क्या कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर से मिलेगी राहत?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत में कोरोना के अनेक वेरिएंट का पाया जाना, दैनिक स्तर पर लगातार पिछले करीब एक सप्ताह से चार लाख के आसपास संक्रमितों की संख्या का सामने आना और देश भर में लगभग चार हजार लोगों की रोजाना की मौतों से कोरोना का कहर निरंतर बढ़ता जा रहा है। इस बीच, तमाम राज्य सरकारों की अकर्मण्यता, लाचारी एवं लोगों की बेबसी को देखते हुए न्यायालयों की सख्त टिप्पणियां यह दर्शाती है कि देश की ऐसी दशा कोरोना वायरस के द्वितीय लहर की परिणति है। इसने सामान्य नागरिकों से लेकर राष्ट्र के संभ्रांत नागरिकों एवं समूचे सरकारी तंत्र की नाक में दम कर रखा है। अस्पतालों की स्थिति इतनी खराब है कि लोग अब घर पर ही ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ रहने में ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं। सवाल यह भी कि दूसरी लहर इतनी खतरनाक हो सकती है और इतनी जल्द भयावह हो सकती है, इसका अनुमान हमलोग क्यों नहीं लगा सके?

भले ही धार्मिक स्थानों पर भीड़ एकत्रित होने या चार-पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों में रैलियों आदि के आयोजन को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा हो, लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि एक नागरिक के तौर पर हम कितने सजग हैं। दीवाली के बाद जैसे जैसे संक्रमण का ग्राफ गिरता गया, हम लापरवाह होते गए और कोरोना प्रोटोकॉल का पालन लगभग खत्म कर दिया। तमाम वजहों से आज देश कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर का सामना कर रहा है। ऐसे में हमें तत्काल इन 10 उपायों पर तत्काल गौर करना होगा। पहला, शहरों से गांव लौट रहे लोगों द्वारा कोविड प्रोटोकॉल का पालन अनिवार्य करना। ग्रामीण क्षेत्रों में भी स्वास्थ्य ढांचा मजबूत बनाया जाए। दूसरा, केंद्र, राज्य एवं पंचायत स्तर तक की सरकार एवं हेल्थ मशीनरी को एक मंच पर आकर इससे लड़ने की जरूरत है, तभी जाकर भारत इस विभीषिका से बच और उबर पाएगा।

तीसरा, इस राष्ट्रीय विपदा की घड़ी में कोरोना की संजीवनी जैसे दवा, आक्सीजन आदि की कालाबाजारी निंदनीय है। इसे नियंत्रित करने की सख्त जरूरत है। चौथा, भारत सरकार द्वारा 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी लोगों के टीकाकरण की शुरुआत करना वाकई सराहनीय कदम है, पर इसकी रफ्तार को युद्ध स्तर पर बढ़ाने की जरूरत है। पांचवां, 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए कोरोना की तीसरी लहर काफी खतरनाक हो सकती है। ऐसे में बच्चों के लिए भी जल्द से जल्द टीका विकसित करना होगा। फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन को 11 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों के लिए सुरक्षित बताया जा रहा है, लिहाजा इस उम्रसमूह के बच्चों के लिए जल्द टीकाकरण शुरू हो।

छठा, देश की अंतरराज्यीय सीमाओं को सील करते हुए कम से कम दो सप्ताह के लिए संपूर्ण लॉकडाउन की आवश्यकता है। देश के खजाने में इतना अनाज तो जरूर है कि वह लोगों का पेट कुछ महीनों तक भर सके, परंतु कोरोना से निपटने में हमारा स्वास्थ्य तंत्र काफी मजबूर नजर आया है। ऐसे में यह समझना होगा कि अर्थव्यवस्था को तो बाद में भी संभाला जा सकता है, पर गई हुई जान को वापस नहीं लाया जा सकता है। सातवां, भारत में हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को दुरुस्त करने की सख्त जरूरत है। इसके तहत, कोविड ट्रीटमेंट, समुचित संख्या में आक्सीजन सुविधायुक्त बेड की उपलब्धता हो, आइसीयू, वेंटीलेटर समेत अन्य उपकरणों एवं दवाइयों की उपलब्धता को सुनिश्चित करना होगा।

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की 2020-21 की रिपोर्ट के मुताबिक 130 करोड़ की आबादी वाले भारत में केवल 15़4 लाख कोविड समर्पित बेड, कुल 2.7 लाख आक्सीजन सप्लाई बेड एवं 80 हजार आइसीयू बेड और 40 हजार वेंटीलेटर बेड की उपलब्धता है। ऐसे में संक्रमण की तीसरी लहर से हम किस प्रकार मुकाबला कर पाएंगे, इस बारे में भी सोचा जाना चाहिए। इसके अलावा, महामारी के दौरान भी भारत में स्वास्थ्य र्किमयों की बड़ी संख्या में कमी है। जिस प्रकार कोरोना की पहली लहर में आइसीयू एवं वेंटीलेटर बेड की कमी हुई, दूसरी लहर में आक्सीजन की कमी हुई, तो हो सकता है कि तीसरी लहर तक स्वास्थ्य र्किमयों की कमी हो जाए।

आज देश स्वास्थ्य र्किमयों की कमी की समस्या को झेल रहा है। इसकी गंभीरता समझते हुए भारत सरकार द्वारा एमबीबीएस के आखिरी वर्ष के छात्रों को अपनी फैकल्टी की देखरेख में फोन कॉल कंसल्टेशन एवं कोरोना के सामान्य मामलों को देखने की अनुमति देना, बीएससी, जनरल नर्सिंग एवं मिडवाइफरी नर्सेज को सीनियर डॉक्टर एवं नर्स की देखरेख में कोविड नर्सिंग ड्यूटी की अनुमति देना, साथ ही सौ दिन पूरा करने पर उन्हें सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता एवं प्रधानमंत्री कोविड राष्ट्रीय सेवा सम्मान से सम्मानित करने का फैसला सराहनीय कदम है। आठवां, कंटेनमेंट जोन की योजना को दोबारा से सख्ती से लागू करना होगा।

जिस प्रकार कोरोना की पहली लहर के दौरान छोटे स्तर पर कंटेनमेंट जोन बनाकर वहां पर्याप्त निगरानी की गई थी, उसे फिर से सख्ती से अपनाने की जरूरत है। नौवां, रैपिड एंटीजन टेस्ट की जगह आरटीपीसीआर टेस्ट पर जोर देना होगा, क्योंकि रैपिड एंटीजन टेस्ट बड़ी संख्या में पॉजिटिव लोगों को भी नेगेटिव दिखाता है। इससे कोरोना पॉजिटिव खुलेआम महामारी का प्रसार करते हैं। देश के कई राज्यों में आरटीपीसीआर टेस्ट के लिए विस्तृत बुनियादी ढांचे की भी अनुपलब्धता है, इस पर ध्यान देना होगा, क्योंकि बिना बीमारी को पकड़े उसका इलाज संभव नहीं है। दसवां, भारत वासियों को कोरोना के प्रति लड़ाई को एक राष्ट्रधर्म की तौर पर लेना होगा और इसके लिए उन्हें ‘स्वयं एवं परिवार सुरक्षित तो राष्ट्र सुरक्षित’ मंत्र के साथ स्वयं एवं परिवार की सुरक्षा का ध्यान रखना होगा। इसके साथ ही, जरूरतमंदों की हरसंभव मदद करनी होगी, तभी जाकर हमारा देश दोबारा से उठ खड़ा होगा।

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