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बूढ़ी मां के लिए श्रवण कुमार बनी बेटी, इलाज के लिए तीन साल से कंधे पर लादकर पहुंचा रही अस्पताल. - श्रीनारद मीडिया

बूढ़ी मां के लिए श्रवण कुमार बनी बेटी, इलाज के लिए तीन साल से कंधे पर लादकर पहुंचा रही अस्पताल.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

आज के दौर में जहां बेटे एक समय बाद माता-पिता को छोड़कर चले जाते हैं। वहीं बेटियां बढ़चढ़कर उनकी देखभाल कर रही हैं। कहानी है कि बिहार के गोपालगंज जिले की रहने वाली एक लड़की की। जिसने पति की मौत के बाद न केवल खुद को संभाला वरन अपनी मां के लिए श्रवण कुमार की भूमिका अदा की। मेहनत मजदूरी करके वह घर चला रही है और साथ ही अपनी मां का इलाज भी करा रही है। सरकारी सिस्टम की बेरुखी के चलते उसे झोपड़ी में रहना पड़ रहा है। तीन साल से मां बीमार है उसके इलाज के उसे चार किलोमीटर दूर बरौली लेकर जाना पड़ता है। मुफलिसी के चलते न तो वह गाड़ी कर सकती है और न ही एंबुलेस बुला सकती है। ऐसे में मां को कंधे पर लादकर बेटी को अस्पताल पहुंचा रही है। मां के प्रति बेटी के इस साहसिक कदम को देखकर हर कोई उसकी तारीफ कर रहा है।

गोपालगंज जिले के बरौली नगर परिषद के वार्ड संख्या 15 की रहने वाली उमरावती के पिता की 15 साल पहले मौत हो गई है। बूढ़ी मां को पीठ पर लादकर इलाज कराने बरौली पहुंची बेटी उमरावती ने बताया कि वह दो बहनें हैं। उसका कोई भाई नहीं है। एक बहन अपने ससुराल में रहती है और मैं बूढ़ी मां की देखभाल यहां रहकर करती हूं। उमरावती के पति भी इस दुनिया में नहीं हैं। पति की मौत के बाद वह अपनी मां के पास रहने लगी। यहां मेहनत मजदूरी करके वह घर चलाता है और मां का इलाज कराती है।

बूढ़ी मां तीन साल से बीमार चल रही है। तीन साल पहले पैर टूट गया। चल नहीं सकती हैं। इसका इलाज अभी चल ही रह था कि तीन दिन पहले कमर की हड्डी टूट गई। प्राइवेट डॉक्टर से दिखाया तो एक्सरे की जरूरत पड़ी। पास में पैसे नहीं थे तो मां को पीठ पर लादकर गांव से आधे किमी दूरी तय कर मुख्य सड़क पर लाई। ऑटो वाले से काफी मिन्नतें करने के बाद उसने 5 रुपये में बरौली स्टैंड पहुंचाया। वहां से पीठ पर लादकर एक्सरे कराने निजी क्लीनिक में पहुंची। एक्सरे कराने के बाद फिर पीठ पर मां को लादकर बस स्टैंड पहुंची। बस से बैठकर मां के साथ वापस गांव के सामने पहुंची और फिर पीठ पर लादकर आधे किमी की दूरी तय कर घर पहुंची।

उमरावती ने बताया कि पैसे के अभाव के कारण वो तीन साल में कई बार ऐसे ही बरौली मां को इलाज के लिए ले जाती रही है, लेकिन कोई सरकारी मदद नहीं मिलती। उन्होंने बताया कि मां को पेंशन योजना का लाभ मिला है। राशन कार्ड भी है लेकिन प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना का लाभ नहीं मिलने के कारण मड़ई में रहना पड़ता है।

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