राजदेव रंजन जैसे जांबाज़ पत्रकार की हत्या इस बात का प्रमाण है कि पत्रकार किस तरह के खतरों के बीच काम करते हैं.

राजदेव रंजन जैसे जांबाज़ पत्रकार की हत्या इस बात का प्रमाण है कि पत्रकार किस तरह के खतरों के बीच काम करते हैं.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

श्रीनारद मीडिया की ओर से शत-शत नमन.

वह विनम्र व संकोची स्वभाव के युवा हिन्दुस्तान के ब्यूरो चीफ बन गये थे.राजदेव रंजन अब इस दुनिया में नहीं हैं. 13 मई 2016 को शुक्रवार शाम साढे सात बजे आफिस से घर जाते वक्त उन्हें मोटर साइकिल सवार हमलावरों ने बहुत करीब से गोलियां मार कर मौत के घाट उतार दिया.

घटना का कोई चश्मदीद नहीं हथा. शक के आधार पर जिन पेशेवर अपराधियों को पुलिस ने पकड़ा, उसमें स्थानीय व उनके गैंग के कुछ लोग थे. जिस तरह से हत्या हुई उसके पीछे कई सप्ताह व महीनों की बेहद सोची समझी योजनाबद्ध रणनीति का खुलासा हुआ.

बिहार में संगीन अपराघिक मामलों की पड़ताल कर चुके पुलिस विशेषज्ञों ने कहा है कि राजदेव को जिस पक्के इरादे से मौत के घाट उतारा गया, उसके पीछे शातिर दिमाग वाले पेशेवर हत्यारों का इस्तेमाल किया गया .

परिस्थितियां बताती हैं कि सीवान में हिंदुस्तान अखबार के आफिस से कुछ ही दूरी पर रेलवे स्टेशन रोड पर पहले उन्हें आवाज देकर किसी बहाने से रोका गया. मुमकिन है कि वे हत्यारों में से कुछ को पहचानते होंगे. उनकी हत्यारों से कुछ बात हुई और उसी क्रम में उनके शरीर में गोलियां ठूंस दी गईं.

हत्यारों का एक ही मकसद था कि राजदेव किसी तरह जिंदा न रहने पाए. इसीलिए जब पहली दो तीन गोलियों के बाद जमीन पर गिर गए तो आखिरी गोली उनके माथे पर करीब से मारी गई. सदर अस्पताल में ले जाते ही उन्हें डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया.

राजदेव के परिवार का दावा है कि हत्या पूरी तरह पत्रकारिता से जुड़ी हुई है क्योंकि उनकी दूसरों से किसी तरह की कोई पारिवारिक या संपत्ति से जुड़ी कोई दुश्मनी नहीं थी. पत्रकारिता में भी किसी को भी नाराज करना उनकी फितरत में दूर-दूर तक नहीं था.

खबरों के पीछे दौड़ना. तथ्यों की सही पड़ताल व उसे संतुलित बनाकर छापने में वे कोई चूक नहीं करते थे. इसके साथ ही स्थानीय माफिया व राजनीतिक नेताओं के गुप्त गठजोड़ को बेनकाब करने में में वह दूसरे अखबारों से कई बार बहुत आगे रहते थे.

उनकी हत्या के कुछ समय पहले अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री अब्दुल गफूर सीवान जेल में बंद मोहम्मद शहाबुद्दीन से मिलने दल बल के साथ पहुंचे तो राजदेव ने उस खबर को खूब ढंग से छापा और फालोअप किया. गफूर ने बाद में सफाई दी कि यह उनकी शिष्टाचार भेंट थी. बाद में मीडिया में मंत्री की खूब खिल्ली उड़ी कि जेल में कई संगीन हत्याकांडों में सजायाफ्ता अपराधी से शिष्टाचार भेंट ही अब बिहार में सुशासन की नई परिभाषा गढ़ दी गई थी.

राजदेव की इस तरह की कई खबरें राष्ट्रीय सुर्खियां बनीं. इस घटना पर बवाल इतना ज्यादा मचा कि नीतीश कुमार को जेल अधीक्षक का सीवान से तबादला करना पड़ा. जाहिर है कि सत्ता और अपराधियों के इस तरह के गठजोड़ को बेनकाब करते रहने की वजह से राजदेव कई लोगों के निशाने पर थे. 2005 में सीवान में उनके आफिस पर खबरों से नाराज होकर कुछ स्थानीय गुंडों ने राजदेव व उनके साथियों की पिटाई तक कर डाली. लेकिन राजदेव विचलित नहीं हुए.

जाहिर है कि राजदेव बखूबी जानते थे कि पत्रकार हर उस व्यक्ति के निशाने पर होते हैं जो उनके बारे में कुछ भी अप्रिय खबरें छापेंगे. उन्हें पता होता था कि अपराधियों के खिलाफ पुलिस रिपोर्ट व बाद में अदालतों के पचड़ों में पड़ने से कुछ नहीं होगा क्योंकि बिहार में अपराधियों के खिलाफ लंबे मुकदमों व गवाहियों का मतलब होता है कि खुद और पूरे परिवार की जान को हर समय जोखिम में रखना.

राजदेव रंजन विनम्र इंसान, सच्चा पत्रकार व बेहतरीन मित्र थे. उन्हें सीवान की एक-एक चीज़ की खबर होती थी. उनका एक पुत्र व एक पुत्री हैं जो अभी पढ़ाई कर रहे हैं. पत्नी टीचर की नौकरी करती हैं.

राजदेव ने श्रीकांत हत्याकांड को भी गंभीरता से फालो किया था. पुलिस पर दबाव बना और जिन अपराधियों का इसमें हाथ था उन्हें पुलिस को गिरफ्तार करना पड़ा. हैरत यह है कि श्रीकांत हत्याकांड में नामित स्थानीय लोगों को जमानत मिल गई.

राजदेव जैसे जांबाज़ पत्रकारों की हत्या इस बात का भी सबूत है कि छोटे शहरों, कस्बों व मुफ़लिस इलाकों में पत्रकार किस तरह के खतरों के बीच काम कर रहे हैं. उन्हें स्थानीय नेताओं, ठेकेदारों, भ्रष्ट अफसरों, अपराधियों की धमकियों से आए दिन तनाव व जोखिम में काम करना पड़ता है.

बहरहाल,13 मई 2016 की शाम सीवान में पत्रकार राजदेव रंजन की गोली मार हत्या कर दी गई थी। पुलिस के बाद इस मामले की जांच सीबीआइ को सौंपी गई। पूर्व सांसद शहाबुद्दीन सहित सात आरोपितों के विरुद्ध सीबीआइ ने कोर्ट में पिछले साल 21 अगस्त को चार्जशीट दाखिल किया था। विशेष सीबीआइ कोर्ट इसे संज्ञान में लेकर सेशन ट्रायल चलाने के लिए जिला जज कोर्ट भेजा था। फिलहाल, इस मामले का सत्र-विचारण (एमपी/एमएलए के मामले) के लिए गठित एडीजे-नौ वीरेंद्र कुमार के विशेष कोर्ट में चल रहा है।

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