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अररिया जिले में अति कुपोषित बच्चों के समुदाय आधारित प्रबंधन कार्यक्रम संवर्द्धन की हुई शुरुआत

अररिया जिले में अति कुपोषित बच्चों के समुदाय आधारित प्रबंधन कार्यक्रम संवर्द्धन की हुई शुरुआत

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डीडीसी की अध्यक्षता में हुई कार्यशाला, राज्यस्तरीय अधिकारियों ने लिया भाग:
विभिन्न विभागीय मंचों को एकीकृत कर समुदाय स्तर पर कुपोषण की रोकथाम व प्रबंधन कार्यक्रम का उद्देश्य:
कुपोषित बच्चों के लिये इस प्रकार के लक्षित कार्यक्रम की लंबे समय से थी जरूरत: डीडीसी

श्रीनारद मीडिया, अररिया, (बिहार):


बिहार के अररिया जिले में अति कुपोषित बच्चों के समुदाय आधारित प्रबंधन कार्यक्रम संवर्द्धन सीसैम का शुभारंभ बुधवार को किया गया। समाहरणालय परिसर स्थित डीआरडीए सभागार में इसे लेकर डीडीसी मनोज कुमार की अध्यक्षता में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में डीपीओ आईसीडीएस, सभी सीडीपीओ, प्रखंड स्वास्थ्य प्रबंधक, पीएचसी प्रभारी, केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा के चिकित्सा पदाधिकारी डॉ राजेंद्र प्रसाद, सेंटर ऑफ एक्सलेंस पीएमसीएच, पिरामल स्वास्थ्य व यूनिसेफ के जिला व राज्य स्तरीय अधिकारी व कर्मी मौजूद थे।

संबंधित विभाग के बेहतर समन्वय से होगा कार्यक्रम सफल: डीडीसी
कार्यशाला को संबोधित करते हुए डीडीसी मनोज कुमार ने कहा कि बच्चों के स्वास्थ्य व पोषण संकेतकों में सुधार के लिये जिले में संवर्धन कार्यक्रम का क्रियान्वयन किया जाना है। अतिकुपोषित बच्चों की देखभाल व प्रबंधन के लिये संबंधित विभाग आपसी समन्वय स्थापित कर इसका क्रियान्वयन सुनिश्चित करायेंगे। डीडीसी ने संवर्धन कार्यक्रम की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा की कुपोषित बच्चों के लिये इस प्रकार के लक्षित कार्यक्रम की लंबे समय से जरूरत महसूस की जा रही थी। उन्होंने सी- सैम कार्यक्रम की क्रियान्वयन रणनीति के तहत क्षेत्र में अतिगंभीर कुपोषित बच्चों की पहचान कर उनकी स्थिति के अनुरूप सेवा प्रदान करने का निर्देश दिया। उन्होंने संबंधित विभागों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित कर इसका सफल क्रियान्वयन सुनिश्चित कराने का आदेश दिया।

एकजुट प्रयास से कुपोषण की रोकथाम कार्यक्रम का उद्देश्य: देबाशीष
पिरामल स्वास्थ्य के राज्य परिवर्तन प्रबंधक देबाशीष सिन्हा ने कार्यशाला के आयोजन को लेकर जिला प्रशासन के प्रति आभार व्यक्त किया। संवर्द्धन कार्यक्रम की विस्तृत जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि सैम एक गंभीर स्वास्थ्य स्थिति है। जहां एक स्वस्थ बच्चे की तुलना में एक बच्चे के मरने की संभावना 9 गुना अधिक होती है। 05 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण व रुग्णता बाल मृत्यु दर के कुछ प्रमुख कारण हैं। वहीं यूनिसेफ की कार्यक्रम अधिकारी डॉ शिवानी डार ने कुपोषण के वर्तमान परिदृश्य व अति कुपोषित बच्चों के समुदाय आधारित प्रबंधन कार्यक्रम-संवर्द्धन की आवश्यकता पर पीपीटी के माध्यम प्रकाश डाला। सत्र के दौरान कुपोषित बच्चों की देखभाल व प्रबंधन के दस चरणों पर विस्तृत चर्चा की गई। केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा की डॉ उषा ने कुपोषित बच्चों के ऊर्जायुक्त खानपान के संबंध में जानकारी देते हुए समुदाय स्तर पर इसकी आवश्यकताओं के विषय में बताया। उन्होंने कहा की कार्यक्रम के तहत कुपोषित बच्चों के देखभालकर्ता को आंगनबाड़ी स्तर पर ऊर्जायुक्त भोजन बनाने की विधि व प्रदर्शन के बारे के बताया जायेगा। पिरामल स्वास्थ्य के राज्य पोषण विशेषज्ञ परिमल झा ने कहा कि समवर्धन कार्यक्रम का उद्देश्य विभिन्न विभागों के अंतर्गत मौजूदा मंचों को एकीकृत कर समुदाय में बच्चों में कुपोषण की रोकथाम व उसके प्रबंधन को सशक्त करना है। इस कार्यक्रम में ज़िला व प्रखंड स्तर पर स्वास्थ्य विभाग व आईसीडीएस विभाग के कर्मियों का क्षमता वर्धन प्रस्तावित है।

कार्यक्रम के सफल संचालन के लिये हेल्थ व आईसीडीएस विभाग जिम्मेदार:
कार्यक्रम का संचालन एनएनएम कुणाल कुमार व पिरामल स्वास्थ्य के अफरोज अंसारी ने संवर्द्धन कार्यक्रम पर चर्चा करते हुए इसके क्रियान्वयन व प्रस्तावित प्रशिक्षण पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम के दौरान पिरामल स्वास्थ्य व यूनिसेफ़ की टीम के द्वारा सी- सैम कार्यक्रम की क्रियान्वयन रणनीति के तहत क्षेत्र में अतिगंभीर कुपोषित बच्चों की पहचान कर उनकी स्थिति के अनुरूप सेवा प्रदान करने व उनकी स्वास्थ्य व पोषण में सुधार लाने के प्रतिरूप पर चर्चा की गयी। जानकारी दी गयी कि डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा, उत्कृष्टता केंद्र पीएमसीएच, पीरामल स्वास्थ्य व यूनिसेफ संवर्धन कार्यक्रम को ज़िले में कार्यान्वयन करने के लिए तकनीकी भागीदार हैं। कार्यक्रम का क्रियान्वयन आईसीडीएस व स्वास्थ्य विभाग द्वारा संयुक्त रूप से किया जाना है।

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