षक राम से अलग करने के लिए ही ‘निर्गुण राम” शब्द का प्रयोग किया। श्रीराम नाम के दो अक्षरों में ‘रा” तथा ‘म” ताली की आवाज की तरह हैं, जो संदेह के पंछियों को हमसे दूर ले जाती हैं।
ये हमें देवत्व शक्ति के प्रति विश्वास से ओत-प्रोत करते हैं। इस प्रकार वेदांत विद् जिस अनंत सच्चिदानंद तत्व में योगिवृंद रमण करते हैं उसी को परम ब्रह्म श्रीराम कहते हैं। आदि कवि वाल्मीकि ने उनके संबंध में कहा है कि वे गाम्भीर्य में समुद्र के समान हैं।
‘समुद्र इव गाम्भीर्ये धैर्यण हिमवानिव।” परंपरा में राम को विष्णु का अवतार माना गया है। धर्मग्रंथों में अवतारों के पांच भेद बताए गए हैं, जो इस प्रकार हैं- पूर्णावतार, अंशावतार, कलावतार, आवेशावतार, अधिकारी अवतार। जिनमें से रामावतार को ग्रंथों में पूर्णावतार माना गया है।
आदर्श पुत्र ही नहीं, आदर्श पति और भाई भी थे राम
भगवान राम आदर्श व्यक्तित्व के प्रतीक हैं। परिवेश अतीत का हो या वर्तमान का, जनमानस ने रामजी के आदर्शों को खूब समझा-परखा है रामजी का पूरा जीवन आदर्शों, संघर्षों से भरा पड़ा है। राम सिर्फ एक आदर्श पुत्र ही नहीं, आदर्श पति और भाई भी थे। जो व्यक्ति संयमित, मर्यादित और संस्कारित जीवन जीता है, नि:स्वार्थ भाव से उसी में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आदर्शों की झलक परिलक्षित हो सकती है।
राम के आदर्श वह मर्यादा है जो लांघी तो अनर्थ ही अनर्थ और मर्यादा में रहे तो खुशहाल और सुरक्षित जीवन। वर्तमान संदर्भों में भी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के आदर्शों का जनमानस पर गहरा प्रभाव है।
संपूर्ण भारतीय समाज के जरिए एक समान आदर्श के रूप में भगवान श्रीराम को उत्तर से लेकर दक्षिण तक संपूर्ण जनमानस ने स्वीकार किया है। उनका तेजस्वी एवं पराक्रमी स्वरूप भारत की एकता का प्रत्यक्ष चित्र उपस्थित करता है।
राम के चरित्र में पग-पग पर मर्यादा, त्याग, प्रेम और लोक व्यवहार के दर्शन होते हैं। राम ने साक्षात परमात्मा होकर भी मानव जाति को मानवता का संदेश दिया। उनका पवित्र चरित्र लोकतंत्र का प्रहरी, उत्प्रेरक और निर्माता भी है। इसीलिए तो भगवान राम के आदर्शों का जनमानस पर इतना गहरा प्रभाव है और युगों-युगों तक रहेगा।
‘राम नाम सत्य है”
भगवान विष्णु के बाद नारायण के इस अवतार की आनंद अनुभूति के लिए देवाधिदेव स्वयंभू महादेव 11वें रुद्र बनकर मारुति नंदन के रूप में निकल पड़े। यहां तक कि भोलेनाथ स्वयं उमा को सुनाते हैं कि मैं तो राम नाम में ही विचरण करता हूं। जिस नाम के प्रभाव ने पत्थरों को तारा है।
आदिकवि ने उनके संबंध में लिखा है कि वे गाम्भीर्य में उदधि के समान और धैर्य में हिमालय के समान हैं। राम के चरित्र में पग-पग पर मर्यादा, त्याग, प्रेम और लोकव्यवहार के दर्शन होते हैं।
प्रेम भक्ति से मिलते हैं श्रीराम
‘राम नाम उर मैं गहिओ जा कै सम नहीं कोई।।
जिह सिमरत संकट मिटै दरसु तुम्हारे होई।।”
अर्थात जिनके सुंदर नाम को हृदय में बसा लेने मात्र से सारे काम पूर्ण हो जाते हैं। जिनके समान कोई दूजा नाम नहीं है। जिनके स्मरण मात्र से सारे संकट मिट जाते हैं। ऐसेे प्रभु श्रीराम को मैं कोटि-कोटि प्रणाम करता हूं।
कलयुग में न तो योग, न यज्ञ और न ज्ञान का महत्व है। एक मात्र राम का गुणगान ही जीवों का उद्धार है। संतों का कहना है कि प्रभु श्रीराम की भक्ति में कपट, दिखावा नहीं आंतरिक भक्ति ही आवश्यक है।
गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं, ज्ञान और वैराग्य प्रभु को पाने का मार्ग नहीं है बल्कि प्रेम भक्ति से सारे मैल धुल जाते हैं। जल को मथने से क्या किसी को घी मिल सकता है। कभी नहीं। इसी प्रकार प्रेम-भक्ति रूपी निर्मल जल के बिना अंदर का मैल कभी नहीं छूट सकता। प्रभु की भक्ति के बिना जीवन नीरस है अर्थात् रसहीन है।
नैतिकता से मिलती है सकारात्मक ऊर्जा
एक तरफ उनका आदर्श हमारे मन को जीवन की ऊंचाइयों पर पहुंचाता है, वही दूसरी तरफ उनकी नैतिकता मानव मन को सकारात्मक ऊर्जा देती है। उनका हर एक कार्य हमारे विवेक को जगाता है और हमारा आत्मविश्वास बढ़ाता है। गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं, उनके सौंदर्य व तेज को देख माता के नेत्र तृप्त नहीं हो रहे थे और देवलोक भी अवध के सामने फीका लग रहा था।
राम नाम
कहते हैं कि रामनवमी के दिन ही गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना का श्रीगणेश किया था। श्रीराम ने अपने जीवन का उद्देश्य अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करना बनाया। इसीलिए नवमी को शक्ति मां सिद्धिदात्री के साथ शक्तिधर श्रीराम की पूजा की जाती है।
देखा जाय तो अवतार शब्द का अर्थ है ऊपर से नीचे उतरना। अवतार लेने से अभिप्राय है ईश्वर का प्रकट रूप में हमारी आंखों के सामने लीला करना। श्रीरामचरित मानस में जिन राम की लीलाओं का वर्णन किया गया है, वह अवतारी हैं।
भगवान श्रीराम स्वयं कहते हैं- सह्नदेव प्रपन्नय तवास्मीति च याचते। अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं मम।। अर्थात मेरा यह संकल्प है कि जो एक बार मेरी शरण में आकर मैं तुम्हारा हूं, कहकर मुझसे अभय मांगता है, उसे मैं समस्त प्राणियों से निर्भय कर देता हूं।
मैं तुम्हारा हूं सिर्फ कहने से नहीं होता। किसी का होने के लिए उस जैसा होना पड़ता है। राम के गुणों को अपनाकर ही उनका बना जा सकता है। तभी राम उसे अभय प्रदान करते हैं। तब राम हमें भव-सागर में डूबने के लिए नहीं छोड़ते। जो राम को छोड़ देता है, यानी उनके गुणों से किनारा कर लेता है, उसका डूबना तय है।
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