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कैसे हो गया बंगाल में बड़ा खेला? - श्रीनारद मीडिया

कैसे हो गया बंगाल में बड़ा खेला?

कैसे हो गया बंगाल में बड़ा खेला?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह लाख कोशिशों के बावजूद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (दीदी) के दुर्ग को नहीं हिला सके। बंगाल में तृणमूल की मजबूत जड़ आखिरकार और मजबूत होकर सामने आई। हालांकि नंदीग्राम में भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी के हाथों ममता बनर्जी को हार का मुंह देखना पड़ा। इसके साथ ही भाजपा के लिए सबसे बड़ी राहत की बात यह रही कि 2016 में तीन सीटें जीतने वाली भाजपा 78 सीटों पर बढ़त बनाए हुए। वहीं कांग्रेस और वाममोर्चा का बंगाल से सफाया हो गया। ममता की सुनामी ऐसी चली कि केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो, भाजपा सांसद लॉकेट चटर्जी, स्वपन दासगुप्ता जैसे नेता हार गए। दूसरी ओर सिंगुर में भी तृणमूल प्रत्याशी जीत गए।

कांग्रेस के गढ़ में भाजपा 

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अधीर चौधरी का गढ़ और संसदीय क्षेत्र की बहरमपुर विधानसभा सीट पर भाजपा जीत गई। शाम छह बजे तक तृणमूल जहां दो सीटें जीत चुकी है और 209 सीटों पर आगे है तो भाजपा अपने सहयोगी आजसू के साथ 79 सीटों पर आगे है। हालांकि तृणमूल व भाजपा के बीच करीब 40-50 सीटों पर कड़ी टक्कर चल रही है जहां जीत का अंतर दो हजार से कम है। इस चुनाव परिणाम से ऐसा लग रहा है कि ममता बनर्जी को बंगाल में मात देना आसान नहीं है। भाजपा नेताओं को उम्मीद थी कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक श्याम प्रसाद मुखर्जी की जन्मभूमि पर 2021 में भाजपा का शासन होगा।

बंगाली अस्मिता व बाहरी जैसे मुद्दे बने कारगर  

परंतु, ममता के बाहरी और बंगाल की बेटी, बंगाली अस्मिता जैसे मुद्दों ने भाजपा की उम्मीद पर पानी फेर दिया। तृणमूल इस भारी जीत पर खुश जरूर है लेकिन एक टीस भी रह गई कि ममता ने सुवेंदु अधिकारी को नंदीग्राम में बड़े अंतर से नहीं हरा सकीं। दूसरी ओर तृणमूल के इस जीत के साथ ममता बनर्जी ने खुद को केंद्रीय राजनीति में भाजपा विरोधी विपक्ष के सबसे बड़े नेता के रूप में स्थापित कर लिया।

वाम-कांग्रेस पूरी तरह से साफ 

पिछली बार कांग्रेस व वाममोर्चा को 76 सीटें मिली थी। जिसमें कांग्रेस अकेले ही 44 सीटें जीती थी और खासकर नदिया, मुर्शिदाबाद, मालदा जैसे जिलों में कांग्र्रेस को सीटें मिली थी। परंतु, इस बार हालात यह रहे कि एक भी सीट नहीं मिली। माकपा की हालत यह है कि सिलीगुड़ी जहां से पिछले कई टर्म से अशोक भट्टाचार्य जीतते थे वह भी हार गए। वाममोर्चा के घटक दल भाकपा-आरएसपी व फारवर्ड ब्लाक जमानत भी नहीं बचा पाए।

ममता के दक्षिण के किले को नहीं भेद पाई भाजपा  

भाजपा के लिए ममता दक्षिण का किला भेदना संभव नहीं हो सका। इस क्षेत्र में 109 सीटें हैं। खास कर उत्तर कोलकाता व दक्षिण कोलकाता की सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों ने तृणमूल को कड़ी टक्कर जरूर दी है, लेकिन 11 में 11 पर तृणमूल बढ़त बनाए रखी। सुबह जैसे ही मतगणना का रूझान आना शुरू हुआ तो तृणमूल व भाजपा में कांटे की टक्कर दिखी। परंतु, जैसे-जैसे दिन चढ़ते गए वैसे-वैसे तृणमूल का भाजपा से आगे निकलती चली गई। कोरोना की रोक के बावजूद तृणमूल समर्थकों ने अबीर व गुलाल लगाकर जश्न शुरू कर दिया।

नंदीग्राम के नतीजे के बाद घर से बाहर निकलीं ममता

वहीं नंदीग्राम को लेकर सब की सांसें अटकी रही। ममता बनर्जी तब तक घर से बाहर नहीं निकली, जब तक नतीजे की घोषणा नहीं हुई। इसके बाद आज घर से बाहर निकलीं और भतीजे अभिषेक बनर्जी के साथ घर के सामने दरवाजे पर टहलते हुए दिखाई दीं। नेताओं की ओर से उन्हें बधाई दी जा रही थी। इसके बाद उन्होंने माइक पर पहले जय बांग्ला के नारे लगाए फिर उन्होंने इस जीत को बंगाल की जानता और यहां के लोगों की जीत बताया। दूसरी ओर भाजपा, वाममोर्चा व कांग्रेस मुख्यालय पर सन्नाटा पसरा हुआ था। हालांकि, भाजपा के चुनावी दफ्तर हेस्टिंग में नेता दिखे। माकपा दफ्तर सुनसान पड़ा था। दोपहर बाद वामो चेयरमैन विमान बोस, सूर्यकांत मिश्रा समेत अन्य नेता कुछ देर के लिए आए।

तृणमूल कांगेस की जीत की वजहें 

1. ममता बनर्जी जैसा चेहरा

2.बंगाली अस्मिता, संस्कृति, खुद को बंगाल की बेटी बताना

3.दुआरे सरकार, स्वास्थ्य साथी, कन्याश्री जैसी योजनाएं

4.भाजपा को बाहरी पार्टी बताना

5.मुस्लिम वोटबैंक की एकजुटता

6.ममता का मंदिर जाना और चंडीपाठ

भाजपा की हार की वजहें

1.ममता के सामने सीएम चेहरा न होना

2.प्रत्याशियों के चयन में गड़बड़ी

3.स्थानीय नेता व कार्यकर्ताओं की नाराजगी

4. ध्रुवीकरण की रणनीति फेल

5.शीतलकूची फायरिंग में चार मुस्लिम की मौत और भाजपा नेताओं बयान

6. अंतिम तीन चरणों में कोरोना का कहर

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