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बारिश का मौसम ज़रूर होता है, लेकिन बारिश हमेशा बेमौसम होती है।

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बारिश का मौसम ज़रूर होता है, लेकिन बारिश हमेशा बेमौसम होती है। कहीं भी, कभी भी, किसी भी समय सहसा तीव्र बूंदें आपको भिगो सकती हैं। यूं वर्षारानी सभी को प्रिय होती है, बशर्ते कोई काम न अटक रहा हो। उस दिन भी यही हुआ। मेरा घर से निकलना हुआ और काले बादलों का घिर आना हुआ। यूं भी इस साल बारिश का तकाज़ा है तो मन ही मन दुआ की कि ख़ूब ज़ोरदार बारिश हो, भीग भी जाऊं तो कोई ग़म नहीं, बस बारिश हो। आदमी जब भी घर से निकलता है तो दिमाग़ में एक मुख्य काम होता है।

बाज़ार में जाते ही लगे हाथ चार-पांच काम याद आ जाते हैं और उन्हें निपटाते चलने का नेक ख़्याल हो आता है। मैं भी कोई अपवाद नहीं हूं। पहला काम निपटाया। दूसरे के लिए निकला ही था कि काले बादल और काले हो गए, इतने कि आभास हुआ संध्या वेला आन पड़ी है। मैं मुड़कर घर की ओर रवाना हुआ। भीगने से पहले ठौर-ठिकाना पा जाऊं, इतनी कोशिश थी। थोड़ी दूर चला ही था कि बारिश की बूंदों ने मुझे घेर लिया और लगी भिगोने। मुझे आश्रय ढूंढना पड़ा। मेरी ही तरह कई और मनुष्य भी इसी तरह जहां आश्रय मिला, सिर छिपाने लगे।

बूंदें क्या थीं, आसमान से छूटे तीर थे जो स्यात संसार के सबसे ख़ूंख़ार पशु यानी मनुष्यों को ही सबक़ सिखाने के उद्देश्य से आए थे। सौभाग्य से मैं एक कॉन्वेंट स्कूल के सामने रुका। रुकने की ज़रूरत इसलिए भी आन पड़ी कि कंधे पर मेरे कैमरा था जिसे पानी से बचाना परम आवश्यक था। वहां मेरी तरह के तीन-चार लोग और थे, जो बारिश की अफ़रातफ़री में उस स्कूल गेट के शेड की ओर भागे। चौकीदार भला मानुस था, उसने सबको पनाह दे दी। लेकिन सौभाग्य कब दुर्भाग्य में बदल जाता है, कोई नहीं जानता।

चौकीदार के पीछे एक महिला थी। उसकी ओर से चौकीदार को आदेश हुआ- इन लोगों को यहां मत खड़े होने दो। आवाज़ की कर्कशता से अनुमान लगाया जा सकता था कि उन्हें सम्पूर्ण पुरुष समाज से विशेष चिढ़ थी। मैंने उनके मास्क अनावृत मुख को देखा। एक पल को भय हुआ कि बारिश से ज़्यादा ख़तरा तो इन सज्जन महिला से है जो ऐसे महामारी के समय भी बिन मास्क के ख़ाली स्कूल को अपनी बपौती समझ रही हैं। मैं आज तक इस बात को समझ नहीं पाया कि ऐसे मौक़ों पर मेरी विनम्रता की रसधार क्यों बह पड़ती है।

मैं चौकीदार से विनीत भाव में बोला कि कृपया मेरा यह बैग आपके कैबिन में रख दीजिए, मुझे भीगने में कोई समस्या नहीं! चौकीदार के होंठ हिलते उससे पहले ही सज्जन महिला की कर्कश आवाज़ विशेष ‘ना’ के स्वर में मेरे कानों पर पड़ी। मुझे और बाक़ी अपरिचित सज्जनों को शेड से निकलकर पेड़ की छांह लेनी पड़ी। लेकिन पेड़ तो पेड़ ठहरे। उनके पास मनुष्यों की तरह साज़ो-सामान नहीं होता जिसे बचाने को वो ओट ढूंढें, वो तो मदमस्त होकर बारिश में नाचते हैं। शाख़ें लहराकर, पानी पत्तों से छानकर धरती को पिलाते हैं।

मुझे एक आलेख का शीर्षक याद आ गया, जिसे पढ़कर मैं शब्दों के जादू पर मुग्ध हो गया था- ‘पानी का एक पेड़ है बारिश।’ ख़ैर, बरसात तेज़ थी और पेड़ का आसरा न के बराबर। परम सौभाग्य से पास में एक मोची बैठे थे। सामान्य मौसम में वो सड़क किनारे यूं ही खुले आसमान के नीचे बैठते हैं, लेकिन बारिश का मौसम है, तो सिर पर एक मोमपप्पड़ को कनात की तरह डाल लेते हैं। इस शेड की ऊंचाई इतनी थी कि मैं उसके नीचे बैठूं तो मेरा सिर उससे टकराए और फैलाव बस इतना कि जूता सीने, पॉलिश आदि करने के काम का साज़-ओ-सामान उसके नीचे आ जाए। मोची महाराज ने अपने पैर समेट लिए, सामान समेटा और हम बारिश से भाग रहे लोगों को आसरा दे दिया।

कनात के नीचे मोची समेत 5 लोग समा गए। मैंने बैग कनात के नीचे किया, ताकि उसे पानी से बचा सकूं क्योंकि मैं भीग भी जाऊं तो कोई ग़म नहीं। मोची ने इशारा किया कि इसे यहां फेंसिंग पर टांग दीजिए जो कि मोची के ठीक पीछे थी। मैं बैग टांग कर निश्चिंत हुआ। हालांकि मैं उसके नीचे समा न पाया। मैं संतुष्ट था कि बैग पानी से बचा। मैं बाहर खड़ा रहकर बारिश का आनंद लेता रहा। मैंने स्कूल की ओर देखा। उसका बड़ा-सा द्वार बंद भी कर दिया गया था ताकि कोई और घुसपैठ न हो पाए।

मैंने विचारा कि उन महिला को तो भारत-चीन सीमा पर होना चाहिए। बारिश कई दिनों के बाद आई थी, इसलिए देर तक ठहरी। यही कोई आधे-पौन घंटे तक। मोची की दुकान के सामने सड़क में एक गड्ढा था। जब भी कोई चौपाया वाहन उस नाभिकुण्ड में अपना पैर धरता, मटमैले जल के छींटें मोची की दुकान में ज़मीन पर बैठे भाई बंदों पर उड़ते। एक ने अपशब्द कहे, दो ने अनुमोदन किया, एक ने प्रतिक्रिया न देना ही श्रेयस्कर समझा, और मोची मुस्करा कर रह गया। शायद इसलिए क्योंकि उनके लिए ये नई बात न थी। अमीरी के छींटों से वे भलीभांति वाक़िफ़ थे।

ख़ैर, जब बरसाती बूंदों से मेरा सांगोपांग स्नान पूर्ण हुआ तब ही बारिश ने दम लिया। कुछ देर में तेज़ बारिश चंद बूंदें बनी, और फिर उन बूंदों ने भी अपना रास्ता नापा। मैंने भी अपना बैग उठाया, मोची महाराज को कोटिशः धन्यवाद दिया और बाइक पर सवार हुआ। संयोग ही था कि मेरे गाड़ी शुरू करते ही उस कॉन्वेंट स्कूल का गेट भी पुनः खुल गया। चौकीदार ने द्वार सरकाया तो मुझे उन्हीं कर्कशकंठी महिला के दर्शन हुए और मैंने देखा कि वर्षारानी ने उन्हें भी नहीं छोड़ा था। सड़क से बहता पानी स्कूल में घुस आया था और अच्छी-ख़ासी मात्रा में वहां भर गया था।

वे घुटने तक भरे उस पानी को देखकर घुन्ना रही थीं शायद इसलिए कि उनका रौब पानी पर नहीं चल पाया! मैं मुस्कराया, मन ही मन ईश्वर को प्रणाम किया और इस निश्चय के साथ घर लौट आया कि अब से मोची सम्बंधित सभी कार्य उन्हीं मोची महाराज से करवाऊंगा। इति।

 

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