पारसनाथ पहाड़ पर 87 साल बाद पिघल रही श्वेतांबर व दिगंबर समुदाय के बीच जमी रिश्तों की बर्फ.

पारसनाथ पहाड़ पर 87 साल बाद पिघल रही श्वेतांबर व दिगंबर समुदाय के बीच जमी रिश्तों की बर्फ.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जैन धर्म का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल पारसनाथ पहाड़ है। इसे सम्मेद शिखरजी भी कहते हैं। 24 तीर्थंकरों में से 20 ने पारसनाथ में निर्वाण प्राप्त किया था। जैन धर्म के दोनों समुदाय श्वेतांबर एवं दिगंबर सम्मेद शिखरजी पर मालिकाना हक को लेकर 87 सालों से अदालती लड़ाई लड़ रहे हैं। अभी मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। अब लड़ाई पर विराम लग सकता है। पटकथा पारसनाथ में लिखी जा चुकी है। विवाद अदालत के बाहर हल हो सकता है। दोनों समाज के प्रतिनिधियों की मुंबई में तीन बैठकें हो चुकी हैं। शिखरचंद पहाड़िया के तीर्थ क्षेत्र कमेटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते ही दोनों समुदाय के संबंधों में अरसे से जमी बर्फ पिघलने लगी है।

दोनों समुदाय ने की साथ-साथ पूजा

दिगंबर समाज का प्रतिनिधित्व तीर्थ क्षेत्र कमेटी एवं श्वेतांबर समाज का जैन श्वेतांबर सोसाइटी करती है। पहाड़िया 17 मई को तीर्थ क्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष बने। उसके बाद पारसनाथ में निर्वाण पाने वाले 16 वें तीर्थंकर भगवान शांतिनाथ का निर्वाण दिवस समारोह नौ जून को हुआ। पारसनाथ में हुए इस समारोह को पहली बार दोनों समुदाय ने संयुक्त रूप से मनाया। दाेनों एक मंच पर आए। 14 जून को 15 वें तीर्थंकर भगवान श्री धर्मनाथ का निर्वाण महोत्सव भी दोनों समुदाय ने साथ मनाया। श्वेतांबर सोसाइटी के अध्यक्ष केएस रामपुरिया एवं तीर्थ क्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष शिखर चंद्र पहाड़िया के संबंध पुराने हैं। रामपुरिया कोलकाता एवं पहाड़िया मुंबई में रहते हैं। दोनों राजस्थान मूल के हैं। रामपुरिया का पहाड़िया बहुत सम्मान करते हैं। इन संबंधों का फायदा जैन समाज को मिल रहा है।

1933 में प्रिवी काउंसिल लंदन में हुई लड़ाई की शुरुआत

पारसनाथ पहाड़ की मिल्कियत को लेकर 1933 में प्रिवी काउंसिल लंदन में मामला गया था। हुकुमचंद बनाम महाराज बहादुर केस में प्रिवी काउंसिल में सुनवाई हुई थी। फैसला हुआ कि पारसनाथ पहाड़ की मिल्कियत पालगंज राजा को है। पूरे जैन समुदाय को पारसनाथ पहाड़ की शिखाओं में अवस्थित जैन मंदिरों, टोंक एवं चरण में अपनी पद्धति के अनुसार पूजा करने का अधिकार होगा। दिगंबर समुदाय को सिर्फ चार टोंक एवं जल मंदिर में पूजा के लिए श्वेतांबर समुदाय से अनुमति लेनी होगी। इस फैसले के बाद मामला शांत हो गया।

1967 में श्‍वेतांबर सोसाइटी की ओर से सेठ आनंदजी कल्याणजी ट्रस्ट अहमदाबाद के नौ मैनेजिंग ट्रस्टी ने गिरिडीह अवर न्यायाधीश के न्यायालय में याचिका दी। वाद दिगंबर समुदाय के छह सदस्यों के खिलाफ लाया गया। कहा कि पारसनाथ पहाड़ शिखर पर दिगंबर समुदाय को किसी प्रकार के भवन व मूर्ति निर्माण का अधिकार नहीं है। वादी के दावे का अधिकार आनंदजी कल्याणजी ट्रस्‍ट का राज्य सरकार से 25 वर्ग किमी जमीन का एकरामनामा था। तब दिगंबर समुदाय ने मुकदमा कर श्वेतांबर समुदाय के एकरारनामा की वैधता को चुनौती दी।

 

हाई कोर्ट में एकरारनामा अमान्य

सुनवाई के बाद दिगंबर समुदाय को भी पूजा का अधिकार दिया गया। मगर एकरारनामा को वैध करार दिया। तब दोनों ने उच्च न्यायालय में अपील की। 2004 में दिए फैसले में न्‍यायालय ने एकरारनामा को मान्य नहीं बताया। श्वेतांबर के एकाधिकार के दावे को खारिज किया। कहा कि भूमि सुधार अधिनि‍यम के तहत राज्य सरकार में 46 एकड़ जमीन समाहित है। सरकार मंदिरों, पूजा स्थलों एवं पूजा पद्धतियों की समुचित देखभाल करे। एक कमेटी बनाए, इसमें दिगंबर, श्वेतांबर समुदाय, आनंदजी कल्याणजी ट्रस्ट अथवा मूृर्ति पूजक समुदाय और जैन धर्म की अन्य शाखाओं का प्रतिनिधित्व हो। कलक्टर पदेन अध्यक्ष होंगे। प्रशासक की नियुक्ति हो जो कमेटी के परामर्श से काम करेगा। तब यह वाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

 

भगवान का निर्वाण दिवस दोनों समुदाय मनाते हैं। शिखरचंद पहाड़िया कमेटी के नए अध्यक्ष बने हैं। उनसे पुराने संबंध है। पहाड़िया ने कहा कि निर्वाण दिवस हम साथ मनाते हैं। उनकी सार्थक पहल से बात बनी है। मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। भगवान की जब मर्जी होगी, इसका समाधान हो जाएगा।

-केएस रामपुरिया, राष्ट्रीय अध्यक्ष जैन श्वेतांबर सोसाइटी

विवाद के समाधान का वक्त आ गया है। दोनों समाज के तीन-तीन लोगों की कमेटी बैठकर तीन बार बात कर चुकी है। इसका नतीजा है कि हम साथ में भगवान की पूजा कर रहे हैं। विवाद का निपटारा आपसी समझौते से हो जाएगा। साथ मिलकर निर्वाण दिवस मनाने का फैसला मैंने और रामपुरियाजी ने लिया।

-शिखरचंद पहाड़िया, राष्ट्रीय अध्यक्ष, तीर्थ क्षेत्र कमेटी

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