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क्या मोदी ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं बल्कि उसमें सुधार किया है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

15 कैबिनेट और 28 राज्य मंत्रियों के साथ बड़े अनोखे और निराले अंदाज में मोदी सरकार का पहला मंत्रिमंडल विस्तार हुआ। शपथ ग्रहण का समय छह बजे मुकर्रर था, लेकिन उससे पहले मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा से ज्यादा इस बात की होने लगी कि किन मंत्रियों को हटाया जायेगा। सुबह 11 बजे प्रधानमंत्री ने अपने आवास पर अमित शाह, राजनाथ सिंह और जेपी नड्डा के साथ मीटिंग की, तब लोगों को लगा मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर मंथन किया जा रहा है।

लेकिन मीटिंग में कई मौजूदा मंत्रियों को मंत्री पद से हटाने की पटकथा लिखी जा रही थी। बैठक जैसे ही खत्म हुई तड़ातड़ इस्तीफों की झड़ी लग गई। स्वास्थ्य, शिक्षा व रोजगार की अगुवाई करने वाले सभी मंत्रियों को एक साथ निपटा दिया गया। दर्जन भर मंत्रियों के औसत परफॉर्मेंस को देखते हुए उनकी छुट्टी कर दी गई। कुछों को इनाम भी मिला। कुल 43 मंत्रियों को शामिल किया गया। नई कैबिनेट में कई पूर्व चिकित्सक, आईएएस, इंजीनियर व उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों का जबरदस्त समावेश है।

गौरतलब है कि केंद्र सरकार के कामकाज के लिहाज से बीते सात वर्षों के दरम्यान चर्चा मोदी मंत्रिमंडल की कम, बल्कि मोदी मॉडल की ज्यादा हुई और लगातार हो रही है। क्योंकि सरकार के दोनों कार्यकालों की परस्पर संरचना, अब तक के सभी प्रधानमंत्रियों से अलहदा और जुदा भी रही है। उनके काम करने के अंदाज से तो सभी भली भांति परिचित हैं ही। क्योंकि उनके निर्णय सभी को चौंकाते रहे हैं।

इससे पहले भी कई मर्तबा मीडिया में खबरें तैरीं कि मोदी कैबिनेट में फेरबदल होगा। पर, सभी खबरें अफवाह और हवा हवाई साबित हुईं। आम लोगों के अलावा राजनीतिक पंड़ितों के सभी कयास धराशायी हुए। दरअसल, मोदी शुरू से ही अपने काम करने के अंदाज और नीति, नियमों और निर्णयों से देशवासियों को चकित करते रहे हैं। उनके फैसले की किसी को कानों कान भनक तक नहीं लगने देते। यहां तक कि उनके मंत्रियों को भी आभास नहीं हो पाता कि मोदी क्या करने वाले हैं। मीटिंग में मंत्रियों को बुलाया तो जाता है, पर मुद्दा मीटिंग में ही पता चलता है। बेहद गुप्त होते हैं मोदी के फैसले।

 

बहरहाल, मोदी ने शुरू से ही मंत्रिमंडल विस्तार पर ज्यादा विश्वास नहीं किया। पहला कार्यकाल भी ऐसे ही बीता। उन्होंने हमेशा मंत्रियों को अपने पदों पर बने रहने का उपयुक्त और भरपूर वक्त दिया। इसका एक कारण यह भी रहा कि मंत्रियों को ज्यादा से ज्यादा स्वतंत्रता मिली और उनके कार्य की गुणवत्ता में निखार भी देखने को मिला। इस फॉर्मूले से कई मंत्रियों ने बेहतरीन काम भी करके दिखाया।

यही वजह है कुछ विभाग ऐसे हैं जो पिछले कार्यकाल में जिन मंत्रियों के पास थे, वह मौजूदा कार्यकाल में भी यथावत हैं। जबकि, पिछली हुकूमतों में मंत्रियों के विभाग साल के भीतर ही बदल दिए जाते रहे हैं। काबिलेगौर है कि इतनी अल्प अवधि में कोई भी मंत्री अपना परफॉर्मेंस नहीं दे पाएगा और ना दिखा पाएगा। समय और स्वतंत्रता देने के मामले में सभी मंत्री मोदी की तारीफ भी करते हैं।

फिलहाल अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल करने के बाद प्रधानमंत्री की कोशिश यही है कि जिन नए मंत्रियों को अपनी टीम में उन्होंने जोड़ा है। वह नवीनतम मंत्री दिए गए पद को रेवड़ियां नहीं समझेंगे, बल्कि एक बड़ी जिम्मेदारी समझकर अपने दायित्वों का निर्वाह करेंगे और जनता की सेवा में तनमन से जुटेंगे।

विस्तार के रूप में युवाओं से सजाई गई मोदी टीम में भूपेंद्र यादव, ज्योतिरादित्य सिंधिया, हिना गावित, अजय भट्ट, सर्वानंद सोनोवाल, अनुप्रिया पटेल, अश्विनी वैष्णव, अजय मिश्रा जैसे ऊर्जावान मंत्रियों से खुद प्रधानमंत्री बड़ी उम्मीद लगाए बैठे हैं। उन्हें उम्मीद ही नहीं, बल्कि पूर्ण विश्वास है कि नए मंत्रियों की जिम्मेदारियां कुछ ही समय में परिणामोन्मुख के रूप में दिखाई देंगी। साथ ही शासन व्यवस्था में बदलाव लाने में लक्षित भी होंगी। इस बात से सभी वाकिफ हैं कि प्रधानमंत्री की टीम का हिस्सा बनने का मतलब काम करना होगा, न कि मंत्री बनकर रौब दिखाना और जलवा दिखाना।

शासन व्यवस्था में बदलाव के लिए प्रधानमंत्री ने एक और नए मंत्रालय को बनाया है, मिनिस्ट्री ऑफ को-ऑपरेशन। इस मंत्रालय को बनाने का खास उद्देश्य ‘सहकार से समृद्धि’ के विजन को साकार करना होगा। मंत्रिमंडल विस्तार को ज्यादातर लोग आगामी चुनावों से जोड़कर देख रहे हैं। पर एक वर्ग इसे बदलाव का बड़ा कदम मानकर देख रहा है।

नवीनतम मंत्रालय के जरिए प्रत्येक विभागों में निगरानी के तौर पर प्रशासनिक, कानूनी और नीतिगत ढांचे का प्रसार किया जाना बताया जा रहा है। हालांकि नफा-नुकसान एकाध वर्ष बीत जाने के बाद ही पता चलेगा। मोदी कार्यकाल के सात सालों में पहली मर्तबा मोदी कैबिनेट अब तक की सबसे युवा टीम है, जिसमें महिलाओं का प्रतिनिधित्व भी ठीक-ठीक बढ़ा है। विस्तार से पहले तक मंत्रियों की संख्या 53 मात्र थी, कई विभाग बिना मंत्रियों के रिक्त थे, उन्हें भी भरा गया है। कम मंत्रियों से कैबिनेट चलाने का एक खास मकसद मोदी का खर्चों में बचत करना भी था।

मंत्रिमंडल विस्तार में बड़े राज्यों का ज्यादा ख्याल रखा गया। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र आदि राज्यों से ज्यादा मंत्री बनाए गए हैं। केंद्र सरकार एनडीए गठबंधन की है तो बाकी सहयोगी दलों के नेताओं की भी भागीदारी सुनिश्चित की गई। पर, दो नाम ऐसे हैं जिन पर आने वाले समय में परेशानियां हो सकती हैं। नारायण राणे और पशुपति कुमार पारस।

नारायण राणे के नाम पर शिवसेना को आपत्ति है। कुछ समय से धीरे-धीरे भाजपा और शिवसेना के रिश्ते मधुरता की तरफ बढ़े हैं, इस बीच राणे को मंत्री बनाना दोनों के रिश्तों में खलल भी डाल सकता है। वहीं, एलजेपी के बागी सांसद और स्वंयभू पार्टी अध्यक्ष पशुपति पारस के नाम पर सांसद चिराग पासवान को घोर एतराज है। उनका कहना है कि उनकी बिना इजाजत के उनकी पार्टी से कोई मंत्री कैसे बन सकता है। इसके लिए उन्होंने कोर्ट तक जाने की धमकी दे डाली है।

वैसे, बीते मंत्रिमंडल विस्तार के अनुभव तो यही कहते हैं कि केंद्र सरकारों में फेरबदल का मतलब सियासी जरूरतों का पूरा करना और चुनावों में फायदा उठना ही होता है। लेकिन इस बार ऐसा कुछ दिखाई नहीं पड़ता। कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जिनके हालात कोरोना संकट में खराब हुए हैं। मोदी टीम में विस्तार करने का मुख्य मकसद यही है कि उन क्षेत्रों में टीमवर्क के जरिए कठिन समस्याओं से निबटा जाए।

हालांकि टाइमिंग कुछ ऐसी है जो सीधे आरोप लगाती है कि आगामी कुछ महीनों में पांच राज्यों में चुनाव होने हैं, उनको ध्यान में रखकर मोदी मंत्रिमंडल का विस्तार किया गया है। विपक्षी पार्टियां खासकर कांग्रेस तो यही कह रही है। बाकी आने वाला समय बताएगा, मंत्रिमंडल विस्तार फायदे के लिए किया गया या जनता की भलाई के लिये।

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