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 कोईलवर के पुराने रेल सह सड़क पुल पर कभी भी हो सकता है कोई बड़ा हादसा

कोईलवर के पुराने रेल सह सड़क पुल पर कभी भी हो सकता है कोई बड़ा हादसा

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कोईलवर के अब्दुल बारी रेल सह सड़क पुल के अस्तित्व पर मंडरा रहा है बड़ा खतरा

श्रीनारद मीडिया, कृष्‍ण कुमार रंजन, भोजपुर आरा (बिहार):

कोईलवर के पुराने रेल सह सड़क पुल के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। लंबे समय से अवैध बालू उत्खनन के कारण बालू माफियाओं के द्वारा पुराने रेल-सह-सड़क पुल की नीव हिला दी गई हैं। जो कभी भी किसी बड़े हादसे को निमंत्रण दे रहा है। मालूम हो कि कई वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों समीर मंत्री नेताओं की गाड़ियां प्रतिदिन इस पुल से होकर गुजरती हैं। इन सबके बावजूद इस खतरे की ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। कोलकाता दिल्ली मुख्य रेलमार्ग होने के कारण प्रतिदिन इस पुल से कई रेल गाड़ियां गुजरती है हजारों सड़क वाहन गुजरते हैं। हालांकि पुल के बगल में नए सिक्स लेन के सड़क पुल बन जाने के कारण सड़क से जाने वाले वाहनों की संख्या में इस पर कुछ कमी आई है परंतु अभी भी पटना की तरफ से आने वाले सभी वाहन इसी पुल से होकर आरा सासाराम मोहनिया होते हुए बनारस की ओर जाते हैं।

विदित हो कि सरकार के गाइडलाइन के अनुसार इस पुल के दोनों तरफ 1 किलोमीटर के दायरे में कोई बालू खनन नहीं करना है परंतु सरकारी नियमावली का उल्लंघन करते हुए बालू माफियाओं के द्वारा सैकड़ों नावों के द्वारा बालू खनन का कार्य पुल के नजदीक में ही किया जाता रहा है । इसी का परिणाम है कि इस पुराने अब्दुल बारी पुल की जड़े हिल गई हैं। दिखावे के लिए प्रशासन के द्वारा छापेमारी भी की जाती है और उसकी खानापूर्ति पूरी कर ली जाती है। बारिश के मौसम जब सोन नदी का पानी पुल के नीचे से लाखों घन क्यूसेक गुजरता है तब उसकी तेज धारा से इस पुल को जबरदस्त खतरा उत्पन्न हो गया है। ज्ञात हो कि सोन नदी की धारा काफी तेज हुआ करती है।

यदि निकट भविष्य में इस अब्दुल बारी पुल के नीव की मजबूत मरम्मत नहीं की गई तो किसी दिन कोई बड़ा हादसा हो सकता है।फिर सरकार के पास पछताने के सिवा कुछ हाथ नहीं बचेगा ।

ऐतिहासिक है इस पुल का इतिहास

कोईलवर पुल पटना और आरा के बीच कोइलवर नामक स्थान पर है। यह अंग्रेजों के जमाने में ही बना है । कोईलवर रेल-सह-सड़क पुल है। ऊपर रेलगाड़ियाँ और नीचे बस, मोटर आदि चलती हैं। सोन नदी पर अवस्थित कोईलवर पुल विकास की जीवन रेखा का एक मुख्य बिन्दु है । यह पूर्व भारत को पश्चिम भारत एवं उत्तर भारत से जोड़ने का भी काम करता है ।लोहे के गाटर से बने इस दोहरे एवं दो मंजिला पुल की निर्माण एवं इसकी तकनीक व सुन्दरता लोगों को आज भी काफी आकर्षित करती है। 1862 ई. में यह पुल तैयार हो गया था। इस पुल का नाम बिहार के जाने माने स्वतंत्रता सेनानी प्रोफेसर अब्दुल बारी के नाम पर अब्दुलबारी पुल रखा गया था। एक ओर जहाँ यह पुल दानापुर-मुग़लसराय रेल खंड को जोड़ता है तो दूसरी ओर पटना-भोजपुर सड़क याता-यात को भी जोड़ता है।

यदि इसके पुराने छवि की बात करें तो इस पुल को 1982 की गाँधी (फ़िल्म) में भी दिखाया गया है, जिसे रिचर्ड एटनबरो द्वारा निर्देशित किया गया है। कोईलवर पुल के ऊपरी मंजिल स्थित अप एवं डाउन रेल लाइन से दर्जन भर सुपर फास्ट ट्रेन समेत दर्जनों यात्री एवं गुड्स ट्रेनें गुजरती हैं। सैकड़ों भारवाहक वाहन समेत बस-कार आदि यात्री वाहन निचले मंजिल के दोहरे सुरंगनुमा सड़क मार्ग से गुजरते हैं। इसके नीचे बहती रहती है सोन नदी की अविरल धारा जिसमें नौकाएं तैरती रहती हैं। सोन नदी से निकला बालू इसी पुल से उत्तर बिहार तक और पश्चिम में उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र तक वाहनों द्वारा पहुंचकर विकास में योगदान देता है। कोइलवर पुल की लंबाई 1440 मीटर तक दक्षिणी रोड लेन 4.12 मीटर और उत्तरी रोड लेन 3.03 मीटर चौड़ी है।
समय रहते इस पुल के नीव को मजबूत बनाया जाए ताकि यह धरोहर अभी लंबे समय तक बना रहे।

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