बंगाल से बाहर एक बार फिर अन्य राज्यों में तलाश रही सियासी जमीन
बंगाल विधानसभा चुनाव में लगातार तीसरी बार जीत के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल रहीं ममता बनर्जी राष्ट्रीय राजनीति सक्रिय होना चाहती हैं। यही वजह है कि शुक्रवार तक अघोषित रूप से तृणमूल में नंबर दो कहे जाने वाले अभिषेक बनर्जी को शनिवार को ममता ने प्रमोशन देकर घोषित रूप से नंबर दो की कुर्सी पर बैठा दिया।
पार्टी की अहम बैठक में तृणमूल प्रमुख ने अपने भतीजे और सांसद अभिषेक बनर्जी को पार्टी की अहम जिम्मेदारी सौंपते हुए उन्हें राष्ट्रीय महासचिव बना दिया। इसके बाद अब अभिषेक ममता के उत्तराधिकारी बन गए हैं। पिछले वर्ष तक तृणमूल के भीतर ही अभिषेक को चुनौती देने वाले कई नेता थे। परंतु अब चुनाव में जीतने के बाद उन्हें चुनौती देने वाला कोई नहीं बचा है। ऐसे में ममता को राष्ट्रीय राजनीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकल्प के रूप में खड़ा करने की तणमूल कांग्रेस में योजना बन रही है।
यही वजह है कि चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को तृणमूल के साथ जोड़कर रखा गया है। साथ ही तृणमूल बंगाल से बाहर एक बार फिर अन्य राज्यों में अपनी सियासी जमीन तलाशना चाहती है, ताकि आगामी लोकसभा चुनाव से पहले ममता के पक्ष में महौल बनाया जा सके। पर यह पहली बार नहीं है जब चुनाव जीतने के बाद ममता को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने की बातें तृणमूल में हो रही हैं। इससे पहले विधानसभा चुनाव जीतने के बाद कई बार ममता ने गैरकांग्रेस, गैरभाजपा दलों को लेकर फेडरल फ्रंट बनाने की कोशिश की थी।
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले 19 जनवरी को ब्रिगेड परेड मैदान में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन विरोधी दलों की एक मेगा रैली आयोजित की गई थी जिसमें देशभर के राजग और विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विरोधी करीब 23 पार्टियों के नेता एकत्रित हुए थे। परंतु ममता का फेडरल फ्रंट और मोदी विरोधी मंच कभी एकजुट नहीं हो सका।
अब जबकि पूरी ताकत लगाने के बावजूद भाजपा बंगाल में नहीं जीत पाई तो ममता को एक बार फिर विरोधी दलों के प्रमुख और सबसे ताकतवर नेता के रूप में प्रोजेक्ट करने की तैयारी हो रही है, ताकि उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित किया जा सके। परंतु जिस तरह से ममता विधानसभा चुनाव से लेकर अभी पूर्व मुख्य सचिव अलापन बंद्योपाध्याय प्रकरण में बंगाली और गैर बंगाली जैसे क्षेत्रवाद और पीएम मोदी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह तक को बाहरी बताती आ रही हैं, ऐसे में उनके लिए राष्ट्रीय राजनीति में पैर जमाना आसान नहीं होगा।