भारत के लिए क्यों बेहद जरूरी है दो बच्चा नीति?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत की कुल जनसंख्या 137 करोड़ के आसपास है। यह विश्व की कुल आबादी का 17.7 फीसद है। वर्ष 2010 में लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, साल 2048 में भारत की जनसंख्या सर्वाधिक (लगभग 160 करोड़) होने के बाद इसमें गिरावट दर्ज की जाएगी। वर्ष 2100 में आबादी 1.03 अरब रह जाएगी। इस प्रकाशित लेख पर मतभेद हो सकता है,
लेकिन एक बात स्पष्ट है कि भारत की प्रजनन दर प्रति महिला दो बच्चों की है। हाल ही में चीन ने प्रजनन दर की नीति में बदलाव किया है और प्रति महिला तीन बच्चों की अनुमति दे दी है। अधिक जनसंख्या का तब तक कोई फायदा नहीं है, जब तक कि लोग तकनीकी रूप से दक्ष नहीं होंगे। लिहाजा भारत की बढ़ती जनसंख्या को रोकने के लिए दो बच्चा नीति पर काम करना जरूरी है।
मेरे अनुसार इसके दो उपाय हो सकते हैं। भारत के लोगों विशेषकर युवा श्रमिकों (जिनकी संख्या 2030 में चीन से अधिक होगी) को ना केवल तकनीकी रूप से सबल बनाना होगा, बल्कि विभिन्न प्रकार के सरकारी लाभों को जनता तक पहुंचाकर या रोककर उन्हें प्रजनन दर को रोकने के लिए प्रोत्साहित करना होगा। देश में सबसे पहले 1952 में परिवार नियोजन को लागू किया गया था, लेकिन अपेक्षित परिणाम नहीं मिले। इसके पीछे की बड़ी वजह भारत के लोगों में तकनीकी शिक्षा की कमी थी, जिसके चलते वे अपनी आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं कर सके। प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना की शुरुआत वर्ष 2015 में हुई थी। यह एक सराहनीय कदम था। यह अप्रत्यक्ष रूप से प्रजनन दर को रोकने में सक्षम है।
भारत के विभिन्न प्रांतों के आंकड़े देखें तो पता चलता है कि दक्षिण और पश्चिम के सभी राज्यों की प्रजनन दर प्रति महिला दो या दो से कम है। इतना ही नहीं, इसमें निरंतर गिरावट दर्ज की जा रही है। दूसरी तरफ बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्य हैं, जहां पर प्रजनन दर दो से ऊपर है। उत्तर प्रदेश में प्रजनन दर को दो के आसपास लाने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे।
इसके लिए सरकार द्वारा मुहैया कराई जा रही सरकारी सुविधाओं और सेवाओं से उन लोगों को महरूम रखना भी एक कारगर तरीका हो सकता है जिनके पास दो से ज्यादा बच्चे हैं। इससे उनका ही जीवन स्तर सुधरेगा। संसाधनों में उनके परिवार की हिस्सेदारी बढ़ेगी। बच्चों को अच्छी शिक्षा और सेहत सुनिश्चित हो सकेगी।
इसके साथ ही कई और कदम भी उठाने होंगे। अगर सरकार तकनीकी शिक्षा पर जोर देती और मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा सभी के लिए उपलब्ध होती तो उत्तर प्रदेश की प्रजनन दर वर्ष 2015-16 में ही दो बच्चे के करीब आ जाती है। यह बात ठीक है कि सरकार ने हम दो हमारे दो के महत्व को जनता को समझाया है, लेकिन तकनीकी शिक्षा की कमी और मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा सभी के लिए उपलब्ध नहीं होने तक जन्मदर को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है।
सरकार की महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना और दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना को कड़ाई से लागू करना होगा, जिससे देश का युवा वर्ग तकनीकी ज्ञान से अछूता नहीं रहे। स्वास्थ्य के क्षेत्र में आयुष्मान भारत सरकार की एक महत्वपूर्ण पहल है, लेकिन यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज के लिए इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधार किए जाने की आवश्यकता है। इन सुधारों के माध्यम से सरकार परिवार नियोजन के उस उद्देश्य को प्राप्त कर सकती है, जिसके लिए इसकी शुरुआत की गई थी।
विकासशील देश में ज्यादा आबादी संसाधनों पर दबाव बढ़ाती है। लिहाजा प्राकृतिक और भौतिक संसाधनों में प्रति व्यक्ति हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए हमें एक तार्किक नीति के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है। इससे लोगों के जीवन और कल्याण स्तर में इजाफा होगा।
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