भारतीय संस्कृति में विश्व की हर आपदा से लड़ने की शक्ति है-स्वामी अवधेशानंद गिरि

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कोरोना से निपटने के लिए संयम, आत्मबल, आध्यात्मिक मूल्य व प्राकृतिक जीवनशैली सर्वोत्तम औषधियां हैं। इसलिए वैक्सीन, सोशल डिस्टेंसिंग और चिकित्सीय परामर्श के अतिरिक्त मानसिक स्वास्थ्य व आध्यात्मिक जीवनमूल्यों के अनुगमन पर भी विमर्श जरूरी है। कोरोना काल में सहज और सकारात्मक रहें। प्राकृतिक नियमों का निर्वहन करें।

साधनहीन लोगों के सहयोग के लिए आगे आएं। जब हम अन्य की सेवा करेंगे तो अन्तःकरण में स्वयं के प्रति सम्मान व संतुष्टि का भाव जागृत होगा जिससे हम भावनात्मक रूप से मजबूत रहेंगे। यदि आर्थिक रूप से कुछ देने में असमर्थ हैं, तो उन्हें अपने विचार व व्यवहार के द्वारा से आनंदित तो किया ही जा सकता है। सब हमें अपने दिखने लगेंगे। हम किसी का अहित नही सोचेंगे और समवेत रहकर इस संकट का सामना कर सकेंगे।

इसके अतिरिक्त स्वाध्याय, आत्मचिंतन, गीता आदि सद्ग्रंथों के अध्ययन से हमें चमत्कारिक परिणाम प्राप्त होंगे। इनसे सहज वातावरण का निर्माण होगा क्योंकि स्वस्थ, सकारात्मक विचारों में दुर्बलताओं को समाप्त करने का सामर्थ्य होता है। प्रकृति केंद्रित जीवनशैली व आध्यात्मिक मूल्यों का अनुसरण कर हम न केवल कोरोना बल्कि अन्य वैश्विक संकटों से मुक्ति पा सकते हैं। आपदा हमें मानसिक व भावनात्मक रूप से एकीकृत करती है। कोरोना ने हमारी घरेलू चिकित्सा, आयुर्वेद, योग-प्राणायाम, तुलसी, हल्दी आदि घरेलू औषधियों की प्रामाणिकता को और परिपुष्ट किया है।

भारत में दूसरी लहर आने पर हमारे स्वास्थ्य तंत्र की दुर्बलताएं भी उजागर हुईं, किंतु हमें यह भी देखें कि अमेरिका जैसे संपन्न देश, जिनके पास उच्चस्तरीय चिकित्सा सुविधाएं हैं, वे भी कोरोना के समक्ष विवश हो गए, इसलिए कोरोना की भीषणता को सरकारी तंत्र की विफलता न माना जाए।

इस कठिन समय में देश के चिकित्सकों और अन्य चिकित्सा कर्मियों ने जिस जीवटता के साथ कोरोना पीड़ितों की सेवा की, वह अभूतपूर्व था। इस बीच अनावश्यक दुष्प्रचार भी हुआ, हमारे वैज्ञानिकों द्वारा बनाई गई स्वदेशी वैक्सीन पर प्रश्नचिह्न लगाए गए। नतीजतन वैक्सीन पर लोगों के मन में भ्रांतियां रहीं और प्रारंभ में वैक्सीन के लिए उनका मानस तैयार करने में समय लग गया।

आज विश्व के समक्ष कोरोना के अतिरिक्त आपसी वैमनस्व, स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने की प्रतिस्पर्धा, जलवायु-पर्यावरण संबधी अनेक संकटों का समाधान भारतीय संस्कृति व आध्यात्मिक जीवन मूल्यों में निहित है। कुंभ पर्व भारत की उसी सांस्कृतिक दिव्यता की अभिव्यक्ति है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय मीडिया व भारत में भी एक बड़े वर्ग ने योजनाबद्ध रूप से कुंभ को लेकर दुष्प्रचार किया।

कुंभ शुरू होने के पूर्व भी देश के कई राज्यों में कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा हरिद्वार से बहुत अधिक था। समाप्ति के बाद भी वही स्थिति है। मैं तथ्यों के साथ कहना चाहता हूं कि कोरोना के प्रसार में कुंभ की कोई भूमिका नहीं है। मेले में सरकार ने वायरस को रोकने के लिए कड़े नियम तय किए थे।

कोविड संबंधी व्यवहार का पालन सुनिश्चित करने के लिए करीब 2 हजार वॉलिंटियर्स तैनात थे। मेला वाले क्षेत्र में रेंडम टेस्ट किए गए। करीब 10 लाख जांचें की गईं और पॉजिटिविटी रेट केवल 1.49% ही था। इससे प्रमाणित होता है कि कोरोना की दूसरी लहर बढ़ाने में कुंभ की भूमिका नहीं है। भारतीय संस्कृति व उसमें अंतर्निहित विश्व कल्याण के सूत्रों को सामने लाने और संरक्षित करने के लिए कुंभ का आयोजन अत्यावश्यक था और इसलिए उसका प्रतीकात्मक आयोजन हुआ।

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