कोरोना जैसी आपात स्वास्थ्य स्थिति में किस हद तक अदालत दे सकती है दखल-सुप्रीम कोर्ट.

कोरोना जैसी आपात स्वास्थ्य स्थिति में किस हद तक अदालत दे सकती है दखल-सुप्रीम कोर्ट.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि वह इस पर विचार करेगा कि कोरोना जैसी आपात स्वास्थ्य स्थिति में अदालतें कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में किस हद तक दखल दे सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना प्रबंधन मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के हर जिले में निश्चित संख्या में एंबुलेंस, आइसीयू बेड, टीकाकरण आदि के बारे में दिए गए आदेश और प्रदेश के छोटे शहरों और गांवों में स्वास्थ्य व्यवस्था को ‘भगवान भरोसे’ बताने की टिप्पणी से असहमति जताते हुए कहा कि यह देखना होगा कि ऐसे मामलों में संवैधानिक अदालतें किस हद तक दखल दे सकती हैं। कोर्ट ने कहा कि किसी के पास सौ सुझाव हो सकते हैं? तो क्या वे कोर्ट का आदेश बन सकते हैं? हमें याद रखना होगा कि हम संवैधानिक अदालत हैं।

इलाहाबाद हाई कोर्ट के स्वास्थ्य व्यवस्था को ‘राम भरोसे’ बताने की टिप्पणी से जताई असहमति

न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति दिनेश महेश्वरी की पीठ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश का जिक्र करते हुए कहा कि कितनी एंबुलेंस होंगी, कितने आक्सीजन बेड हैं, इस सब पर वे कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते। पीठ ने कहा कि हम यह नहीं कह रहे कि कोई अपना सुझाव नहीं दे सकता लेकिन यह कैसे कहा जा सकता है कि स्थानीय कंपनी टीके का फार्मूला लेकर उत्पादन करें। ऐसा आदेश कैसे दिया जा सकता। पीठ ने माना कि हाई कोर्ट का आदेश अव्यवहारिक है और उस पर पालन संभव नहीं है। पिछली सुनवाई में ही सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी थी।

शीर्ष अदालत ने कहा, उद्देश्य कितना भी अच्छा हो संविधान में वर्णित शक्तियों का सम्मान होना चाहिए

बुधवार को पीठ ने कहा कि अगर हाई कोर्ट का आदेश व्यवहारिक भी होता तो भी सवाल उठता है कि क्या जो क्षेत्र कार्यपालिका के लिए चिन्हित हैं उसमें कोर्ट को दखल देना चाहिए। पीठ ने कहा कि इस मुश्किल समय में सभी को सावधानी से चलना चाहिए और यह ध्यान रखना चाहिए कि क्या किया जाए और कौन करे। पीठ ने हाई कोर्ट के आदेश पर कहा कि आपात स्थिति में मिल कर प्रयास करने की जरूरत होती है। लेकिन अच्छा इरादा किसी को दूसरे के क्षेत्राधिकार में घुसने की इजाजत नहीं देता। वैसे इस बारे में कोई समान फार्मूला नहीं हो सकता, लेकिन कुछ तय मानक होते हैं जिनके अंदर ही हर संस्था को काम करना चाहिए।

संवैधानिक अदालतें जनहित में दे सकती हैं आदेश

जस्टिस सरन ने कहा कि हम इस मामले में देखेंगे कि ऐसे मामलों में संवैधानिक अदालतें किस हद तक दखल दे सकती हैं। जस्टिस महेश्वरी ने न्यायमित्र वरिष्ठ वकील निधेश गुप्ता से कहा कि वह कोर्ट को इस सुनवाई में मदद करते हुए बताएंगे कि जब हर संस्था की सीमा और मानक तय हैं तो ऐसा कैसे हो सकता है। निधेश गुप्ता ने कहा कि संवैधानिक अदालतों को बहुत से अधिकार हैं और वे जनहित में आदेश दे सकती हैं। गुप्ता ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से दाखिल किए गए ताजा हलफनामे का हवाला देते हुए कहा कि प्रदेश सरकार ने कोरोना की रोकथाम और बचाव के लिए उठाए जा रहे कदमों का ब्योरा हलफनामे में दिया है। पीठ ने कहा कि लेकिन राम भरोसे की टिप्पणी को कैसे सही ठहराया जा सकता है।

कोर्ट ने मामले को 12 अगस्त को फिर सुनवाई पर लगाने का आदेश देते हुए उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि वह अगली तारीख पर इस मामले में हाईकोर्ट द्वारा दिए गए सभी आदेशों को संलग्न करके कोर्ट में पेश करें। कोर्ट देखेगा कि हाईकोर्ट इस मामले में अब क्या कर रहा है। पीठ ने कहा कि वह फिलहाल हाईकोर्ट की सुनवाई पर रोक नहीं लगा रहे हैं। मालूम हो कि हाईकोर्ट ने गत 17 मई को कोरोना प्रबंधन मामले में सुनवाई करते हुए बहुत से आदेश दिये थे और स्वास्थ्य व्यवस्था के राम भरोसे होने की टिप्पणी भी की थी जिसके खिलाफ प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट मे याचिका दाखिल की है.

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