शायद ही कोई खिलाड़ी मिल्खा बन पाये.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

मिल्खा सिंह देश के लीजेंड थे। उनके बारे में जितना कहा जाए कम ही होगा। खेल जगत में इतना बड़ा नाम, सम्मान और प्रतिष्ठा अर्जित करना हर किसी के बूते की बात नहीं होती। एथलेटिक्स में मिल्खा सिंह की टक्कर के दूसरे किसी खिलाड़ी ने भारत में जन्म नहीं लिया। कोई दूसरा मिल्खा सिंह जन्म ले भी नहीं सकता क्योंकि वह मिल्खा तो बस एक ही है और एक ही रहेगा। जिस तरह हॉकी में कोई दूसरा ध्यानचंद पैदा नहीं हुआ, उसी तरह दूसरा मिल्खा सिंह भी जन्म नहीं लेगा। आज भले ही देश में क्रिकेट की लोकप्रियता चरम पर हो लेकिन शायद ही कोई ऐसा खेल प्रेमी हो जो मिल्खा सिंह का नाम नहीं जानता हो। कोरोना महामारी ने 18 जून 2021 की रात भारत से एक ऐसा सितारा छीन लिया है

जिसकी भरपाई कभी नहीं की जा सकती। वह 91 साल तक जिए और जीवन भर भारत को खेल जगत में आगे ले जाने का सपना देखते रहे। दौड़ कूद में जब भी भारतीय खिलाड़ी विश्व स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग लेते हैं तो हम उनमें मिल्खा सिंह की छवि देखने की कोशिश करते हैं। ओलंपिक में इस इवेंट में भारत अभी तक कोई पदक नहीं जीत सका है। यह कसक खुद मिल्खा सिंह को भी थी क्योंकि 1960 के रोम ओलंपिक में वह महज कुछ सेकंड के अंतर से पदक हासिल करने से चूक गए।

वह चौथे स्थान पर रह गए। इस इवेंट में 45.73 सेकंड में 400 मीटर की दूरी तय करने का उनका राष्टीय कीर्तिमान तकरीबन चार दशकों तक कायम रहा। हालांकि, उन्होंने ओलंपिक रिकॉर्ड तोड़ दिया था लेकिन पदक उनके भाग्य में नहीं था। जब भी उनसे कोई पूछता था कि आपका सपना क्या है जिसे आप पूरा करना चाहते हैं तो इसके जवाब में वह कहते− ‘वह ओलंपिक में पदक जीतना चाहते थे मगर मैं अपने जीवन में ऐसे एथलीट को देखना चाहता हूं जो ओलंपिक में देश के लिए पदक जीत कर लाए।’ अफसोस यह कि मिल्खा सिंह का यह सपना अभी कोई भारतीय पूरा नहीं कर पाया है।

वह कहते थे कि भारत में प्रतिभाएं बहुत हैं पर आर्थिक तंगी की वजह से बहुत-सी प्रतिभाएं दम तोड़ देती हैं। इन्हें आगे बढ़ाने के लिए सरकार के अलावा निजी संस्थाओं, व्यापारियों और अमीर लोगों को सामने आना चाहिए। दौड़ की वजह से ही मिल्खा सिंह अपनी जिंदगी को एक अलग मुकाम तक ले गए। इसी जुनून ने भारतीय खेलों के इतिहास में उनको एक खास जगह दे दी।

ओलंपिक हो, कॉमनवेल्थ गेम्स हों अथवा ऐशियाई खेल, सभी में नई इबारत लिख कर वह भारतीय एथलेटिक्स के पहले ‘सुपर स्टार’ बन गए। निश्चित रूप से वह आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे। भला कौन खिलाड़ी नहीं चाहेगा कि वह मिल्खा सिंह जैसी बुलंदी हासिल करे। उनके नाम पर बॉलीवुड में फिल्म भी बनी। भाग मिल्खा भाग नामक यह फिल्म काफी हिट रही।

खेल के मैदान पर बजाया भारत का डंका

खेल मैदान पर मिल्खा सिंह जहां भी उतरे उन्होंने भारत का डंका बजा दिया। तोक्यो एशियाई खेल−1958 में दो स्वर्ण पदक जीत कर वह एशिया के सरताज बन गए। यहां भी उनकी टक्कर पाकिस्तान के अब्दुल खलीक से थी। दोनों के बीच वर्चस्व की लड़ाई थी। मिल्खा ने कमाल का प्रदर्शन करते हुए चेस्ट फिनिश में खलीक को पछाड़ दिया। 200 मीटर और 400 मीटर की दोनों रेस में मिल्खा सिंह ने स्वर्ण पदक जीत लिया। उसी साल ब्रिटेन के कार्डिफ में कॉमनवेल्थ गेम्स हुए। इसमें 440 यार्ड के रेस में गोल्ड जीतने के बाद विश्व स्तर पर उन्होंने अपनी पहचान स्थापित कर दी।

इस दौड़ के फाइनल में दुनिया के नंबर एक और विश्व रिकॉर्ड धारी एथलीट स्पेंस भी थे। स्पेंस को करीब आधा मीटर के अंतर से पछाड़ कर मिल्खा ने स्वर्ण पदक जीत लिया। इस कामयाबी ने उन्हें दुनिया में ‘स्टार’ बना दिया। एशियाई खेलों और कामनवेल्थ गेम में हिस्सा लेते हुए मिल्खा सिंह ने देश के लिए पांच गोल्ड मेडल जीते थे। एशियाड में उनके नाम चार स्वर्ण पदक हैं। उनसे स्वर्ण से कम की कोई उम्मीद भी नहीं करता था। वह जब भी मैदान पर उतरते तो गोल्ड मेडल पक्का रहता था। ऐसा जीवट का खिलाड़ी कम ही देखने को मिलता है। खेलों के प्रति उनका समर्पण गजब का था।

अर्जुन अवार्ड लेने से किया इनकार

दुनिया में एथलेटिक्स में भारत का परचम लहराने वाले मिल्खा सिंह को केन्द्र सरकार ने 1959 में पद्म श्री पुरस्कार से नवाजा। यह देश का बड़ा पुरस्कार है जो हर साल 26 जनवरी के अवसर पर घोषित किया जाता है। बाद में वर्ष 2001 में उनको अर्जुन पुरस्कार भी दिया गया लेकिन इसे लेने से उन्होंने इनकार कर दिया। उनका कहना था कि यह पुरस्कार युवा खिलाड़ियों को मिलना चाहिए जो मौजूदा समय खेल रहे हैं। रिटायर होने के बाद इसे देने का कोई अर्थ नहीं।

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