कोरोना महामारी के पीछे चीनी साजिश को पुख्ता करते हैं,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
कोरोना महामारी की शुरुआत से ही इसके पीछे चीनी साजिश को लेकर कई बातें कही जा रही हैं। हाल में अमेरिकी विदेश मंत्रालय को चीन के सैन्य विज्ञानियों और वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारियों का खुफिया दस्तावेज मिला है। इसके मुताबिक, चीन के विज्ञानी 2015 से ही कोरोना वायरस को प्रयोगशाला में कृत्रिम तरीके से एक घातक जैविक हथियार में बदलने की संभावना पर काम कर रहे थे। उनका मानना है कि तीसरा विश्व युद्ध जैविक हथियारों से ही लड़ा जाएगा। चीन भले ही कोरोना महामारी के फैलने में अपना हाथ होने से इन्कार करता रहे, लेकिन कई ऐसे तथ्य हैं जो चीन की इस साजिश की कलई खोलते दिखते हैं। पेश है एक नजर:
वुहान की प्रयोगशाला में छिपे कई राज
चीन के वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में कोरोना वायरस को लेकर लंबे समय से शोध चल रहा है। यह प्रयोगशाला वुहान के उस बाजार से मात्र 16 किलोमीटर दूर है, जहां से मौजूदा कोरोना महामारी की शुरुआत बताई जाती है। यह बात भले न मानी जाए कि मौजूदा वायरस को चीन ने जान बूझकर फैलाया, लेकिन बहुत से विज्ञानी प्रयोगशाला से वायरस के लीक होने की आशंका को सिरे से खारिज करने के पक्ष में नहीं हैं।
पहले भी लीक हुआ है वायरस
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के दस्तावेजों के मुताबिक, 2004 में वुहान की प्रयोगशाला से वायरस लीक हुआ था। उस समय वायरस से नौ लोग संक्रमित हुए थे और एक व्यक्ति की जान चली गई थी। अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि चीन में वायरस लीक के ऐसे मामले कई बार सामने आ चुके हैं। वायरस लीक के तरीकों पर विज्ञानियों का कहना है कि प्रयोगशाला में सुरक्षा कितनी भी पुख्ता हो, लेकिन प्रयोग के दौरान संक्रमित इंजेक्शन के संपर्क में आने या प्रयोग में शामिल किसी चूहे या अन्य जीव के काटने से वायरस लीक हो सकता है।
चमगादड़ से मनुष्य तक कैसे पहुंचा वायरस
मौजूदा महामारी के लिए कोरोना वायरस के जिस स्ट्रेन को जिम्मेदार माना जाता है, वह काफी हद तक चमगादड़ में पाए गए एक वायरस से मिलता-जुलता है। कहा जाता है कि यही वायरस अपने आपको बदलते हुए मनुष्यों तक पहुंच गया। हालांकि कई विज्ञानी इस व्याख्या को खारिज करते हैं। उनका सवाल यही है कि कोई वायरस सीधे किसी जीव से मनुष्य में आकर इतना संक्रामक नहीं हो सकता है। अगर इस वायरस ने बदलाव का लंबा सफर तय किया है, तो फिर बीच की कडि़यां कहां हैं?
स्पाइक प्रोटीन भी खड़े करता है कई सवाल
मनुष्य के शरीर में फ्यूरिन नाम का एंजाइम होता है। फेफड़े में इसकी मौजूदगी ज्यादा होती है। कोरोना वायरस इसलिए बहुत तेजी से फैलता है, क्योंकि इसके स्पाइक प्रोटीन में फ्यूरिन क्लीवेज साइट्स हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इस वायरस से मिलते-जुलते सबसे करीबी वायरस में ऐसे साइट्स नहीं मिले हैं। एक अहम बात यह भी है कि ये साइट्स चार अमीनो एसिड्स से बने हैं। म्यूटेशन होते-होते किसी वायरस में ऐसे चार अमीनो एसिड होना संभव है, लेकिन एक साथ चार अमीनो एसिड जुड़ जाना स्वाभाविक नहीं है। ऐसा होने की संभावना तभी है, जब प्रयोगशाला में अलग-अलग वायरस से इसे लिया गया हो।
सवाल और भी हैं
विज्ञानियों का कहना है कि सामान्य तौर पर किसी वायरस को बहुत संक्रामक बनने में वक्त लगता है। सार्स भी जानलेवा था, लेकिन उससे जल्दी निपटना संभव हुआ, क्योंकि उसकी संक्रमण क्षमता बहुत ज्यादा नहीं थी। मौजूदा कोरोना वायरस के मामले में इसकी संक्रमण क्षमता भी चौंकाने वाली है। किसी नए वायरस के लिए इतना संक्रामक होना सामान्य बात नहीं लगती है। एक सवाल यह भी है कि जिस चमगादड़ के वायरस से इसकी समानता की बात कही जाती है, वह वुहान से 1500 किलोमीटर दूर युन्नान में पाया गया था। यह भी आश्चर्य की ही बात है कि वायरस 1500 किलामीटर के सफर में किसी को संक्रमित नहीं करता है और अचानक वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी से 16 किलोमीटर की दूरी पर महामारी फैला देता है।
चीन (China) ने सोमवार को मीडिया में आई उन खबरों को ‘एकदम झूठ’ करार दिया, जिनमें कहा गया है कि उसके सैन्य वैज्ञानिकों (Military Scientist) ने कोविड-19 महामारी के प्रकोप से पांच साल पहले कोरोना वायरस (Coronavirus) को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने के बारे में जांच की थी. चीन ने कहा कि यह अमेरिका (America) द्वारा देश को बदनाम करने का प्रयास है.
गौरतलब है कि अमेरिकी विदेश विभाग को प्राप्त हुए दस्तावेजों के हवाले से मीडिया रिपोर्टों में यह दावा किया गया है कि चीन के वैज्ञानिकों ने कोविड-19 महामारी से पांच साल पहले कथित तौर पर कोरोना वायरस को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने के बारे में जांच की थी. उन्होंने तीसरा विश्व युद्ध जैविक हथियारों से लड़े जाने का पूर्वानुमान लगाया था.
ब्रिटेन के ‘द सन’ अखबार ने ‘द ऑस्ट्रेलियन’ की तरफ से सबसे पहले जारी रिपोर्ट के हवाले से कहा कि अमेरिकी विदेश विभाग के हाथ लगे ‘विस्फोटक’ दस्तावेज कथित तौर पर दर्शाते हैं कि चीन की पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी (पीएलए) के कमांडर यह घातक पूर्वानुमान जता रहे थे. चीनी वैज्ञानिकों ने सार्स कोरोना वायरस का ‘जैविक हथियार के नए युग” के तौर पर उल्लेख किया था, कोविड जिसका एक उदाहरण है.
चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने एक प्रेस कान्फ्रेंस में कहा कि मैंने इससे संबंधित रिपोर्ट देखी है. चीन को बदनाम करने के लिए अमेरिका कुछ तथाकथित आंतरिक दस्तावेजों को तोड-मरोड़ कर पेश कर रहा है लेकिन आखिरकार, तथ्यों ने साबित कर दिया कि वे या तो रिपोर्ट की संदर्भ से बाहर दुर्भावनापूर्ण ढंग से व्याख्या कर रहे हैं या एकदम झूठ फैला रहे हैं.
‘हम जैविक हथियार विकसित नहीं करते’
हुआ ने सरकार द्वारा संचालित ग्लोबल टाइम्स द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया कि अमेरिकी विदेश मंत्रालय द्वारा उल्लेखित रिपोर्ट पीएलए का आंतरिक दस्तावेज नहीं है, बल्कि सार्वजनिक रूप से जारी अकादमिक पुस्तक है. किताब में अमेरिकी वायुसेना के पूर्व कर्नल माइकल ए एनकौफ के हवाले से कहा गया है कि व्यापक जन संहार के हथियारों से निपटने के लिए अगली पीढ़ी के जैविक हथियार अमेरिकी कार्यक्रम का हिस्सा हैं.
प्रवक्ता ने कहा कि तो यह अमेरिका ही है जो जैविक युद्ध में अनुसंधान कर रहा है. उन्होंने अमेरिका पर शोध करने के लिए विदेशों में सैकड़ों जैव प्रयोगशालाओं को संचालित करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि चीन हमेशा जैविक हथियार सम्मेलन (बीडब्ल्यूसी) के तहत हुए समझौते का पालन करता है. हम जैविक हथियार विकसित नहीं करते हैं. हमने जैविक प्रयोगशालाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई उपाए करने के साथ एक मजबूत कानूनी ढांचा स्थापित किया है.
जैविक हथियारों से लड़ा जा सकता है तीसरा विश्व युद्ध
पीएलए के दस्तावेजों में अनुमान लगाया गया है कि जैव हथियार हमले से दुश्मन के चिकित्सा तंत्र को ध्वस्त किया जा सकता है. दस्तावेजों में अमेरिकी वायुसेना के कर्नल माइकल जे एनकौफ के शोध कार्यों का भी जिक्र किया गया है, जिन्होंने इस बात की आशंका जताई थी कि तीसरा विश्व युद्ध जैविक हथियारों से लड़ा जा सकता है.
दस्तावेजों में इस बात का भी उल्लेख है कि चीन में वर्ष 2003 में फैला सार्स एक मानव-निर्मित जैव हथियार हो सकता है, जिसे आंतकियों ने जानबूझकर फैलाया हो. सांसद टॉम टगेनधट और आस्ट्रेलियाई राजनेता जेम्स पेटरसन ने कहा कि इन दस्तावेजों ने कोविड-19 की उत्पत्ति के बारे में चीन की पारदर्शिता को लेकर चिंता पैदा कर दी है.
हालांकि, बीजिंग में सरकारी ग्लोबल टाइम्स समाचारपत्र ने चीन की छवि खराब करने के लिए इस लेख को प्रकाशित करने को लेकर दी आस्ट्रेलियन की आलोचना की है. गौरतलब है कि दुनिया में कोविड-19 का पहला मामला 2019 के अंत में चीन के वुहान शहर में सामने आया था, तब से यह घातक वायरस अब तक दुनियाभर में 15,84,00,700 लोगों को संक्रमित करने के साथ ही 32,94,655 लोगों की जान ले चुका है.
ये भी पढ़े…
- कोरोना और 5जी के बीच कोई संबंध नहीं, ना फैलाए अफवाह-दूरसंचार विभाग.
- निराश्रितों को खाना खिलाने के लिए चल रहा है कमन्युटी किचेन
- संक्रमण काल में स्वास्थ्य विशेषज्ञों से मिलेगी टेलीमेडिसिन की सुविधा
- किसी भी आयु वर्ग के लिए निजी संस्थानों को निःशुल्क वैक्सिन उपलब्ध नही किया जाएगा
- मरीजों को एंबुलेंस,ऑक्सीजन सिलिंडर और अस्पताल में भर्ती के लिये लूटा जा रहा है,कैसे?
- कोरोना से जंग हार गये जीरादेई के पूर्व विधायक राघव प्रसाद सिंह
- ममता बनर्जी ने अपने पास रखे 6 मंत्रालय, कैबिनेट में 20 नए चेहरे भी शामिल.