बंगाल में भाजपा को मिला बड़ा विस्तार, असम में सीएए के नैरेटिव पर मोदी की शानदार जीत.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बंगाल का जो नतीजा आया वह जाहिर तौर पर भाजपा को निराश कर सकता है। प्रदेश की सत्ता जो नहीं मिली, लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है। राजनीतिक रूप से बंजर जमीन में पार्टी का 25 गुना से ज्यादा विस्तार हो गया। यह उत्साह भरने के लिए काफी है। जिस असम को कांग्रेस और कुछ विपक्षी दलों ने डेढ़ साल पहले मोदी सरकार के खिलाफ आंदोलन की धरती के रूप में पेश किया था, वहां जनता ने और ज्यादा समर्थन देकर वापस सत्ता मे ला दिया। दक्षिण के तीन राज्य- तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी यूं तो भाजपा की रणनीति के केंद्र में नहीं थे, लेकिन भाजपा ने वहां भी बेहतर प्रदर्शन किया। इसका श्रेय जाहिर तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की मशक्कत को जाता है।
बंगाल में तुष्टीकरण: ममता की अपील, अल्पसंख्यक केवल तृणमूल को ही दें वोट
चूंकि सबसे बड़ा और सबसे ज्यादा चर्चा में बंगाल चुनाव रहा इसीलिए पहले वहीं से चर्चा की शुरुआत करते हैं। यह कहा जा सकता है कि भाजपा तो वहां 200 प्लस सीटों का दावा कर रही थी, लेकिन सौ भी नहीं पहुंच पाई। लेकिन क्या यह किसी से छिपा है कि भाजपा वहां सही मायनों में सिर्फ 70-75 फीसद सीटों पर ही चुनाव लड़ रही थी। बंगाल में तुष्टीकरण हमेशा से मुद्दा रहा है। ममता ने चुनाव में इसकी अपील भी की कि अल्पसंख्यक केवल तृणमूल को ही अपना वोट डालें। प्रदेश में 28-30 फीसद अल्पसंख्यक मतदाता हैं। पचास से ज्यादा ऐसी सीटें भी हैं जहां अल्पसंख्यक मत ही जीत हार तय करता है।
बंगाल में भाजपा मजबूत विपक्ष के रूप में उभरी
जिस बंगाल में पिछली बार सिर्फ तीन विधायक थे वहीं अब भाजपा एक मजबूत विपक्ष के रूप मे स्थापित हो गई है जहां से वह रोजाना ममता सरकार की उन्हीं नीतियों को कठघरे में खड़ा कर सकती है जो चुनाव में मुद्दे बने थे। यानी अगले पांच साल ममता को हर मोड़ पर प्रदेश के सभी वर्गो के लिए जवाबदेह बनना भी होगा और दिखना भी होगा। ये सभी मुद्दे इसलिए बहस के केंद्र में आए क्योंकि पीएम मोदी, शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा जैसे शीर्ष नेताओं ने इसे जनता के सामने रखा और भरोसा दिलाया कि वह प्रदेश में समानता लाएंगे।
बंगाल में मिला भाजपा को बड़ा विस्तार, राज्यसभा में दिखेगा असर
जो जीता वही सिकंदर का नारा तो सही है, लेकिन राजनीतिक विस्तार के नजरिए से भाजपा ने उपलब्धि हासिल की है। लगातार दूसरी बार बहुमत के साथ केंद्र में सरकार बनाने के बावजूद भाजपा बल्कि पूरा राजग राज्यसभा में स्पष्ट बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पाया है। बंगाल में भाजपा ने जो छलांग लगाई है उसके कारण राज्यसभा में भी बहुमत तक पहुंचने का रास्ता आसान होगा। यानी केंद्र की मजबूती बढ़ेगी।
असम में भाजपा की जीत
असम में भाजपा की जीत के खास अर्थ हैं। एनआरसी और सीएए के खिलाफ दिल्ली से लेकर असम तक विपक्षी दलों का आंदोलन चला था। इसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाकर भी मोदी को घेरने की कोशिश हुई थी। दिल्ली के शाहीनबाग और असम को ऐसी प्रयोगशाला बनाया गया था जहां मानवता के आधार पर मोदी सरकार को घेरा जा सके।
असम में जनता ने एनआरसी और सीएए दोनों को किया पसंद
विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी ने सीएए को रद करने की बात कही थी। लेकिन हुआ क्या। शाहीनबाग में षड़यंत्र का सच तो बाहर आ ही चुका है। असम में जनता ने ही साफ कर दिया कि उसे एनआरसी और सीएए दोनों पसंद हैं। इस चुनाव का यह सबसे बड़ा संदेश है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अब कम से कम कांग्रेस सीएए और एनआरसी को राजनीति में नहीं घसीटेगी। कांग्रेस यह समझेगी कि कुछ मुद्दे देश के होते हैं। एनआरसी भी वैसा ही एक मुद्दा है। ठीक उसी तरह जैसे 370 रद करना। ऐसे मुद्दों पर समर्थन देना देश के लिए भी हितकर होता है और राजनीति के लिए भी।
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