शुद्ध हवा, पानी जीवन का मूल आधार है और इसका अस्तित्व पृथ्वी से है

 

शुद्ध हवा, पानी जीवन का मूल आधार है और इसका अस्तित्व पृथ्वी से है

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया, पूर्णिया, (बिहार):
पृथ्वी दिवस (Earth Day 2021) एक वार्षिक आयोजन है, जिसे 22 अप्रैल को दुनिया भर में पर्यावरण संरक्षण के समर्थन प्रदर्शित करने के लिए आयोजित किया जाता है। लेकिन कोरोना संक्रमण काल में इसकी महत्ता काफी बढ़ गई है। पृथ्वी दिवस की स्थापना अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन ने 1970 में एक पर्यावरण शिक्षा के रूप की थी। अब इसे 192 से अधिक देशों में प्रति वर्ष मनाया जाता है। कोरोना संक्रमण काल में पृथ्वी दिवस का महत्व इसलिए महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि, आज के वर्तमान परिवेश में शुद्ध हवा (ऑक्सीजन) की जरूरत पड़ रही है। अगर इस ओर मानव समाज पहले से दिया होता तो शायद आज यह हालात देखने को नहीं मिलता। शुद्ध हवा, पानी जीवन का मूल आधार है और इसका अस्तित्व पृथ्वी से है। मानव समाज अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए पृथ्वी को तहस नहस कर दिया है। पर्यावरण संतुलन के लिए पेड़ पौधे, जीव जंतु, नदियां, झील, जंगल व पहाड़ सबका होना जरूरी है जिसका भक्षण मनुष्य धड़ल्ले से कर रहा है।

पृथ्वी दिवस के दिन ही हमें ग्लोबल वार्मिंग के बारे में पर्यावरणविदों के माध्यम से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का पता चलता है। पृथ्वी दिवस जीवन संपदा को बचाने व पर्यावरण को ठीक रखने के बारे में जागरूक करता है। जनसंख्या वृद्धि ने प्राकृतिक संसाधनों पर अनावश्यक बोझ डाला है, संसाधनों के सही इस्तेमाल के लिए पृथ्वी दिवस जैसे कार्यक्रमों का महत्व बढ़ गया है। ऐसे में आज हम भी आपके लिए पृथ्वी दिवस विशेष आलेख लेकर आए है। जिसे बिहार के पूर्णिया ज़िला मुख्यालय स्थित जिला स्कूल में कार्यरत शिक्षिका सुनीता कुमारी से जानते है उन्हीं की जुबानी पृथ्वी दिवस की कहानी……

आज पृथ्वी दिवस के शुभ अवसर पर मैं सबसे पहले इस धरा को नमन करती हूं। वर्तमान में जो रत्नगर्भा की हालात हम इंसानों की बजह से हुई है, इसके लिए अचला से क्षमा याचना करती हूं। आज की परिस्थिति में यह क्षमा याचना हर किसी व्यक्ति के लिए प्रसांगिक है। एक संकल्प हर व्यक्ति के लिए पृथ्वी दिवस पर इस पृथ्वी को बचाने के लिए अपेक्षित है। हरियाली चुनर से सुसज्जित इस धरा ने प्रत्येक जीवों को एक सुंदर घर दिया है, सांस लेने के लिए स्वच्छ हवा दी, प्यास बुझाने के लिए शीतल जल दिया, ठंड मिटाने के लिए धूप की गर्मी दी, रात को चैन से सोने के लिए शीतलता और शांति दिया, खाने के लिए स्वादिष्ट आहार दिया। पृथ्वी ने वह हर एक सुख सुविधाएं जीवों को दिया, जिनकी ज़रूरत जीवों को है। शायद पृथ्वी से एक भारी गलती हुई दिमाग तो सब जीवों को दिया पर बुद्धि सिर्फ इंसानों को दे दी, और इस बुद्धि वाले मनुष्य ने पृथ्वी के दृश्य को ही बदल दिया।

आज जो भी पृथ्वी की प्राकृतिक बदलाव हुआ है, उसके लिए कहीं न कहीं जिम्मेदार मनुष्य ही है। मनुष्य के अलावा पृथ्वी को नुकसान पहुंचाने का ख्याल शायद ही किसी जीव के मन में आया होगा, क्योंकि दिमाग तो प्रत्येक जीव में है। सुबह होते ही मुर्गे की बांग, शाम होते ही पक्षियों का झुंड में अपने घोषलों की तरफ जाना, चीटियों का कतार में चलना, मधुमक्खियों का अपने छत्ते में रहना, यह सब यह साबित करता हैं कि प्रकृति ने जिन्हें जैसा जीवन दिया हैं वह वैसे ही जी रहें हैं। पूर्णतः प्रकृतिक रूप में जीवन यापन कर रहे हैं। ना उन्हें किसी डॉक्टरों की जरूरत होती है, और ना ही किसी बड़े अस्पताल की।

मनुष्य को बुद्धि मिला तो उसने इसका सदुपयोग करने की जगह दुरुपयोग करना शुरू कर दिया। शारीरिक जरूरत को अनदेखा कर मानसिक जरूरत पर ध्यान देने लगे। मानसिक शांति के लिए भौतिक जीवन जीने लगे। इसका सबसे बड़ा प्रमाण जनसंख्या वृद्धि है और यहीं से प्रकृति और मनुष्य के बीच संतुलन बिगड़ा। सही है हम इंसान समय समय पर अपनी गलतियों की सजा भुगत रहे हैं पर कभी भी पिछली गलती से सीख नहीं लेते और बीतते वक़्त के साथ ही हम भविष्य में हमेशा एक नई गलती के लिए तैयार रहते हैं। मनुष्य को अपनी बुद्धि का उपयोग मनुष्य जीवन बचाने के लिए, इस प्रकृति को बचाने के लिए, धरती के सारे जीव को बचाने के लिए करनी चाहिए। आज जो परिस्थिति है, पूरे देश में जो हालात है उस परिस्थिति में यह संकल्प लेना आवश्यक है इस पृथ्वी को बचाना अतिआवश्यक है। इसके लिए लगातार प्रयास विश्व के सभी देशों की सरकार कर रही है पर इतना काफी नहीं है प्रकृति को बचाने का प्रयास सिर्फ सरकार और प्रशासन का नहीं बल्कि हर एक व्यक्ति को करना चाहिए।

Leave a Reply

error: Content is protected !!