Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
परीक्षा रद होने से शैक्षिक उत्कृष्टता पर पड़ सकता है दूरगामी प्रभाव,कैसे? - श्रीनारद मीडिया
Breaking

परीक्षा रद होने से शैक्षिक उत्कृष्टता पर पड़ सकता है दूरगामी प्रभाव,कैसे?

परीक्षा रद होने से शैक्षिक उत्कृष्टता पर पड़ सकता है दूरगामी प्रभाव,कैसे?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

परीक्षा के रद होने से मुख्य तीन चुनौतियां हमारे सामने हैं। एक वैध और पारदर्शी मूल्यांकन प्रणाली को विकसित करना। दूसरी क्या इस आंतरिक फ्रेमवर्क में मेधावी छात्र हतोत्साहित तो नहीं होंगे और तीसरी स्नातक स्तर की कक्षाओं की प्रवेश परीक्षा कैसे होंगी? बोर्ड परीक्षा के आयोजन में दो महत्वपूर्ण पक्ष हैं। पहला, परीक्षा का अकादमिक पक्ष और दूसरा परीक्षा का सफलतापूर्वक संचालन। निश्चय ही परीक्षा को रद करने का निर्णय छात्रों के समग्र हित को ध्यान में रखते हुए लिया गया है, जो व्यवस्था से संबंधित है। इसके अकादमिक पक्ष की कोई भूमिका नहीं है। परीक्षा रद होने से अनेक प्रकार की चुनौतियां आएंगी और इससे शैक्षिक उत्कृष्टता पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है।

यद्यपि हम कहने को 21वीं शताब्दी में हैं, हमारी परीक्षा व्यवस्था अभी भी 20वीं शताब्दी की मानसिकता पर संचालित है। कक्षा नौ तक स्कूली मूल्यांकन की व्यवस्था लागू है, किंतु कक्षा 10 और 12 में मूल्यांकन व्यवस्था सत्रांत में आयोजित होने वाली एक निर्धारित बाह्य परीक्षा पर आधारित है। देश में आज 74 बोर्ड हैं और किसी भी बोर्ड ने इस महामारी का दूसरा वर्ष होते हुए भी रचनात्मक मूल्यांकन की सतत व्यवस्था लागू नहीं की। अभी भी सतत मूल्यांकन के स्थान पर वर्ष के अंत में योगात्मक परीक्षा व्यवस्था पर जोर दिया जा रहा है। दूसरी ओर ये लगातार दूसरा वर्ष है जब अंतरराष्ट्रीय बोर्डों को इस संबंध में कोई विशेष कठिनाई उत्पन्न नहीं हुई। उनकी व्यवस्था में सतत मूल्यांकन की एक विश्वसनीय और कारगर व्यवस्था लागू है। जिसके आधार पर सत्रांत में आयोजित योगात्मक परीक्षा संपन्न किए बिना उनके द्वारा सफलतापूर्वक परीक्षा फल घोषित किया जा चुका है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि कक्षा 12 में वैध और आंतरिक मूल्यांकन की एक व्यवस्था सुनिश्चित करना कठिन कार्य होगा। इसमें अंकस्फीति की संभावनाएं भी रहेंगी। अमूमन ये देखा गया है कि मेधावी छात्र प्री-बोर्ड की परीक्षा को पर्याप्त गंभीरता से नहीं लेते हैं। ऐसी स्थिति में उनके औसत अंक में कमी आ सकती है। अत: उचित होगा कि इस फ्रेमवर्क में कक्षा 11 के र्वािषक अंक और कक्षा 10 के बोर्ड परीक्षा फल को भी ध्यान में रखा जाए। विश्वविद्यालय की स्नातक स्तर की प्रवेश व्यवस्था सामान्यत: अभी तक कक्षा 12 में प्राप्तांक के आधार पर की जाती। इसमें परिवर्तन वांछनीय होगा और अब विलोचन व्यवस्था के स्थान पर सेलेक्शन व्यवस्था को विकसित किया जाए।

इसमें कक्षा 10 और कक्षा 12 में प्राप्त अंकों के गुणांक के साथ अंक गुणवत्ता के मानदंडों को सम्मिलित करते हुए आवश्यकता की स्थिति में एक अल्प अवधि की प्रवेश परीक्षा आयोजित करने पर विचार कर लिया जाए। इस व्यवस्था से कम से कम मेधावी छात्रों को समान अवसर की सुविधा प्राप्त होगी। ये इसलिए भी आवश्यक है जिससे इन बच्चों को भविष्य में ये खेद की स्थिति उत्पन्न न हो कि उन्हें श्रेष्ठता प्रदर्शन का कोई अवसर प्राप्त नहीं हुआ। हमें सीमाओं को लांघते हुए व्यवस्था में कायापलट करना है। बहुत समय से शिक्षाविद परीक्षा प्रणाली में आमूल परिवर्तन की बात करते आ रहे हैं। स्वतंत्रता के बाद गठित सभी शिक्षा आयोगों ने हमारी परीक्षा प्रणाली पर गहन चिंता व्यक्त की है और उनके द्वारा वांछित सुधार हेतु अनेक संस्तुतियां भी की गई है। यद्यपि इन अवधियों में काफी प्रगति भी हुई है। किंतु व्यवस्था में जो मूलभूत कमियां थीं, वो अभी भी बरकरार हैं।

समय आ गया है कि कुछ स्कूली समूह को स्वायत्ता भी दिए जाने पर विचार कर लिया जाए। बोर्ड इस संबंध में नवाचार शिक्षा के लिए जाने जाने वाले स्कूलों को चिह्नित करे। ऐसे विद्यालयों को अपनी मूल्यांकन विधा विकसित करने के लिए प्रेरित किया जाए जो बोर्ड द्वारा प्रशिक्षित व मान्य हो। हमें फिलहाल बोर्ड परीक्षा को बदलने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि अभी कोई विकल्प नहीं है।

बोर्ड की बाह्य परीक्षा के साथ वर्ष भर रचनात्मक मूल्यांकन पर जोर दिया जाए और रचनात्मक व योगात्मक परीक्षा के अंक रिपोर्ट कार्ड में पृथक अंक लिखित करते हुए समग्र प्राप्तांक के आधार पर परीक्षाफल घोषित किया जाए। सतत मूल्यांकन में बहुविध टूल्स (रिपोर्ट, समूह गतिविधि, केस स्टडीज, क्विज, प्रोजेक्ट कार्य, रिसर्च आधारित गतिविधि, ओपन बुक परीक्षा) का प्रयोग किया जाए जिससे छात्रों का समग्र मूल्यांकन हो सके। इसे अब आगे के लिए भी टालना उचित नहीं होगा। आइए बैठकर मूल्यांकन के लिए एक व्यावहारिक विकल्प खोजकर आगामी शैक्षिक सत्र से ही लागू करने का प्रयास करें।

ये भी पढ़े…..

Leave a Reply

error: Content is protected !!