बच्चों के समग्र विकास में कुपोषण बड़ी बाधा,कैसे है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस से एक दिन पहले बच्चों के कुपोषण को लेकर एक चिंताजनक तस्वीर सामने आई है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने सूचना के अधिकार (आरटीआइ) के तहत पूछे गए सवाल के जवाब में कहा है कि पिछले साल नवंबर तक देश में छह महीने से छह साल तक के करीब 9,27,606 गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की पहचान की गई है। ये आंकड़े उन चिंताओं को बढ़ाते हैं, जिसमें कहा गया है कि कोरोना महामारी गरीब तबके के स्वास्थ्य एवं पोषण के संकट को और बढ़ा सकती है।

इन राज्यों में एक भी कुपोषित नहीं!: आश्चर्यजनक रूप से मध्य प्रदेश, लद्दाख, लक्षद्वीप, नगालैंड व मणिपुर में एक भी गंभीर रूप से कुपोषित बच्चा नहीं मिला। आरटीआइ के जवाब के अनुसार, लद्दाख के अलावा, देश के सबसे बड़े राज्यों में से एक मध्य प्रदेश सहित अन्य चार में से किसी आंगनबाड़ी केंद्र ने मामले पर कोई जानकारी नहीं दी।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक गंभीर कुपोषण के मानक: विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, लंबाई के अनुपात में वजन बहुत कम होना या बांह के मध्य-ऊपरी हिस्से की परिधि 115 मिलीमीटर से कम होना अथवा पोषक तत्वों की कमी के कारण होने वाली सूजन के जरिये गंभीर कुपोषण (एसएएम) को परिभाषित किया जाता है। किसी बीमारी से इनकी मृत्यु होने की आशंका नौ गुना ज्यादा होती है।

एनएफएचएस के आंकड़े भी करते हैं आगाह: वर्ष 2015-16 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 (एनएफएचएस) के आंकड़े बताते हैं कि तब बच्चों में गंभीर कुपोषण की दर 7.4 फीसद थी। पिछले साल दिसंबर में जारी एनएफएचएस-5 के अनुसार, जिन 22 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का सर्वे किया गया, उनमें से 13 में पांच साल से कम उम्र के बच्चों के बौना रहने के प्रतिशत में वर्ष 2015-16 के मुकाबले वृद्धि हुई है। 12 में दुर्बल बच्चों के प्रतिशत में इजाफा हुआ है। 16 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में पांच साल से कम उम्र के उन बच्चों के प्रतिशत में वृद्धि हुई है, जो दुर्बल हैं और वजन भी कम है। एनएफएचएस-5 में 6.1 लाख घरों का सर्वे किया गया था। कुपोषण की समस्याओं पर काबू पाने के लिए सरकार ने वर्ष 2018 में पोषण अभियान की शुरुआत की है।

 

पोषण पुनर्वास केंद्रों को करना होगा सशक्त: राइज अगेंस्ट हंगर इंडिया के कार्यकारी निदेशक डोला महापात्रा पोषण पुनर्वास केंद्रों (एनआरसी) को सशक्त बनाने पर बल देते हैं। वह कहते हैं कि गंभीर कुपोषित बच्चों को पहले ही छुट्टी दे दी जाती है। इसकी एक वजह उच्चाधिकारियों की कमजोर निगरानी भी हो सकती है।

सर्वाधिक कुपोषित बच्चे उत्तर प्रदेश में: मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, सबसे ज्यादा 3,98,359 गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की पहचान उत्तर प्रदेश में की गई। 2,79,427 कुपोषित बच्चों के साथ बिहार दूसरे स्थान पर है। दोनों प्रदेशों में बच्चों की संख्या भी देश में सबसे अधिक है।

पिछले साल दिए गए थे पहचान के आदेश: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने पिछले साल सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की पहचान करने को कहा था ताकि उन्हें जल्द से जल्द अस्पतालों में भर्ती कराया जा सके। यह काम देशभर के करीब 10 लाख आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से किया गया।

बाल अधिकारों के लिए काम करने वाले हक सेंटर की सह संस्थापक इनाक्षी गांगुली ने बताया कि विज्ञानी कोरोना की तीसरी लहर में बच्चों के सर्वाधिक प्रभावित होने की आशंका जता रहे हैं। इससे पार पाने में कुपोषण बड़ी बाधा के रूप में सामने आएगा।

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